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अहोई पूजा में एक अन्य विधान यह भी है कि चांदी की अहोई बनाई जाती है जिसे स्याहु कहते हैं। इस स्याहु की पूजा रोली, अक्षत, दूध व भात से की जाती है। पूजा चाहे आप जिस विधि से करें लेकिन दोनों में ही पूजा के लिए एक कलश में जल भर कर रख लें। पूजा के बाद अहोई माता की कथा सुनें और सुनाएं। पूजा के पश्चात अपनी सास के पैर छूएं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें। इसके पश्चात व्रती अन्न जल ग्रहण करती हैं।
Ahoi Ashtami 2021 Vrat Katha in Hindi : अहोई अष्टमी व्रत कथा और अहोई अष्टमी की कहानी
अहोई अष्टमी पर महिलाएं चांदी के मोती की माला भी बनाती हैं, जिसमें अहोई माता का लॉकेट पड़ा होता है।
हर साल इस माला में दो मोती और जोड़ दिए जाते हैं, इसको स्याउ कहा जाता है।
इसके बाद वे संतान के हाथों से जल ग्रहण करके व्रत का समापन करती हैं। पौराणिक मान्यता है कि अहोई अष्टमी के दिन व्रत रखने से संतान के कष्टों का निवारण होता है एवं उनके जीवन में सुख-समृद्धि व तरक्की आती है। ऐसा माना जाता है कि जिन माताओं की संतान को शारीरिक कष्ट हो, स्वास्थ्य ठीक न रहता हो या बार-बार बीमार पड़ते हों अथवा किसी भी कारण से माता-पिता को अपनी संतान की ओर से चिंता बनी रहती हो तो माता द्वारा विधि-विधान से अहोई माता की पूजा-अर्चना व व्रत करने से संतान को विशेष लाभ होता है।
कार्तिक मास कृष्ण पक्ष अष्टमी आरंभ- 28 अक्टूबर 2021 दिन बुधवार को दोपहर 12 बजकर 49 मिनट से
अष्टमी समाप्त-29 अक्टूबर 2021 दिन शुक्रवार को दोपहर 02 बजकर 09 मिनट से
अहोई अष्टमी पूजा का शुभ मुहूर्त- शाम 05 बजकर 39 मिनट से शाम 06 बजकर 56 मिनट तक है। पूजा का समय कुल मिलाकर 01 घंटा 17 मिनट रहेगा।
तारों को देखने का संभावित समय- शाम को 06 बजकर 03 मिनट पर
इस व्रत में बायना सास, ननद या जेठानी को दिया जाता है। व्रत पूरा होने पर व्रती महिलाएं अपनी सास और परिवार के बड़े सदस्यों का पैर छूकर आशीर्वाद लेती हैं। इसके बाद वह अन्न जल ग्रहण करती हैं। अहोई माता की माला को दीपावली तक गले में धारण किया जाता है।
व्रत के दिन प्रात: उठकर स्नान किया जाता है और पूजा के समय ही संकल्प लिया जाता है कि हे अहोई माता, मैं अपने पुत्र की लंबी आयु एवं सुखमय जीवन हेतु अहोई व्रत कर रही हूं। अहोई माता मेरे पुत्रों को दीघार्यु, स्वस्थ एवं सुखी रखेें अनहोनी से बचाने वाली माता देवी पार्वती हैं।
इसलिए इस व्रत में माता पर्वती की पूजा की जाती है। अहोई माता की पूजा के लिए गेरू से दीवाल पर अहोई माता का चित्र बनाया जाता है और साथ ही स्याहु और उसके सात पुत्रों का चित्र भी निर्मित किया जाता है। माता जी के सामने चावल की कटोरी, मूली, सिंघाड़े रखते हैं और सुबह दिया रखकर कहानी कही जाती है।
कहानी कहते समय जो चावल हाथ में लिए जाते हैं, उन्हें साड़ी-सूट के दुप्पटे में बांध लेते हैं। सुबह पूजा करते समय लोटे में पानी और उसके ऊपर करवे में पानी रखते हैं। ध्यान रखें कि यह करवा, करवा चौथ में इस्तेमाल हुआ होना चाहिए। इस करवे का पानी दिवाली के दिन पूरे घर में भी छिड़का जाता है।
संध्या काल में इन चित्रों की पूजा की जाती है। पके खाने में चौदह पूरी और आठ पूयों का भोग अहोई माता को लगाया जाता है। उस दिन बयाना निकाला जाता है। बायने में चौदह पूरी या मठरी या काजू होते हैं। लोटे का पानी शाम को चावल के साथ तारों को आर्ध किया जाता है।
अहोई पूजा में एक अन्य विधान यह भी है कि चांदी की अहोई बनाई जाती है जिसे स्याहु कहते हैं। इस स्याहु की पूजा रोली, अक्षत, दूध व भात से की जाती है। पूजा चाहे आप जिस विधि से करें लेकिन दोनों में ही पूजा के लिए एक कलश में जल भर कर रख लें। पूजा के बाद अहोई माता की कथा सुनें और सुनाएं। पूजा के पश्चात अपनी सास के पैर छूएं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें। इसके पश्चात व्रती अन्न जल ग्रहण करती हैं।
अहोई अष्टमी पर महिलाएं चांदी के मोती की माला भी बनाती हैं, जिसमें अहोई माता का लॉकेट पड़ा होता है।
हर साल इस माला में दो मोती और जोड़ दिए जाते हैं, इसको स्याउ कहा जाता है।
इस व्रत में किसी भी तरह से धारदार चीजों का उपयोग करना मना होता है। जैसे व्रत रखने वाली महिला चाकू से सब्जी आदि भी नहीं काट सकती हैं।
अहोई के दिन बनाई गई चांदी के मोती की माला को महिलाएं दीपावली तक अपने गले में पहनती हैं।
दिवाली का पूजन करने के बाद अगले दिन इस माला को उतार कर संभाल कर रख देना चाहिए।
इस दिन व्रत पारण करते समय या दिन में कोई सफेद चीज जैसे चावल, दूध, दही आदि का सेवन करना वर्जित माना जाता है।
पूजन के बाद किसी बुजुर्ग महिला को वस्त्र आदि भेंट करके आशीर्वाद लेना चाहिए।
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