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अजीत मैंदोला, नई दिल्ली : अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों को देखते हुए बीजेपी (BJP) ने अभी से राजस्थान (RAJASTHAN), मध्यप्रदेश (MADHYA PRADESH) और छत्तीसगढ़ (CHHATTISGARH) को लेकर रणनीति (BJP’s master plan ready For Upcoming elections) बनानी शुरू कर दी है। राजस्थान और छत्तीसगढ़ मे तो सांसदों को संगठन के साथ अभी से बैठकें कर तालमेल बिठाने को कह दिया गया है। वहीं मध्य्प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (SHIVRAJ SINGH CHOUHAN) सांसदों और संगठन के साथ मिल तालमेल बिठाने में जुट गये हैं।
एक मीटिंग दिल्ली में कर चुके है। कोशिश यही की जा रही है कि केंद्र की मोदी सरकार की योजनाओं के साथ साथ बीजेपी शासित प्रदेशों की योजनाओं को आमजन तक पहुंचाया जाए। राजस्थान और छत्तीसगढ़ जहां पर बीजेपी की सरकार नही है कांग्रेस सरकारों की खामियों को उजागर कर हमला बोला जाये।
बीजेपी की राज्य इकाइयां कांग्रेस सरकारों की मोचार्बंदी पर लगे हुए भी हैं। उत्तर प्रदेश की शानदार जीत के बाद बीजेपी इन तीनो राज्यों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PRIME MINISTER NARENDRA MODI) को ही आगे कर चुनाव लड़ने की योजना बना रही है साथ ही उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ (YOGI ADITYANATH) भी प्रमुख रोल में होंगे।
सूत्रों की माने तो राजस्थान और छत्तीसगढ़ में तो पार्टी नेताओं को कह दिया गया है कि पार्टी किसी को सीएम चेहरा नही बनायेगी। सामूहिक रूप से चुनाव लड़ा जाएगा। जहां तक मध्य्प्रदेश का सवाल है तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के मामले में अभी कुछ भी स्पष्ठ नही है। हालांकि चौहान ने अभी से चुनावों को लेकर गतिविधियां बढ़ा दी हैं। सांसदों से लेकर संगठन के साथ तालमेल बिठाने में जुट गए हैं।
पिछला चुनाव पार्टी ने चौहान की अगुवाई में लड़ा था, लेकिन सरकार नहीं बनाई पाई थी। हालांकि कांग्रेस में टूट होने के बाद बीजेपी ने फिर वापसी की और चौहान फिर मुख्यमंत्री बनाये गए। उस समय कांग्रेस की टूट में अहम भूमिका निभाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) 2018 में कांग्रेस (CONGRESS) की तरफ से मुख्यमंत्री का एक प्रमुख चेहरा थे जो अब बीजेपी में हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने सिंधिया को अपनी कैबिनेट में मंत्री पद तो दिया ही साथ ही उनको जहां पर उनका बचपन बीता 27 सफदरजंग रोड सरकारी आवास के रूप में आवंटित भी कर दिया गया।
सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ने के बाद दो साल के भीतर बीजेपी और संघ में अच्छी पैठ बना ली है। प्रदेश बीजेपी की राजनीति में वह पूरी तरह से सक्रिय हैं। बीजेपी 2023 में सिंधिया को चेहरा बनाएगी या चौहान ही बने रहेंगे अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगा। लेकिन इतना तय है कि आने वाले दिनों में मध्य्प्रदेश पर पार्टी स्थिति साफ करेगी। क्योंकि चौहान बीजेपी में अकेले मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने लगातार मुख्यमंत्री होने का नया रिकॉर्ड बनाया है। लेकिन यह तय है कि यूपी की जीत के बाद आये राजनीतिक बदलाव का असर मध्य्प्रदेश के साथ राजस्थान की राजनीति पर भी पड़ना तय है।
क्योकि नेतृत्व को लेकर राजस्थान बीजेपी पूरी तरह से दो गुटों में बंटी हुई है। प्रदेश बीजेपी की अगुवाई प्रदेश अध्य्क्ष सतीश पूनिया करते हैं। आलाकमान के निर्देश पर वह लगातार संगठन को साथ ले अभियान में लगे हुए हैं। यही नहीं सांसदों के साथ बैठक कर वह केंद्र व राज्य के बीच तालमेल बनाने में भी लगे हैं।
दूसरी तरफ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे (Chief Minister Vasundhara Raje) का अपना गुट है। उन्होंने एक तरह से पार्टी से अलग हट अपनी समानांतर व्यवस्था खोली हुई है। इसमें कोई दो राय नही है कि प्रदेश बीजेपी में वह भी ताकतवर नेता हैं।
दो बार मुख्यमंत्री भी रही हैं।लेकिन पिछली बार मोदी लहर होने के बाद भी पार्टी उनकी अगुवाई में चुनाव हार गई थी। उनके समर्थक लगातार इसी कोशिश में लगे भी हैं उनको प्रदेश का नेतृत्व सौंप चेहरा घोषित किया जाये। लेकिन उत्तर प्रदेश समेत चार राज्यों में मिली भारी जीत के बाद बीजेपी में तो राजनीतिक समीकरण पूरी तरह से बदले ही हैं। देश की राजनीति में भी बड़ा बदलाव आया है। कांग्रेस के लगातार कमजोर होने और बीजेपी आलाकमान के और ताकतवर होने से बहुत कुछ बदल गया है। अभी लगता नही है कि बीजेपी आलाकमान को कोई नेता चुनौती दे सकता है।
ऐसे में प्रदेश बीजेपी में अब वही होगा जो दिल्ली से आलाकमान तय करेगा। जो संकेत मिल रहे हैं उससे साफ है कि बीजेपी राजस्थान में बिना चेहरे के ही चुनाव लड़ेगी। जीतने के बाद ही चेहरा तय होगा। जहाँ तक वसुंधरा राजे (Vasundhara Raje) का सवाल है तो वह भी बदले हालात में अब पहले दिल्ली को ही साधने की कोशिश करेंगी। क्योंकि पहले की तरह वह अब दिल्ली से ठकराव मोल नही लेना चाहेंगी। जहाँ तक प्रदेश बीजेपी का सवाल है तो वह भी दिल्ली के निर्देश मानेगी।
संकेत यहाँ तक हैं दिल्ली ही सब कुछ तय करेगा। ऐसे भी संकेत हैं कि राजस्थान और मध्य्प्रदेश में कुछ सांसदों को विधानसभा का चुनाव भी लड़ाया जा सकता है। इन राज्यों के चुनाव लोकसभा चुनाव से 6 माह पहले होते हैं, इसलिये पार्टी कुछ सांसदों को राज्य की राजनीति में उतार सकती है। लेकिन यह तय है इस बार राजस्थान, मध्य्प्रदेश ओर छत्तीसगढ़ की चुनाव रणनीति पिछली बार से अलग होगी।
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