India News(इंडिया न्यूज), Deepak Vishwakarma, Chhattisgarh Election: छत्तीसगढ़ में अब सत्ता पर आसीन कांग्रेस और भाजपा चुनावी मोड पर आ चुके हैं। भाजपा ने तो पहली सूची में 21 उम्मीदवारों की सूची जारी कर अपनी पहली चाल चल दी है। अब बारी कांग्रेस की है। संगठन के लिहाज़ से बात करें तो BJP प्रभारी माथुर लगभग सभी विधानसभा के कार्यकर्ताओं से बात कर चुके हैं। वहीं कांग्रेस प्रभारी कुमारी सैलजा सभी सीटों तक नहीं पहुंच पाई हैं। उधर कांग्रेस का संकल्प शिविर भी 90 में से आधी सीटों तक ही हो पाया है। इस पखवाड़े तक पहली सूची जारी होने की उम्मीद जताई जा रही है।
सियासी जानकारो को सबसे अधिक सतनामी समाज के धर्म गुरू बालदास का भाजपा प्रवेश चौंका रहा है। कांग्रेस की प्रदेश प्रभारी सैलजा दलित समुदाय से आती हैं फिर भी बालदास ने भाजपा का दामन थाम लिया। बालदास ने 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा का साथ दिया था तो 10 में से 9 सीटें बीजेपी की झोली में चली गई थी, और वही 2018 में कांग्रेस को सपोर्ट किया तो 10 में से 7 सीटें सत्ता में बैठी कांग्रेस को मिल गई।
छत्तीसगढ़ में यह विधानसभा चुनाव कई मायनों में अहम माना जा रहा है। ड़ेढ़ दशक भाजपा ने छत्तीसगढ़ पर राज किया। वही उस दौर में भी लड़ाई कांग्रेस V/S भाजपा के बीच ही रही। इस बार भी कांग्रेस सरकार वर्सेस भाजपा के बीच मुकाबला है। सत्ता की बात करें तो भूपेश बघेल ऐसे मुख्यमंत्री हैं, जो हर विधानसभा तक पहुंच चुके हैं। उसमे भी तक़रीबन तीन-तीन गांव के लोगों से सीधा संवाद कर चुके हैं। एक-एक विधानसभा में तीन-तीन जगह भेंट मुलाकात कार्यक्रम के बाद अब वे संभाग स्तरीय युवाओं से सीधे संवाद कर रहे हैं। मगर संगठन लेवल पर जिस तरह काम होना चाहिए उसमें कांग्रेस के लोगों का ही मानना है कि पार्टी उसमें पिछड़ रही है।
संगठन के लिहाज से देखें तो भाजपा ने ओम माथुर जैसे दिग्गज रणनीतिकार को उतारा है। माथुर के नाम पर गुजरात से लेकर महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में जीत दिलाने का सेहरा बंधा है। दूसरी ओर कांग्रेस की प्रभारी कुमारी सैलजा हैं। पीएल पुनिया के बाद सैलजा प्रभारी बनीं। उनके प्रभारी बनने के बाद पीसीसी चीफ बदले और प्रदेश कार्यकारिणी भी। मगर संगठन को जिस तरह रिचार्ज होना चाहिए वो नजर नहीं आ रहा। हालाँकि ताकत अपनी पूरी ताक़त झोके हुए है। सैलजा की गिनती तेज तर्रार नेत्री में होती है। केंद्र में वे मंत्री रह चुकी हैं। अब उसका कितना लाभ मिलेगा ये आगामी चुनाव ही बता पाएगा।
वहीं अपनी करारी हार के बाद भाजपा फूक फ़ूक कर कदम रख रही है। भाजपा ने 21 सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा कर यह संकेत दे दिए हैं कि इस बार वह नए चेहरों पर दांव लगाएगी। पूर्व गृहमंत्री पैकरा और OBC समाज के नेता चंद्रशेखर साहू को टिकट नहीं मिली। यह सब ओम की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। कांग्रेस में पहले ही ज़रूरत से ज़्यादा 71 विधायक हैं। सिटिंग विधायक की टिकट काटना पार्टी के लिए आसान बात नहीं होगी। जिसका ख़ामियाज़ा भी भुगतना पड़ सकता है, क्योंकि सरकार के चेहरे और सरकार से तो जनता खुश है पर विधायकों के लिए नाराजगी है। ऐसे में सैलजा के सामने यह चुनौती होगी कि किस सीट से किसका नाम काटें और किस नए को मैदान में उतारे।
छत्तीसगढ़ में अभी के हालात को देखें तो भाजपा के बजाय कांग्रेस को सीटें खोने का डर है, क्योंकि भाजपा के पास 13 सीटें हैं। भाजपा संगठन इस बात के लिए आश्वस्त है कि हर हाल में सीटों की संख्या बढ़ेगी। इसी आत्म विश्वास के साथ भाजपा ने आचार संहिता से बहुत पहले 21 प्रत्याशी घोषित कर दिए। इसके विपरीत कांग्रेस में फिलहाल टिकट घोषित करने पर मंथन चल रहा है। दावेदारों की संख्या दर्जनों में है। ऐसे में टिकट वितरण में चूक कांग्रेस को नुक़सान दे सकती है। सियासी प्रेक्षकों का कहना है कि सत्ताधारी पार्टी के विधायकों के खिलाफ एंटी इंकाम्बेंसी अधिक है। कांग्रेस जितने नए विधायकों को टिकिट देगी, उसकी जीत की गारंटी उतनी ही अधिक बढ़ेगी। वही भाजपा के पास उम्मीदवारों का टोटा है क्योंकि बीते 15 सालों में मठाधीशों ने नई पौध को उपजने नहीं दिया जिसका संकट अब सामने दिख रहा है।
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