होम / Crime / आतंक के लिए शरीर नहीं, दिमाग की जरूरत :सुप्रीम कोर्ट ने लगाई 'जीएन साईबाबा' की रिहाई पर रोक

आतंक के लिए शरीर नहीं, दिमाग की जरूरत :सुप्रीम कोर्ट ने लगाई 'जीएन साईबाबा' की रिहाई पर रोक

BY: Ashish kumar Rai • LAST UPDATED : October 15, 2022, 4:25 pm IST
ADVERTISEMENT

संबंधित खबरें

आतंक के लिए शरीर नहीं, दिमाग की जरूरत :सुप्रीम कोर्ट ने लगाई 'जीएन साईबाबा' की रिहाई पर रोक

इंडिया न्यूज़(दिल्ली) : दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा को बॉम्बे हाईकोर्ट से बरी किए जाने के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की बेंच ने कहा कि मामले में गहन सुनवाई की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद रिहा नहीं होगा जीएन साईबाबा।

सुनवाई के दौरान साईबाबा की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट आर बसंत ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि पूर्व प्रोफेसर 8 साल से जेल में बंद हैं। ‘जीएन साईबाबा की उम्र 55 साल है और उनके शरीर का 90% हिस्सा काम नहीं करता है। वे व्हीलचेयर पर चलते हैं, इसलिए उन्हें जेल में अब न रखा जाए। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आतंकी और नक्सली गतिविधि में शामिल होने के लिए शरीर की नहीं ब्रेन की जरूरत होती है।

बॉम्बे हाईकोर्ट ने 14 अक्टूबर को दिए थे रिहाई के आदेश

14 अक्टूबर को बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने महाराष्ट्र सरकार को फटकार लगाते हुए साईबाबा को बरी कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि तुरंत साईबाबा को जेल से रिहा किया जाए। हाईकोर्ट से जीएन साईबाबा के बरी होने के बाद महाराष्ट्र सरकार की ओर से तुषार मेहता जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच में गए। मेहता ने कोर्ट में कहा ‘टेक्निकल आधार पर साईबाबा को रिहा किया गया है’। वे अगर जेल से बाहर आते हैं तो देश के लिए ये खतरनाक होगा। साईबाबा का माओवादियों से कनेक्शन है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि अर्जेंट सुनवाई के लिए आप चीफ जस्टिस के पास जाइए, हम रिहाई पर रोक नहीं लगा सकते।

माओवाद से लिंक होने के आरोप में हुई थी गिरफ्तारी

2013 में महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में पुलिस ने माओवाद से जुड़े महेश तिर्की, पी. नरोटे और हेम मिश्रा को गिरफ्तार किया। इन्हीं तीनों से पूछताछ के बाद जीएन साईबाबा के खिलाफ पुलिस कोर्ट गई। माओवाद से कनेक्शन के आरोप में 9 मई 2014 को दिल्ली आवास से साईबाबा को गिरफ्तार किया गया। 2015 में साईबाबा के खिलाफ UAPA के तहत केस दर्ज कर कार्यवाही शुरू की गई।

2017 में गढ़चिरौली कोर्ट ने पाया था साईबाबा को दोषी

महाराष्ट्र के गढ़चिरौली कोर्ट ने 2017 में साईबाबा समेत पांच अन्य को आरोपियों को UAPA और IPC के तहत दोषी ठहराया। साईबाबा और चार अन्य को आजीवन कारावास की सजा और एक को दस साल की कैद की सजा सुनाई थी। गढ़चिरौली कोर्ट के फैसले के खिलाफ साईबाबा ने बॉम्बे हाईकोर्ट में अपने बचाव में अपील दायर की थी।

Tags:

SUPRIM COURT

Get Current Updates on, India News, India News sports, India News Health along with India News Entertainment, and Headlines from India and around the world.

ADVERTISEMENT

लेटेस्ट खबरें

ADVERTISEMENT