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वो अरबपति जिसे 4 बार हुआ प्यार, लेकिन कभी नहीं कर पाया शादी; जानें कैसे जंग ने छीन लिया मोहब्बत

Ratan Tata: टाटा ने कहा था कि वे चार बार शादी करने के करीब पहुंचे, लेकिन हर बार किसी न किसी कारण से पीछे हट गए.

Written By: Divyanshi Singh
Last Updated: December 28, 2025 11:19:37 IST

Ratan Tata: रतन टाटा को किसी पहचान की ज़रूरत नहीं है. इंडस्ट्रियलिस्ट, एंटरप्रेन्योर और टाटा संस के ऑनरेरी चेयरमैन अपने समाज सेवा के कामों के लिए जाने जाते हैं.लेकिन रतन टाटा की पर्सनल लाइफ के बारे में बहुत कम बातें सामने आई हैं.रतन टाटा ने कभी शादी नहीं की. लेकिन क्या आपको पता है कि वे चार बार शादी करने के करीब थे. 

4 बार हुआ था प्यार

सीएनएन इंटरनेशनल के टॉक एशिया को दिए एक इंटरव्यू में टाटा ने कहा था कि, “मैं चार बार शादी करने के बहुत करीब आया और हर बार डर या किसी न किसी वजह से पीछे हट गया.” “हर बार अलग था, लेकिन जब मैं पीछे मुड़कर देखता हूं तो इसमें शामिल लोगों को देखता हूं. मैंने जो किया वह कोई बुरी बात नहीं थी. मुझे लगता है कि अगर शादी हो जाती तो यह और भी मुश्किल हो सकता था.”

जब उनसे पूछा गया कि उन्हें कितनी बार प्यार हुआ है, तो उन्होंने माना, “सच में, चार बार”. जब सीएनएन इंटरनेशनल के टॉक एशिया प्रोग्राम को दिए एक इंटरव्यू में रतन टाटा से उनकी लव लाइफ के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा, “मैं शायद सबसे ज़्यादा सीरियस तब था जब मैं यूएस में काम कर रहा था और हमारी शादी न होने का एकमात्र कारण यह था कि मैं इंडिया वापस आ गया और वह मेरे पीछे आने वाली थी. वह भारत-चीन लड़ाई का साल था. हिमालय के बर्फीले, सुनसान हिस्से में इस लड़ाई को यूनाइटेड स्टेट्स में इंडिया और चीन के बीच एक बड़े युद्ध के रूप में देखा गया और इसलिए, वह नहीं आई और आखिरकार उसके बाद US में शादी कर ली.” 

टाटा की ज़िंदगी में उस अमेरिकन महिला के बारे में बहुत कम जानकारी है. 1962 में टाटा अपनी दादी की खराब सेहत की वजह से भारत लौट आए. जब ​​उनसे पूछा गया कि क्या जिन महिलाओं से वह प्यार करते थे, उनमें से कोई अब भी शहर में है, तो उन्होंने हाँ में जवाब दिया, लेकिन इस बारे में और कुछ नहीं कहा.

10 साल के थे तब माता-पिता हो गए थे अलग

रतन टाटा का जन्म 28 दिसंबर, 1937 को गुजरात के सूरत में हुआ था. वे नवल टाटा और सुनी कमिश्नर के बेटे थे. जब रतन 10 साल के थे तब उनके माता-पिता अलग हो गए जिसके बाद उन्हें उनकी दादी नवाजबाई टाटा ने गोद ले लिया. उनका बचपन कई चुनौतियों से भरा था लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी. टाटा ने अपनी शुरुआती पढ़ाई मुंबई के कैंपियन स्कूल से की जिसके बाद उन्होंने शिमला के कैथेड्रल और जॉन कॉनन स्कूल और बिशप कॉटन स्कूल में अपनी पढ़ाई जारी रखी. बाद में उन्होंने न्यूयॉर्क के रिवरडेल कंट्री स्कूल और कॉर्नेल यूनिवर्सिटी से आर्किटेक्चर में डिग्री हासिल की. ​​अपनी पढ़ाई के दौरान उन्होंने हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से बिजनेस की भी पढ़ाई की.

टाटा ग्रुप से की करियर की शुरुआत

रतन टाटा ने अपने करियर की शुरुआत टाटा ग्रुप से की, जो उनके परिवार की बनाई हुई कंपनी थी. 1991 में, जे.आर.डी. टाटा के रिटायर होने के बाद, रतन टाटा ने टाटा ग्रुप की कमान संभाली. अपनी दूर की लीडरशिप और कड़ी मेहनत से, उन्होंने टाटा ग्रुप को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया. उनकी लीडरशिप में, टाटा ग्रुप ने जगुआर लैंड रोवर, टेटली टी और कोरस सहित कई इंटरनेशनल एक्विजिशन किए. टाटा ने ग्रुप को 100 से ज़्यादा देशों में फैलाया और इसे एक ग्लोबल ब्रांड में बदल दिया.

टाटा नैनो: आम आदमी की कार

रतन टाटा के समय में, टाटा ग्रुप ने टाटा नैनो लॉन्च की, जिसे उस समय की सबसे सस्ती कार माना जाता था. इस प्रोजेक्ट का मकसद आम भारतीय को एक सस्ती गाड़ी देना था. हालांकि यह कार मार्केट में बहुत ज़्यादा सफल नहीं रही, लेकिन रतन टाटा के विज़न ने उन्हें आम लोगों के और करीब ला दिया.

परोपकार और नैतिक लीडरशिप

रतन टाटा न केवल एक उद्योगपति थे, बल्कि एक परोपकारी और मानवतावादी भी थे. उनके नेतृत्व में, टाटा ग्रुप ने शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण विकास के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया. टाटा ट्रस्ट के माध्यम से, उन्होंने गरीब और वंचित समुदायों के लिए कई कल्याणकारी योजनाओं का समर्थन किया. उनके सामाजिक और औद्योगिक योगदान के लिए, उन्हें भारत के दो सबसे बड़े नागरिक सम्मानों से सम्मानित किया गया: पद्म भूषण (2000) और पद्म विभूषण (2008).

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