India News (इंडिया न्यूज़), Bharani Festival: भारत में कई ऐतिहासिक और आध्यात्मिक जगहें हैं। जिसमें से केरल के कोडुंगल्लूर शहर में स्थित श्री कुरुम्बा भगवती मंदिर भी एक है। इस मंदिर को लेकर काफी मान्यताएं हैं। यह मंदिर दैवीय स्त्रीत्व की एक शक्तिशाली अभिव्यक्ति देवी भद्रकाली को समर्पित है। यह मंदिर अद्वितीय अनुष्ठानों और परंपराओं से भरा हुआ है। जो दूर-दूर से भक्तों को आकर्षित करता है।
हमारे समाज में भगवान और देवता को सबसे उपर रखा गया है। लेकिन इसके बावजूद एक अनोखी परंपरा है। जिसे भरणी महोत्सव के नाम से जाना जाता है। यह त्योहार सात दिनों तक मनाया जाता है। इसमें पुरुष और महिलाएं अक्सर नशे में धुत्त होकर देवी को गालियां देते हैं और भद्दे गाने गाते हैं। लेकिन ऐसी विचित्र परंपरा को सामाजिक स्वीकृति कैसे मिली?
ये भी पढ़े- Mahashivratri 2024: इस साल क्या है महाशिवरात्रि का शुभ समय, जानें पूरी पूजा विधि
मंदिर का इतिहास
भारत में सबसे पुराने में से एक श्री कुरुम्बा भगवती मंदिर की निमार्ण सदियों पहले हुई थी। यहां की देवी को “श्री कुरुम्बा” (कोडुंगल्लूर की मां) के नाम से जाना जाता है। यह देवी काली को उनके दुर्गा रूप में दर्शाती है। जिनके आठ हाथ हथियार चलाते हैं। अन्य देवताओं को समर्पित मंदिरों के अलावा, यहां एक छोटा तालाब है। जिसे पुश्करिणी कहा जाता है। जहां भक्त मुख्य मंदिर में प्रवेश करने से पहले स्नान करते हैं। कहा जाता है कि इस तालाब का निर्माण देवी ने अपनी तलवार से जमीन पर प्रहार करके किया था।
ये भी पढ़ें- ट्रेडिशनल महाराष्ट्रियन फूड के लिए मुंबई के ये 6 बेस्ट रेस्टोरेंट, जहां मिलेगा ऑथेन्टिक खाना
भरणी महोत्सव
मंदिर से जुड़ा सबसे प्रमुख त्योहार “भरणी” है। जो मार्च-अप्रैल में आयोजित सात दिवसीय उत्सव है। सबसे महत्वपूर्ण दिन कोडुन्गल्लुर ‘कावु थेंडल’ (मंदिर को प्रदूषित करना) है। जिसमें हजारों लोग मंदिर के आसपास अचेतन अवस्था में दिखाई देते हैं। हाथों में तलवारें लिए लाल कपड़े पहने पुरुष और महिलाएं इन तलवारों से खुद को तब तक मारते हैं जब तक कि उनके सिर से खून नहीं बहने लगता।
बरगद के पेड़ के चारों ओर बने एक मंच पर खड़े होकर, कोडुंगल्लूर शाही परिवार का मुखिया एक लाल छाता फैलाता है। जो सभी जातियों के लोगों को पूजा के लिए मंदिर के परिसर में प्रवेश करने का संकेत देता है। फिर ये भक्त गालियाँ देते हुए और देवी के बारे में भद्दे गाने गाते हुए मंदिर में प्रवेश करते हैं। वे छत और दीवारों पर हल्दी, अनाज और पैसे भी फेंकते हैं और दीवारों पर लाठियों से प्रहार करते हैं। इस अंतिम घटना के बाद, खून के धब्बे साफ करने के लिए मंदिर को सात दिनों के लिए बंद कर दिया जाता है।
ये भी पढ़ें- इस साल क्या है महाशिवरात्रि का शुभ समय, जानें पूरी पूजा विधि