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India News (इंडिया न्यूज)POCSO Case: दिल्ली हाईकोर्ट ने POCSO मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। जस्टिस प्रतिभा एम सिंह और अमित शर्मा की बेंच ने इस मामले में आरोपी को बरी करते हुए कहा कि नाबालिग पीड़िता द्वारा ‘शारीरिक संबंध’ शब्द का इस्तेमाल यौन उत्पीड़न नहीं माना जा सकता। निचली अदालत ने आरोपी को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। बेंच ने अपने फैसले में कहा कि यह स्पष्ट नहीं है कि निचली अदालत ने कैसे निष्कर्ष निकाला कि जब पीड़िता खुद आरोपी के साथ गई थी, तो उसका यौन उत्पीड़न कैसे हुआ?
अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि शारीरिक संबंध या ‘संबंध’ से यौन उत्पीड़न और फिर यौन उत्पीड़न में परिवर्तन को साक्ष्य द्वारा स्थापित किया जाना चाहिए और इसे अनुमान के रूप में नहीं निकाला जा सकता है।
अदालत ने 23 दिसंबर को पारित अपने फैसले में कहा कि केवल इस तथ्य से कि पीड़िता 18 वर्ष से कम उम्र की है, यह निष्कर्ष निकालने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है कि यौन उत्पीड़न हुआ था। पीड़िता ने सुनवाई के दौरान ‘शारीरिक संबंध’ शब्द का इस्तेमाल किया था, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि उसने इस शब्द का इस्तेमाल किस अर्थ में किया था।
पीठ ने फैसले में कहा कि ‘शारीरिक संबंध बनाना’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल भी POCSO एक्ट की धारा 3 या IPC की धारा 376 के तहत अपराध साबित करने के लिए काफी नहीं है। हालांकि POCSO एक्ट के तहत अगर लड़की नाबालिग है तो सहमति मायने नहीं रखती, लेकिन ‘शारीरिक संबंध’ जैसे शब्दों को यौन संबंध में नहीं बदला जा सकता, यौन उत्पीड़न की बात तो दूर की बात है।
पीठ ने कहा कि आरोपित निर्णय में किसी भी तरह का तर्क नहीं है और न ही दोषसिद्धि के लिए कोई तर्क दिया गया है। ऐसी परिस्थितियों में, निर्णय निरस्त किए जाने योग्य है। अपीलकर्ता को दोषमुक्त किया जाता है।
मार्च 2017 में नाबालिग लड़की की मां ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी कि उसकी 14 वर्षीय बेटी को पहले एक अज्ञात व्यक्ति बहला-फुसलाकर उसके घर से अगवा कर ले गया। नाबालिग को फरीदाबाद में आरोपी के साथ पाया गया। बाद में उसे गिरफ्तार कर लिया गया।
दिसंबर 2023 में निचली अदालत ने आरोपी को आईपीसी के तहत पॉक्सो के तहत यौन उत्पीड़न के अपराध में दोषी ठहराया और उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई। इसके खिलाफ आरोपी ने हाईकोर्ट में शिकायत की थी।
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