Environment/Technology: सर्दियां आते ही दिल्ली NCR में प्रदूषण का कहर भी तेजी से बढ़ने लगता है. खासकर सर्दियों में जब AQI 300 से ऊपर पहुंच जाता है, तो लोगों में स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं ज्यादा ही दिखने लगती हैं. दिल्ली NCR में प्रदूषण का मुख्य कारण गाड़ियों से निकलने वाला धुआं और पंजाब, हरियाणा में होने वाला पराली दहन है. वाहनों से निकलने वाले उत्सर्जन को हाइड्रोजन कारों के इस्तेमाल द्वारा रोका जा सकता है.
शून्य उत्सर्जन तकनीक वाली हाइड्रोजन कारें प्रदूषण की समस्या से निपटने के क्षेत्र में क्रांति ला सकती हैं. ये कारें हाइड्रोजन ईंधन से चलती हैं, केवल पानी छोड़ती हैं.
हाइड्रोजन कारें: तकनीक और कार्यप्रणाली
हाइड्रोजन कारें फ्यूल सेल से बिजली बनाती हैं, जहां हाइड्रोजन ऑक्सीजन से मिलकर बिजली उत्पन्न करती है. इस प्रक्रिया में बायप्रोडक्ट के रूप में केवल पानी निकलता है, जिससे कोई प्रदूषण नहीं होता है. टोयोटा मिराई जैसी हाइड्रोजन कारें जो 500-700 किमी की रेंज देती हैं और 3-5 मिनट में रिफ्यूल हो जाती हैं, दिल्ली NCR के लिए विशेष उपयोगी हैं. भारत में नितिन गडकरी ने इन्हें संसद में प्रदर्शित किया था, जो दिल्ली जैसे शहरों के लिए आदर्श है.
प्रदूषण कम करने में भूमिका
हाइड्रोजन कारें दिल्ली के वाहन उत्सर्जन (कुल प्रदूषण का 30-40%) को शून्य कर सकती हैं. ग्रीन हाइड्रोजन मिशन के तहत पायलट प्रोजेक्ट्स शुरू किये गए हैं, जैसे हाइड्रोजन बसें और ट्रक. 2030 तक 1000+ वाहन तैनात करने का लक्ष्य प्रदूषण 10-15% घटा सकता है. लेकिन इसमें तेजी तभी आएगी जब सार्वजनिक वाहनों के साथ निजी वाहन भी हाइड्रोजन ईंधन चालित हो जायेंगे. हाइड्रोजन कारों के इस्तेमाल से शून्य टेलपाइप उत्सर्जन होगा जिससे स्मॉग घटेगा. हाइड्रोजन कारें जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करके स्वच्छ ऊर्जा और पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देगा और भारत को 2047 तक ‘ऊर्जा के मामले में आत्मनिर्भर’ बनने की राह में बड़ी भूमिका निभा सकती हैं.
चुनौतियां और समाधान
हालांकि, कई फायदे होने के बावजूद हाइड्रोजन कारों का उपयोग बढ़ाना अभी भी एक बड़ी चुनौती है. रिफ्यूलिंग स्टेशन की कमी और उच्च लागत (5-7 करोड़) इसकी सबसे बड़ी बाधा हैं. इन कारों के इस्तेमाल में सबसे बड़ी चुनौती ईंधन और चार्जिंग की है. इन इलेक्ट्रिक चार्जिंग कारों के इस्तेमाल के न बढ़ने का कारण यह भी है कि अभी हर जगह पर्याप्त चार्जिंग स्टेशन नहीं है, इसलिए इन्हें हर जगह नहीं ले जाया जा सकता. सरकार ग्रीन-ब्लू प्लेट्स और चार्जिंग स्टेशन बनाने की योजना बना रही है. हाइड्रोजन कारों की खरीद पर पर्याप्त सब्सिडी और उचित इंफ्रास्ट्रक्चर ही देश में इनके उपभोग को बढ़ावा दे सकता है.