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Ahoi Asthami के दिन जरुर पढ़े ये कथा, संतान की लंबी होगी उम्र, सुख समृद्धि से भर जाएगा घर

Ahoyi Ashtami 2025: अहोई अष्टमी का व्रत माताएं अपनी संतान के लिए रखती है, ऐसे में इस व्रत कथा को सुनने से उनकी उम्र लंबी होगी और घर में भी सुख- समृद्धि आएंगी.

Written By: shristi S
Last Updated: October 13, 2025 11:46:21 IST

Ahoyi Ashtami 2025 Vrat Katha: हिंदू धर्म में कार्तिक माह का विशेष महत्व होता है. इस माह में कई शुभ पर्व और व्रत मनाए जाते हैं, जिनमें से एक है अहोई अष्टमी. यह व्रत मुख्य रूप से माताओं द्वारा अपने बच्चों की लंबी आयु, निरोगी काया और सुख-समृद्धि के लिए रखा जाता है. वहीं जिन महिलाओं को संतान सुख की इच्छा होती है, वे भी इस व्रत को पूरे विधि-विधान से करती हैं। वर्ष 2025 में अहोई अष्टमी का व्रत 13 अक्टूबर (सोमवार) को रखा जा रहा है. इस दिन महिलाएं सूर्योदय से लेकर शाम तक निर्जला उपवास रखती हैं और शाम को तारा उदय होने के बाद अहोई माता को अर्घ्य देकर व्रत का पारण करती हैं. अहोई माता की पूजा, कथा और आरती के साथ दिन भर के उपवास को पूर्ण किया जाता है.

अहोई अष्टमी का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

‘अहोई’ शब्द का अर्थ होता है अनहोनी को होनी में बदल देना. ऐसा माना जाता है कि अहोई माता देवी पार्वती का ही एक स्वरूप हैं, जो संतानों की रक्षा करती हैं और मातृत्व सुख का आशीर्वाद देती हैं. यही कारण है कि इस व्रत में स्याहु (साही) के चित्र या आकृति की पूजा की जाती है. यह व्रत दीपावली से कुछ दिन पहले आता है और इसे विशेषकर उत्तर भारत के राज्यों में बड़े श्रद्धाभाव से मनाया जाता है.

 अहोई अष्टमी की पौराणिक कथा

बहुत समय पहले एक साहूकार रहता था. उसके सात बेटे और एक बेटी थी. एक दिन साहूकार की बेटी अपने मायके आई. घर की भाभियां घर को लीपने-पोतने के लिए मिट्टी लेने जंगल जा रही थीं, तो वह भी उनके साथ चली गई. जंगल में जहां वे मिट्टी काट रही थीं, वहीं एक स्याहु (साही) अपने सात बच्चों के साथ रहती थी. मिट्टी काटते समय अनजाने में बेटी की खुरपी स्याहु के एक बच्चे को लग गई और उसकी मृत्यु हो गई. इस घटना से स्याहु क्रोधित हो उठी और बोली कि मैं तुम्हारी कोख बांध दूंगी.  यह सुनकर साहूकार की बेटी डर के मारे रोने लगी और अपनी सभी भाभियों से विनती करने लगी कि कोई उसकी जगह यह श्राप ले ले.

सभी भाभियों ने इससे इंकार कर दिया, लेकिन सबसे छोटी भाभी ने ननद को बचाने के लिए खुद उस श्राप को स्वीकार कर लिया. परिणामस्वरूप, उसकी जो भी संतान होती, वह जन्म के सातवें दिन मर जाती. धीरे-धीरे उसकी सात संतानें इस श्राप की भेंट चढ़ गईं. दुखी होकर वह पंडित जी के पास गई और उपाय पूछा. पंडित जी ने उसे सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी. उसने पूरे मन से गाय की सेवा की और एक दिन सुरही गाय उसे स्याहु के पास ले गई. वह छोटी भाभी स्याहु की सेवा में लग गई. स्याहु उसकी भक्ति और समर्पण से प्रसन्न हो गई और उसे श्राप से मुक्ति देते हुए आशीर्वाद दिया कि तुझे सात पुत्र और सात बहुओं का सुख प्राप्त हो.

 

पूजा-विधि और व्रत की परंपरा

  • प्रातः स्नान के बाद अहोई माता का संकल्प लिया जाता है.
  • दीवार पर स्याहु (साही) का चित्र बनाया जाता है या लकड़ी/कपड़े की तस्वीर लगाई जाती है.
  • तांबे या पीतल के पात्र में जल भरकर रखा जाता है.
  • पूरे दिन निर्जला उपवास रखने के बाद शाम को तारे को अर्घ्य दिया जाता है.
  • इसके बाद अहोई माता की कथा सुनकर पूजा और आरती की जाती है.
  • पारण के बाद फलाहार या अन्न ग्रहण किया जाता है.

अहोई अष्टमी का क्या है महत्व?

अहोई अष्टमी का व्रत रखने से संतान को दीर्घायु, स्वास्थ्य और समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है. वहीं जिन महिलाओं को संतान की प्राप्ति नहीं होती, उन्हें भी यह व्रत शुभ फल देता है. ऐसा कहा जाता है कि देवी अहोई मां अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करती हैं और उनके जीवन में सुख-समृद्धि का संचार करती हैं.

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