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इंडिया न्यूज, नई दिल्ली (Pregnant By Consent): दिल्ली हाईकोर्ट में एक अविवाहित महिला ने शुक्रवार को गर्भ गिराने की मांग करते हुए एक याचिका दाखिल की। हाईकोर्ट ने 25 साल की इस महिला को गर्भपात की अनुमति देने से इनकार कर दिया और कहा कि प्रसव के 20 हफ्ते बाद इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती। महिला इस महीने की 18 तारीख को प्रसव के 24 हफ्ते पूरा कर लेगी।
हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायाधीश सुब्रमण्यम प्रसाद की डिवीजनल बेंच ने फैसला सुनाते हुए पूछा कि आप बच्चे को क्यों मार रहे हैं? गोद लेने के लिए लोगों की बड़ी कतार है। न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा ने कहा कि कोर्ट यह सुनिश्चित करेंगी कि महिला को किसी सुरक्षित अस्पताल में भेजा जाए और वह प्रसव कराकर जा सके।
महिला ने यह कहते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया कि वह सहमति से प्रेग्ननेंट हुई है लेकिन बच्चे को जन्म नहीं दे सकती, क्योंकि वह अविवाहित है और उसके पार्टनर ने शादी करने से साफ इनकार कर दिया है।
महिला के वकील ने कोर्ट में यह दलील दी कि अविवाहित होने की वजह से महिला बच्चे को पालने के लिए शारीरिक, मानसिक और आर्थिक रूप से तैयार नहीं है। शादी के बिना बच्चे को जन्म देने से उसे बहुत ही ज्यादा मानसिक और शारीरिक पीड़ा होगी। वकील ने तर्क दिया कि यह महिला के लिए एक सामाजिक कलंक होगा और बच्चा भी नाजायज कहलाएगा।
इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि हम बच्चे को नहीं मार सकते। कानून हमें इसकी इजाजत नहीं देता है। महिला ने बच्चे को 24 हफ्ते तक गर्भ में रखा है। वह 4 हफ्ते और क्यों नहीं रख सकती? अदालत ने कहा कि हम महिला को बच्चा पालने के लिए मजबूर नहीं कर रहे हैं।
अदालत ने महिला को यह आश्वासन देते हुए कहा कि अदालत यह सुनिश्चित करेगी कि उसे अच्छे अस्पताल में भेजा जाए। आपकी लोकेशन किसी को पता नहीं चलेगा। आप बच्चे को जन्म दें, और वापस आ जाएं। इसका खर्च सरकार देखेगी, अगर सरकार भुगतान नहीं करती है तो मैं भुगतान करने के लिए तैयार हूं। कोर्ट ने याचिका को खारिज करते समय मेडिकल टर्मिनेशन आॅफ प्रेग्नेंसी रूल्स, 2021 का हवाला दिया और बताया कि सहमति से गर्भवती होने वाली अविवाहित महिला का केस इस नियम के तहत नहीं आता है। इसलिए आपकों को अपना गर्भ गिराने का अधिकार नहीं है।
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