India News(इंडिया न्यूज़), Rashid Hashmi, India-Canada Relationship: भारत और कनाडा के संबंध में तनाव है। सिंतबर के दूसरे हफ्ते में G20 सम्मेलन हुआ, जिसमें हिस्सा लेने कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो भारत आए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत के ख़िलाफ़ खालिस्तानी आतंकवाद का मुद्दा उठाया। मोदी ने दो टूक कहा कि कनाडा अपनी ज़मीन पर चल रहे खालिस्तानी आतंकवाद पर शिकंजा कसे। कनाडा के PM जस्टिन ट्रूडो ने कहा कि भारत सरकार कनाडा के घरेलू मामलों में दख़ल ना दे। हद तो तब हुई जब ट्रूडो ने खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर को कनाडा का नागरिक बता डाला और मोदी के सामने उसके क़त्ल का मामला उठा दिया।
ट्रूडो इतने पर ही नहीं रुके, वापस कनाडा गए, अपनी संसद को संबोधित किया और कह डाला कि हरदीप सिंह निज्जर की हत्या भारत सरकार ने करवाई है। इसके साथ ही कनाडाई सरकार ने एक भारतीय डिप्लोमैट को अपने देश से निकाल दिया। एक्शन का रिएक्शन हुआ और भारत सरकार ने दिल्ली में मौजूद कनाडा के एक राजनयिक को भी 5 दिन के अंदर देश छोड़ने के लिए कह दिया। विवाद के चंद घंटे गुज़रे होंगे कि कनाडा में खालिस्तानी गैंगस्टर सुक्खा दुन्नेके की गोली मारकर हत्या हो गई। सुक्खा दुन्नेके मोस्ट वांटेड आतंकी था। वो 41 आतंकवादियों और गैंगस्टरों की उस लिस्ट में भी शामिल था जिसे NIA ने जारी किया था। संयोग देखिए कि हत्या की ख़बर उसी दिन आई जिस दिन सुक्खा के पंजाब वाले घर पर NIA की रेड पड़ी।
कनाडा को समझना होगा कि आज भारत का दुनिया में क्या क़द है। 9 अरब डॉलर के व्यापार का नुक़सान हिंदुस्तान तो उठा लेगा, लेकिन ये कनाडा को महंगा पड़ सकता है। जस्टिन ट्रूडो ने भयंकर ग़लती कर दी है। हरदीप सिंह निज्जर की लगभग तीन महीने पहले हत्या हुई, अब तक किसी पर आरोप तय नहीं हुए। ट्रूडो के बेबुनियाद आरोपों ने दोनों देशों के संबंध सबसे निचले स्तर पर पहुंचा दिए हैं। सामरिक नुक़सान की भरपाई होते होते दशक बीत जाया करते हैं। शीत युद्ध के दौर में सोवियत संघ के साथ भारत के संबंध ने कनाडा की त्यौरियां चढ़ाईं जो बेवजह थी। साल 1974 में हमने पोखरण में परमाणु परीक्षण किया जिसे तत्कालीन कनाडाई PM पियरे ट्रूडो ने ‘विश्वासघात’ करार देकर संबंधों की खाई को और गहरा कर दिया।
भारत के 1998 के परमाणु परीक्षणों के बाद, कनाडा ने प्रतिबंध थोपे। दोनों देशों के संबंध की डगर बहुत ऊंची नीची रही। शक कम नहीं हुआ, विश्वास की खाई भी नहीं पटी। 90 के दशक की शुरुआत में कनाडा ने कई सिख संगठनों को प्रश्रय दिया। वहां के स्थानीय नेताओं को WORLD SIKH ORGANISATION जैसे सिख संगठन का समर्थन मिला। कनाडा की राजनीति सिख प्रवासियों का दख़ल बढ़ता गया, नतीजा वो सियासी मजबूरी भी बनते गए। वक़्त गुज़रता गया, सिख अलगाववादियों को कनाडा में जगह मिलती गई, इसके उलट ब्रिटेन ने कभी भी ऐसे तत्वों को सियासी संरक्षण नहीं दिया।
1947 में भारत आज़ाद हुआ, राजनयिक मूल्यों के आधार पर कनाडा के साथ बेहतर संबंध बने। लेकिन शीत युद्ध के समय दोनों देशों के संबंध बिगड़े। चूंकि कनाडा नाटो के संस्थापक सदस्यों में से एक था, इसलिए भारत-रूस के संबंध ने उसे ख़ूब नाराज़ किया। वक़्त गुज़रा, दुनिया बदली, प्राथमिकताएं बदलीं। साल 1996 में ज्यां चेरेतिन भारत का दौरा करने वाले पहले कनाडाई प्रधानमंत्री बने, तो इसे रिश्तों पर जमी बर्फ पर पिघलाने की कोशिश के तौर पर देखा गया। लेकिन निज्जर के बाद सुक्खा दुन्नेके की हत्या होने के बाद, दोनों देश पिछले कई दशक में सबसे बड़े तनाव कि स्थिति में हैं। संबंध उस दौर में पहुंच चुके हैं जहां मोदी सरकार ने कड़ा फैसला करते हुए कनाडा के लोगों के लिए वीज़ा सर्विसेज़ संस्पेंड कर दी है। भारत सरकार के इस फ़ैसले का मतलब है कि कनाडा के लोग फ़िलहाल भारत नहीं आ सकेंगे।
भारत-कनाडा के तनाव ने कुछ ज़रूरी सवाल खड़े कर दिए हैं। कूटनीतिक तल्खी से मुक्त व्यापार का क्या होगा। भारत कनाडा को ऑर्गेनिक केमिकल्स, दवाएं, फार्मा प्रोडक्ट्स, आयरन, स्टील, ज्वेलरी, सजावटी पत्थर का निर्यात करता हैं। उधर, भारत कनाडा से आयरन स्क्रैप, खनिज, न्यूज़ प्रिंट्स, वुड पल्प, पोटाश, और दालें लेता है। भारत में कनाडा की 600 से ज़्यादा कंपनियां काम कर रही हैं, वहीं, कनाडा में भी ढेर सारी भारतीय कंपनियों का व्यापार है। सवा तीन लाख से ज़्यादा भारतीय छात्र कनाडा के कई संस्थानों में हैं, उनके भविष्य का क्या होगा ? अगर दोनों देशों के बीच माहौल और बिगड़ा तो कंपनियां इन देशों से निवेश निकालेंगी, जिसका सीधा असर शेयर बाज़ार और दोनों देशों की अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है।
अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की बिसात पर भारत बड़ा खिलाड़ी है। अमेरिका सहित पश्चिमी देश क़तई नहीं चाहेंगे कि उनकी भारत से दूरी बढ़े। ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया में बड़ी तादाद में सिख समुदाय रहता है, दोनों देश इस वोटबैंक को नाराज़ नहीं करना चाहेंगे। कनाडा और भारत, दोनों ही ब्रिटेन के क़रीबी दोस्त और कॉमनवेल्थ में सहयोगी हैं। उधर ऑस्ट्रेलिया का विदेश मंत्रालय भी चिंतित है। अमेरिका भी परेशान है, बाइडेन के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैक सुलिवन ने कहा, “हम इस मामले पर गंभीर हैं और उच्च स्तर पर भारतीयों के साथ संपर्क में हैं।” कनाडा और भारत के संबंधों में आए बदलाव के बीच बाइडन प्रशासन के लिए मुश्किल घड़ी है। अगर अमेरिका कनाडा का साथ देता है तो उसकी भारत के साथ वफ़ादारी पर सवाल उठेंगे। अगर अमेरिका भारत का साथ देता है तो वो अपने नाटो सहयोगी के ख़िलाफ़ जाता नज़र आएगा।
जस्टिन ट्रूडो को समझना होगा कि भारत से रिश्तों में खटास से कनाडा को नुक़सान होगा। इसी साल के अंत में भारत-कनाडा के बीच बिज़नेस डील पूरी होने की उम्मीद थी, जिस पर जस्टिन ट्रूडो ने पानी फेर दिया है। भारत-कनाडा की तल्ख़ी ‘कूटनीति’ के दायरे से बाहर निकल गई है। भारत इस वक्त दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था है। भारत 3.469 ट्रिलियन डॉलर GDP के साथ पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है तो कनाडा इस लिस्ट में नौंवे पायदान पर है। कनाडा की इकोनॉमी अमेरिका के भरोसे चलते है, लेकिन भारत के साथ बड़ा कारोबार है, जिस पर संकट के बादल छाए हैं। वक़्त रहते कनाडा होश में नहीं आया तो जोश में बहुत कुछ खो देगा। कनाडा अलग थलग पड़ चुका है, याद कीजिए अमेरिका समेत 3 देशों ने कनाडा का साथ देने से साफ़ इनकार कर दिया था। G20 से पहले ट्रूडो बखेड़ा चाहते थे, लेकिन बाइडेन-सुनक भारत को नाराज़ नहीं कर सकते, लिहाज़ा विवाद से ख़ुद को अलग कर लिया था। जस्टिन ट्रूडो को वक़्त की नज़ाकत और अपने देश की हैसियत समझने की ज़रूरत है।
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