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Ahoi Mala Na Mile Toh Kya Karen हर वर्ष कार्तिक मास की अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी का व्रत किया जाता है। करवाचौथ की तरह अहोई अष्टमी का व्रत भी महिलाएं निर्जला रहकर ही करती हैं। इसे अहोई अष्टमी या अहोई माता का व्रत कहा जाता है।
यह व्रत महिलाएं अपनी संतान की लंबी आयु और उन्हें हर तरह की विपत्ति से बचाने के लिए करती हैं, लेकिन विशेषतौर पर यह व्रत पुत्रों के लिए किया जाता है। कुछ निसंतान महिलाएं पुत्र प्राप्ति के लिए भी अहोई माता का व्रत करती हैं।
अहोई अष्टमी के दिन महिलाएं अहोई माला धारण करती हैं। क्या आप जानते हैं कि ये माला क्यों धारण की जाती है और इसके नहीं मिलने पर क्या करना चाहिए। नहीं पता तो कोई बात नहीं, चलिये जानते हैं।
आज व्रत से पहले यह बात दिमाग में आती है कि यदि इस अवसर पर पहनी जाने वाली माला खो जाए या किन्ही कारणों से नहीं मिल पाए तो क्या उपाय करें। इस बारे में देवज्ञ राजेंद्र भारद्वाज बताते हैं कि इस माला को संभालकर रखना चाहिए।
यदि किन्हीं कारणों से गलती हो जाए और यह माला न मिले तो अपने व्रत को मत छोड़ें। इस दौरान पहनी जाने वाली माला के विकल्प के तौर पर दूसरी माला अपना लें, लेकिन इसमें ध्यान देने वाली बात यह है कि इसमें डाले जाने वाले मोती पूरे होने चाहिए। यानी कि इसमें हर साल एक मोती बढ़ाया जाता है। जितने मोती पहले थे उन्हें ही आगे बढ़ाना है।
स्याहु माला को संतान की लंबी आयु की कामना के साथ पहना जाता है। दिवाली तक इसे पहनना आवश्यक माना जाता है। हर वर्ष इस माला में एक चांदी का मोती बढ़ाया जाता है। मान्यता है कि इससे पुत्र की आयु लंबी होती है।
अहोई अष्टमी को महिलाएं संध्या काल में पूरे विधि-विधान के साथ अहोई माता की पूजा करती हैं और अपनी संतान की लंबी उम्र एवं अच्छे स्वास्थ्य की कामना करती हैं। तारों की छांव में अर्घ्य देती हैं। इस दिन अहोई माता की पूजा में चांदी की अहोई बनाते हैं, जिसे स्याहु कहा जाता है।
रोली, अक्षत, दूध, और भात से इसकी पूजा की जाती है, इसके बाद एक कलावा लेकर उसमे स्याहु का लॉकेट और चांदी के दाने डालकर माला बनाई जाती है। व्रत करने वाली माताएं इस माला को अपने गले में अहोई से लेकर दिवाली तक धारण करती हैं। इस माला की पूजा पूरे विधि-विधान से करनी चाहिए।
(Ahoi Mala Na Mile Toh Kya Karen)
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