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Janmashtami 2024 : बिहार के इस गांव में कान्हा के दीवाने हैं मुसलमान, हर साल करते हैं जन्माष्टमी का इंतजार!

Ashish kumar Rai • LAST UPDATED : August 22, 2024, 8:22 pm IST
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Janmashtami 2024 : बिहार के इस गांव में कान्हा के दीवाने हैं मुसलमान, हर साल करते हैं जन्माष्टमी का इंतजार!

India News Bihar (इंडिया न्यूज़),Janmashtami 2024: बिहार में एक ऐसा गांव है जहां मुस्लिम परिवार हर साल जन्माष्टमी का इंतजार करते हैं. यहां हर कोई कान्हा का दीवाना है. आमतौर पर माना जाता है कि जन्माष्टमी या कृष्णाष्टमी एक हिंदू त्योहार है और लोग हर साल अपने कान्हा के जन्मोत्सव का बेसब्री से इंतजार करते हैं, लेकिन मुजफ्फरपुर जिले में स्थित यह गांव ऐसा है जहां मुस्लिम परिवार ‘बांसुरी बजाने वालों’ का इंतजार करते हैं. ये सभी जन्माष्टमी की रौनक बढ़ा देते हैं।

दरअसल, मुजफ्फरपुर के कुढ़नी प्रखंड के बड़ा सुमेरा मुर्गिया चक गांव में 25 से 30 मुस्लिम परिवार हैं, जो चार पीढ़ियों या उससे भी पहले से बांसुरी बनाते आ रहे हैं. उनका कहना है कि जन्माष्टमी के त्योहार पर उनकी बांसुरी की बिक्री बढ़ जाती है. गांव के मुस्लिम लोगों का कहना है कि वे पीढ़ियों से बांसुरी बनाते आ रहे हैं और परिवार चलाने का यही एकमात्र जरिया है।

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झारखंड, यूपी के साथ नेपाल, भूटान तक जाती हैं बांसुरी

बांसुरी बनाने में माहिर मोहम्मद आलम ने करीब 40 साल पहले अपने पिता से बांसुरी बनाने की कला सीखी और तब से इस काम में लगे हुए हैं। उन्होंने बताया कि यहां बनने वाली बांसुरी बेमिसाल होती है। यहां बनने वाली बांसुरी की मधुर धुन सबसे अलग होती है। यहां बनने वाली बांसुरी बिहार के सभी जिलों के साथ झारखंड, यूपी के साथ नेपाल, भूटान तक जाती है।

नरकट की लकड़ी से बनाई जाती है बांसुरी

वे बताते हैं, जन्माष्टमी के दौरान भगवान कृष्ण के वाद्य यंत्र बांसुरी की बिक्री बढ़ जाती है। दशहरा मेले के दौरान भी बांसुरी की बिक्री काफी होती है। यहां बनने वाली बांसुरी नरकट की लकड़ी से बनाई जाती है। जिसकी खेती भी यहां के लोग करते हैं। गांव में बांसुरी बनाने वाले नूर मोहम्मद 12 से 15 साल की उम्र से बांसुरी बना रहे हैं। उन्होंने बताया कि ईख को पहले छीलकर सुखाया जाता है। इसके बाद बांसुरी तैयार की जाती है।

एक बांसुरी बनाने में आता है इतने का खर्च

एक परिवार एक दिन में 100 से अधिक बांसुरी बनाता है। यहां बनने वाली बांसुरी की कीमत 10 रुपये से लेकर 250 से 300 रुपये तक है। इस गांव में ऐसे लोग भी हैं जो बांसुरी बनाते हैं और घूम-घूम कर बेचते भी हैं। आम तौर पर एक बांसुरी बनाने में पांच से सात रुपये का खर्च आता है।

यह भी बताया कि अब ईख के पौधों में कमी आ गई है, फिर भी यहां के लोग अभी भी ईख से पारंपरिक तरीके से बांसुरी बनाते हैं। बांसुरी बनाने के लिए कारीगर दूसरे जिलों से भी ईख खरीदते हैं। बांसुरी कारीगरों का दर्द है कि उन्हें अपनी कला को बचाए रखने के लिए कोई मदद नहीं मिल रही है। उनकी मांग है कि सरकार उन्हें आर्थिक मदद दे, ताकि इस कला को विलुप्त होने से बचाया जा सके।

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