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India News Bihar (इंडिया न्यूज), Crime News: बिहार के कई अस्पतालों में तांत्रिकों का प्रवेश अब एक गंभीर समस्या बन चुका है, जो अंधविश्वास और स्वास्थ्य सेवाओं के प्रति लोगों के बढ़ते संदेह को दर्शाता है। खासकर कोसी क्षेत्र के अस्पतालों में, जैसे सुपौल और सहरसा के अस्पतालों में, यह प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही है।
यहाँ तक कि सहरसा के मॉडल अस्पताल में, जिसे कोसी का पीएमसीएच भी कहा जाता है, एक महिला मरीज को अस्पताल के वार्ड से बाहर ले जाकर तांत्रिक से इलाज कराया गया। तांत्रिक ने महिला की गर्दन पकड़कर झाड़-फूंक की और दावा किया कि वह उसे ठीक कर देगा। यह घटना न केवल अस्पताल की व्यवस्थाओं की खामियों को उजागर करती है, बल्कि स्वास्थ्य सेवाओं के प्रति लोगों की घटती आस्था को भी दिखाती है।
सुपौल में भी इसी तरह के मामले सामने आए हैं, जहाँ सर्पदंश के शिकार एक 6 वर्षीय बच्चे और 25 वर्षीय महिला के इलाज के लिए परिजनों ने डॉक्टरों के बजाय तांत्रिकों का सहारा लिया। तांत्रिकों ने अस्पताल परिसर में घंटों झाड़-फूंक की, जबकि अस्पताल प्रशासन ने इस स्थिति को नजरअंदाज किया।
भागलपुर के नवगछिया में भी तांत्रिकों की गतिविधियाँ चर्चा का विषय रही हैं। यहां एक महिला तांत्रिक ने मृत घोषित की गई बच्ची को जीवित बताकर हंगामा खड़ा कर दिया। डॉक्टरों द्वारा बच्ची की मौत की पुष्टि के बावजूद, महिला तांत्रिक ने दावा किया कि बच्ची जिंदा है और उसे ठीक किया जा सकता है। इस स्थिति को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को कारवाई करनी पड़ी।
इन घटनाओं ने साफ कर दिया है कि बिहार में अंधविश्वास अभी भी स्वास्थ्य सेवाओं पर हावी है। तांत्रिकों का हस्तक्षेप न केवल चिकित्सा व्यवस्था की गुणवत्ता को प्रभावित कर रहा है, बल्कि लोगों के आधुनिक चिकित्सा सुविधाओं पर विश्वास को भी कमजोर कर रहा है। यह प्रश्न उठता है कि क्या बिहार में लोग अंधविश्वास के प्रभाव से बाहर आ पाएंगे और आधुनिक स्वास्थ्य सेवाओं को पूरी तरह से अपनाएंगे।
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