राजस्थान में यूं तो चुनाव के लिए अभी पूरे डेढ़ साल बचे हुए हैं, लेकिन चुनावी माहौल अभी से बनने लगा है। कांग्रेस आलाकमान ने गहलोत को अभी से खुला हैंड दे दिया है।
अजीत मैंदोला, नई दिल्ली। राजस्थान में यूं तो चुनाव के लिए अभी पूरे डेढ़ साल बचे हुए हैं, लेकिन चुनावी माहौल अभी से बनने लगा है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी पार्टी के साथ मिलकर अगले चुनाव की रणनीति बना ली है। सूत्रों की माने तो कांग्रेस आलाकमान ने गहलोत को अभी से खुला हैंड दे दिया है।
मुख्यमंत्री भी अभी से इसी कोशिश में है कि इस बार उनकी सरकार की उपलब्धियों को आगे कर स्थानीय मुद्दों पर चुनाव लड़ा जाए। लेकिन वहीं दूसरी तरफ बीजेपी चुनाव को दूसरे ट्रेक में ले जाने की कोशिश में जुट गई है। यह तय है कि बीजेपी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आगे कर केंद्र सरकार की उपलब्धियों को आधार बना चुनाव लड़ेगी। लेकिन इस बीच बुल्डोजर, करौली और अलवर की घटनाओं ने प्रदेश के माहौल को दूसरा रंग देने की कोशिश की गई है।
हालांकि अलवर राजगढ़ वाले मामले में कांग्रेस ने साफ कर दिया कि मंदिर तोड़ने के लिए बीजेपी जिम्मेदार है, क्योंकि राजगढ़ नगरपालिक बोर्ड में बीजेपी है। इसी तरह तोड़फोड़ का एक मामला सालासर में भी आया था। बीजेपी की तरफ से तूल दिए जाने के बाद पता चला कि राज्य का नही बल्कि भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण का है। ये मामला तो दब गया, लेकिन करौली को लेकर जमकर राजनीति हुई।
हालांकि राज्य सरकार ने स्थिति को जल्दी नियंत्रण में कर लिया। कांग्रेस की यही चिन्ता है कि बीजेपी जिस तरह से साम्प्रदायिक मुद्दे उठा रही है उससे कहीं वोटों का ध्रुवीकरण न हो जाए। इस बीच केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने बीजेपी शासित राज्यों में समान नागरिकता कानून लागू कराने की बात कर एक तरह से आने वाले चुनावों का एजेंडा तय कर दिया है। इस कानून के विरोध का सीधा मतलब वोटों का धुर्वीकरण होना है। फिलहाल कांग्रेस ने इस मामले में अभी चुप्पी साधी है।
इसमें कोई दो राय नही है कि गहलोत सरकार के खिलाफ साढ़े तीन साल से ज्यादा का समय होने के बाद भी अभी उनके और उनकी सरकार के खिलाफ कोई एंटी इंकनवेंशी नही है। विधायकों और मंत्रियों को लेकर जरूर सवाल उठ रहे हैं। मुख्यमंत्री गहलोत भी उसी हिसाब से रणनीति बना अपनी सरकार के फैसलों को ही आगे बढ़ाने पर जोर देते हैं।
उनकी सरकार ने जिस तरह कोरोना जैसी महामारी से निपटा उसकी राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी चर्चा हुई। कांग्रेस भी बड़ी उपलब्धि के रूप में चर्चा कर रही है। इसके साथ उनकी सरकार का इस साल का बजट अब तक का सर्वश्रेष्ठ बजट बताया जा रहा है।
कांग्रेस अगर पुरानी पेंशन व्यवस्था की बहाली, इंदिरा गांधी शहरी रोजगार गारंटी और चिरंजीवी योजना में 5 लाख की मदद 10 लाख करना जैसी उपलब्धियों को लेकर आगे बढ़ती है तो विपक्ष के पास इनका कोई जवाब नही है।
इसके साथ पानी से जुड़ी योजनाएं भी कांग्रेस के लिये बड़ा मुद्दा है। पूर्वी नहर योजना को राष्ट्रीय स्तर की बनाने को लेकर कांग्रेस बीजेपी पर हमलावर बनी है। कांग्रेस की एक ही परेशानी है कि उसके पास ऐसा कोई संगठन नही है जो योजनाओं का प्रदेश भर में प्रचार करे। और ना ही विधायक और नेता प्रचार में रुचि ले रहे हैं।
आपसी तनातनी के चलते उप्लब्धियों की चर्चा जितनी होनी चाहिये थी, नही हो रही है। गैरों से ज्यादा अपने सरकार को अस्थिर करने का मौका नही चूक रहे हैं। यही वजह है कि मुख्यमंत्री गहलोत को याद दिलाना पड़ता है कि दो साल पहले कैसे कुछ लोगों ने उनकी सरकार गिराने की कोशिश की थी।
बीजेपी इसी खींचतान का फायदा उठाने की कोशिश में आज भी है। दिल्ली खान मार्केट गैंग से जुड़े पत्रकार राजस्थान में बदलाव को लेकर जैसे ही खबरें चलवाते हैं बीजेपी को हमले का मौका मिल जाता है। खान मार्केट गैंग शब्द की खोज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में की थी। मतलब अंग्रेजी बोलने वाले कुछ खास लोग जो खान मार्केट में बैठ सरकार और पार्टी चलाने की रणनीति बनाते हैं।
हालांकि मोदी सरकार आने के बाद खान मार्केट गैंग सीमित हो गया है। केवल चंद कांग्रेसी ही उनका इस्तेमाल कर माहौल बनाते हैं। बीजेपी की नजर कांग्रेस की कमजोर कड़ियों के साथ साथ बुल्डोजर मामलों पर भी है। क्योंकि यूपी बीजेपी की जीत में बुल्डोजर ने अहम भूमिका निभाई। बीजेपी शासित प्रदेशों में बुल्डोजर ने जोर पकड़ लिया है। हालांकि कांग्रेस इसका विरोध कर रही है। लेकिन बीजेपी ने बड़ा चुनावी हथियार बना लिया है। देश की राजधानी दिल्ली के जहांगीर पूरी इलाके में बुल्डोजर से अतिक्रमण हटाने ने बड़ा तूल पकड़ लिया है।
बुल्डोजर का मामला कहीं ना कहीं हिन्दू मुस्लिम बनता जा रहा है। कांग्रेस अब इस कोशिश में है कि मामले को ज्यादा तूल न दिया जाए। लेकिन राजस्थान बीजेपी कोई मौका नही छोड़ना चाहती है। हालांकि राजस्थान बीजेपी में भी कई गुट है। लेकिन मजबूत केंद्रीय नेतृत्व के चलते बीजेपी कांग्रेस के मुकाबले कम बिखरी दिखती है।
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