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इंडिया न्यूज, दिल्ली:
गंगा की सहायक नदियों जैसे यमुना में निर्बाध जल प्रवाह हो इसके लिए केंद्र सरकार गंगा के बाद अब यमुना में न्यूनतम जल की सीमा तय करने जा रही है। ऐसा इसलिए किया जा रहा है कि नदी की निर्मलता बनी रहे।
उल्लेखनीय है राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएसमसीजी) ने गंगा में प्रवाह के लिए 2018 में अधिसूचना जारी की थी। इसमें गंगा के पारिस्थितिकी तंत्र को बेहतर रखने के लिए पानी की गुणवत्ता, मात्रा और उसकी सामयिकता को ध्यान में रखते हुए निर्देश दिए गए थे।
एनएमसीजी के महानिदेशक राजीव रंज मिश्र ने बताया कि इसी व्यवस्था का अनुसरण करते हुए गंगा की यमुना जैसी सहायक नदियों में हर समय न्यूनतम प्रवाह बनाए रखने की योजना बनाए जा रही है। न्यूनतम प्रवाह रखने से हमें गंगा का भी प्रवाह अविरल बनाए रहने में सहायता मिली है।
इसके अलावा एनएमसीजी गंगा के दोनों ओर दस-दस किमी तक बाढ़ वाले क्षेत्रों की गणना कराएगा ताकि उनका बेहतर रखरखाव कर गंगा बेसिन का उचित प्रबंधन किया जा सके। इससे जहां भूगर्भ जलस्तर की स्थिति को दुरुस्त करने में भी मदद मिलेगी वहीं गंगा का प्रवाह भी नियमित बना रहेगा।
गंगा की आंतरिक संरचना में वेटलैंड (दलदली क्षेत्र) का बड़ा महत्व है। उनका संरक्षण करना जरूरी है। गंगा के समग्र विकास के लिए उनकी रक्षा, संरक्षण और उनको पुनर्जीवित करना बहुत जरूरी है। ये वेटलैंड एक तरह से गंगा का उपचार करते हैं और उसके जल से विषैले तत्वों को पृथक करने का काम करते हैं।
एनएमसीजी ने इन वेटलैंड को दो श्रेणियों, बाढ़ क्षेत्र और शहरी वेटलैंड में बांट रखा है। बाढ़ क्षेत्र वाले वैटलैंड जहां नदियों के करीब होते हैं वहीं शहरी वेटलैंड शहरों के आसपास होते हैं। आज शहरी वेटलैंड का अस्तित्व अतिक्रमण और अंधाधुंध निर्माण के कारण खतरे में है।
मिश्र के अनुसार शहरी वैटलैंड के रखरखाव के लिए एनएमसीजी ने स्कूल फार प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर के सहयोग से स्थानीय हितधारकों के लिए अर्बन वैटलैंड प्रबंधन दिशा निर्देश तैयार कराए हैं। उन्होंने बताया कि एनएमसीजी कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के सहयोग से गांगेय प्रदेशों में आर्गेनिक खेती, बागवानी और कृषिवानिकी को बढ़ावा देने में लगा है। इससे जहां किसानों की आमदनी बढ़ेगी वहीं के साथ गंगा बेसिन में पांच किमी क्षेत्र तक जल प्रयोग और फसल विविधीकरण को सुधारा जा सकेगा।
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