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अनीता जैन
अनंत चतुर्दशी का व्रत भगवान विष्णु को प्रसन्न करने और अनंत फल देने वाला माना गया है। भगवान विष्णु को समर्पित अनंत चतुर्दशी का पर्व भाद्रपद महीने की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। इसे लोकभाषा में अनंत चौदस के नाम से भी जाता है। इस वर्ष ये पर्व 19 सितंबर, रविवार को मनाया जाएगा। इस दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णुजी के अनंत रूप की पूजा की जाती है। अनंत अर्थात जिसके न आदि का पता है और न ही अंत का। अर्थात वे स्वयं श्री नारायण ही हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु के निमित्त व्रत रखकर एवं उनकी पूजा करके अनंतसूत्र बांधने से समस्त बाधाओं से मुक्ति मिलती है।
ऐसे कहलाए अनंत भगवान
अनंत चतुर्दशी का व्रत भगवान विष्णु को प्रसन्न करने और अनंत फल देने वाला माना गया है। शास्त्रों की मान्यता के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु ने सृष्टि की शुरूआत में चौदह लोकों तल, अतल, वितल, सुतल, तलातल, रसातल, पाताल, भू, भुव:, स्व:, जन, तप, सत्य, मह की रचना की थी एवं इन लोकों की रक्षा और पालन के लिए भगवान विष्णु स्वयं भी चौदह रूपों में प्रकट हो गए थे, जिससे वे अनंत प्रतीत होने लगे। इसलिए आज के दिन भगवान विष्णु के अनंत रूपों की पूजा की जाती है।
हर गांठ में श्री हरि का नाम
अनंत चतुर्दशी की पूजा में सूत्र का बड़ा महत्व है। इस व्रत में स्नानादि करने के बाद अक्षत,दूर्वा, शुद्ध रेशम या कपास के सूत से बने और हल्दी से रंगे हुए चौदह गांठ के अनंत सूत्र को भगवान विष्णु की तस्वीर या प्रतिमा के सामने रखकर पूजा की जाती है। हर गाँठ में श्री नारायण के विभिन्न नामों से पूजा की जाती है। पहले में अनंत,उसके बाद ऋषिकेश,पद्मनाभ, माधव, वैकुण्ठ, श्रीधर, त्रिविक्रम, मधुसूदन, वामन, केशव, नारायण, दामोदरऔर गोविन्द की पूजा होती है। फिर अनंत देव का ध्यान करके इस शुद्ध अनंत, जिसकी पूजा की गई होती है को पुरुष दाहिने और स्त्री बांये हाथ में बांधते हैं। मान्यता है कि इस अनंत सूत्र को बांधने से व्यक्ति प्रत्येक कष्ट से दूर रहता है। जो मनुष्य विधिपूर्वक इस दिन श्री हरि की पूजा करता है उसे सभी पापों से छुटकारा मिल जाता है।ऐसा माना गया है कि अगर इस दिन व्रत रखने के साथ-साथ कोई व्यक्ति विष्णु सहस्त्रनाम स्रोत का पाठ करता है तो उसकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। ये व्रत महिलाएं सुख-समृद्धि, धन-धान्य और संतान प्राप्ति के लिए करती हैं।
अनंत सूत्र बांधने का मंत्र
अनंत संसार महासमुद्रे
मग्नं समभ्युद्धर वासुदेव।
अनंतरूपे विनियोजयस्व
अनंतसूत्राय नमो नमस्ते।।
पांडवों ने भी किया था यह व्रत
पुराणों में अनंत चतुर्दशी की कथा के युधिष्ठिर से सम्बंधित होने का उल्लेख मिलता है। पांडवों के राज्यहीन हो जाने पर श्रीकृष्ण ने उन्हें अनंत चतुर्दशी का व्रत करने का सुझाव दिया। इससे पांडवों को हर हाल में राज्य वापस मिलेगा, इसका विश्वास भी दिलाया। इस पर युधिष्ठिर ने अनंत भगवान के बारे में जिज्ञासा प्रकट की तो कृष्ण जी ने कहा कि वह भगवान विष्णु का ही एक रूप हैं। चतुर्मास में भगवान विष्णु शेषनाग की शैय्या पर अनंत शयन में रहते हैं। इनके आदि और अंत का पता नहीं है इसीलिए ये अनंत कहलाते हैं। इस व्रत को विधि विधान से करने से जीवन में आ रहे समस्त संकट समाप्त होंगे।
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