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इंडिया न्यूज, ITR News (Income Tax Return Filing Deadline): इनकम टैक्स रिटर्न भरने वालों के लिए जरूरी खबर है। यदि आप भी इनकम टैक्स रिटर्न भरते हैं तो जानना जरूरी है कि वित्त वर्ष 2021-22 यानी एसेसमेंट ईयर 2022-23 के लिए इनकम टैक्स रिटर्न भरने की डेडलाइन पास आ गई है। आईटीआर फाइल करने की आखिरी तारीख 31 जुलाई 2022 है। वैसे तो हर बार आईटीआर भरने की डेडलाइन में बदलाव होता है लेकिन आप इस आस में मत बैठे। क्योंकि यदि इस बार आईटीआर भरने की आखिरी तारीख नहीं बढ़ती है तो आपको जुर्माना भरना पड़ सकता है। इसलिए 31 जुलाई से पहले ही आईटीआर फाइल कर दें।
आईटीआर भरते समय आपको यह जानना जरूरी है कि टैक्सेबल इनकम कैसे पता करें। इसी को लेकर आज हम आपको बता रहे कि आईटीआर फाइलिंग के दौरान अपनी सैलरी के अलावा होने वाली इनकम को कैसे शो करें-
यदि आपकी आय का सोर्स सिर्फ सैलरी है तो फिर आपको ज्यादा तकलीश लेने की जरूरत नहीं है। वेतनभोगी लोग सिर्फ फॉर्म-16 से टैक्सेबल इनकम का पता लगा सकते हैं और आसानी से आईटीआर भर सकते हैं। फॉर्म-16 में अब तक कटे टैक्स, कुल वेतन, कर छूट और डिडक्शंस आदि का ब्योरा दिया होता है। एक तरह से कहें तो फॉर्म-16 टीडीएस का भी दस्तावेज है।
आजकल सैलरी में शायद ही किसी का ठीक से गुजर बसर होता है। इसी कारण अधिकतर लोग पैसिव इनकम यानि कि अप्रत्यक्ष आय के लिए भी काम करते हैं। इसमें सैलरी के अलावा किराये से आय, शेयर या म्यूचुअल फंड से कमाई शामिल है। इनकम टैक्स एक्ट के मुताबिक टैक्सेबल आय 5 श्रेणियों में बांटा गया है। इनमें वेतन से आय, कैपिटल गेन से कमाई, हाउस प्रॉपर्टी से आय, कारोबार और अन्य सोर्स से आय शामिल हैं।
सैलरी के अलावा बहुत से लोग आज रियल एस्टेट में निवेश करके अप्रत्यक्ष आय प्राप्त कर रहे हैं। ऐसे लोगों के लिए इनकम का सबसे प्रमुख स्रोत किराया होता है। लोग घर खरीदकर उसे किराये पर चढ़ाते हैं। यदि आप भी ऐसा करते हैं तो इस कैटेगरी में 3 बातें मुख्य बातें हैं। आपको ध्यान रखना होगा कि आपकी प्रॉपर्टी सेल्फ-आक्यूपाइड है या रेंटल प्रॉपर्टी। यानि कि किराए पर चढ़ाई जा सकने वाली प्रॉपर्टी।
दरअसल, सेल्फ-आक्यूपाइड प्रॉपर्टी वह संपत्ति है जिस पर व्यक्ति का स्वयं का कब्जा है। एक से अधिक प्रॉपर्टी रखने वाले अपने पास एक प्रॉपर्टी को सेल्फ-आक्यूपाइड प्रॉपर्टी के रूप में चुन सकते हैं। सेल्फ आक्यूपाइड प्रॉपर्टी से इनकम नहीं मानी जाएगी। वहीं यदि इस पर होम लोन लिया हुआ है तो ब्याज पर 2 लाख रुपए तक और मूलधन के भुगतान पर 80C के तहत अधिकतम 1.5 लाख रुपये तक कर छूट का दावा भी किया जा सकता है।
दूसरी ओर, किराए पर दी गई संपत्ति रेंटल प्रॉपर्टी कहलाती है। ऐसी प्रॉपर्टी जो ‘सेल्फ-आक्यूपाइड’ नहीं है और किराये पर भी नहीं चढ़ी है, इन्हें ‘डीम्ड टू बी लेट आउट’ यानी किराये पर उठाई जा सकने वाली संपत्ति कहा जाता है।
मकान-दुकान, म्यूचुअल फंड और शेयर आदि की खरीद-बिक्री से होने वाले आय पर टैक्स देना जरूरी होता है। इनकी बिक्री से हुए मुनाफे को कैपिटल गेन कहा जाता है। कैपिटल गेन भी दो श्रेणियों में विभाजित हैं। शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन और लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन। दोनों के लिए टैक्स की अलग-अलग दरें होती हैं। इसी हिसाब से आपको टैक्स देना होेता है।
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