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इंडिया, न्यूज:
Climate change जलवायु परिवर्तन को लेकर काम कर रही संस्था द इंटर गवर्नमेंटल पैनल आन क्लाइमेट चेंज (आइपीसीसी) का लक्ष्य उत्सर्जन के स्तर को जीरो करने का है। इसका तात्पर्य यह है कि ऐसी स्थिति जहां कोई भी देश ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन की मात्रा में बढ़ोतरी नहीं होने देगा। इसका लक्ष्य है कि वर्ष 2050 तक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियत से ऊपर नहीं जाने दिया जाए। बड़ा सवाल यह है कि क्या भारत इसके लिए तैयार है। क्या भारत ने इसके लिए तैयारी कर ली है। इसको लेकर दुनिया के सबसे बड़े कार्बन उत्सर्जक अमेरिका और चीन का क्या प्लान है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि भारत वर्ष 2070 तक कार्बन उत्सर्जन को नेट जीरो करने के लक्ष्य को हासिल कर लेगा। हालांकि ग्लासगो में जलवायु परिवर्तन पर शिखर सम्मेलन में देशों से अपेक्षा की जा रही थी कि वो इस लक्ष्य को 2050 तक पूरा कर लें। बता दें कि भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जक मुल्क है। कार्बन उत्सर्जक के मामले में पहले नंबर पर चीन है, फिर अमेरिका। यूरोपीय संघ को एक साथ लेने पर भारत की गिनती चौथे नंबर पर होती है। इस लक्ष्य का हासिल करने में भारत के समक्ष कई अवरोध हैं।
पर्यावरणविद विजय बघेल का कहना है कि भारत की तेजी से बढ़ती जनसंख्या, कोयले और तेल पर निर्भर अर्थव्यवस्था के कारण भारत में उत्सर्जन तेजी से बढ़ने की उम्मीद है। इसे रोकने के लिए सख्त कदम उठाने की जरूरत होगी। इस मामले में भारत का कहना है कि औद्योगिक देशों को इसका अधिक भार उठाना चाहिए, क्योंकि उनका उत्सर्जन में अधिक हिस्सा रहा है। भारत ने उत्सर्जन की तीव्रता को 2030 तक 2005 की तुलना में 33-35 फीसद तक घटाने का लक्ष्य रखा है।
भारत में 70 फीसद बिजली की जरूरत कोयले से होती है। वर्ष 2015 में भारत का लक्ष्य था कि 2022 तक वो पवन ऊर्जा, सौर्य ऊर्जा और हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्लांट से 175 गीगावाट बिजली पैदा करेगा। हालांकि, भारत इस लक्ष्य से काफी दूर है। सितंबर 2021 तक सिर्फ 100 गीगावाट बिजली इन स्रोतों से पैदा की जा रही है।
क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर (सीएटी) का मानना है कि भारत को 15 डिग्री के लक्ष्य को हासिल करने के लिए भारत जैसे विकासशील देशों को डी-कर्बनाइज करना होगा। इसका तात्पर्य यह है कि अर्थव्यवस्था की कार्बन के स्रोतों पर निर्भरता को समाप्त करना होगा। भारत ने डीकार्बनाइज करने के लिए एक तिहाई जमीन पर जंगल लगाने की योजना है। भारत का लक्ष्य 2030 तक 25 से 3 अरब पेड़ लगाने का है ताकि वातावरण से कार्बन डाइआक्साइल सोख सकें।
चीन, दुनिया का सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जक देश है। चीन पहले ही घोषणा कर चुका है कि वह 2060 तक कार्बन न्यूट्रल हो जाएगा। चीन ने यह भी कहा है कि उसका उत्सर्जन 2030 से पहले अपने चरम पर पहुंच जाएगा। दूसरे सबसे बड़े कार्बन उत्सर्जक देश अमेरिका ने नेट-जीरो तक पहुंचने के लिए 2050 तक का लक्ष्य रखा है। अमेरिका का कहना है कि वह 2035 तक अपने पावर सेक्टर को डी-कार्बनाइज कर देगा।
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