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India News (इंडिया न्यूज), Parivar Ka Vansh: पारंपरिक भारतीय समाज में लड़कों को “घर के वंश” का धारक मानने की प्रथा के पीछे कई ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सामाजिक कारण हैं। यह सोच सदियों से चली आ रही है और विभिन्न धार्मिक, सामाजिक और आर्थिक कारणों से प्रभावित है।
हिंदू धर्म के शास्त्रों और ग्रंथों में यह मान्यता है कि पुत्र पिता के पितृ ऋण को चुका सकता है। पितरों को तर्पण देने और श्राद्ध कर्म करने की जिम्मेदारी पुत्र की मानी जाती है। यह धार्मिक कर्तव्य लड़कियों को नहीं सौंपा गया है, जिससे लड़कों को वंश का धारक माना जाता है।
पारंपरिक समाज में संपत्ति का वारिस ज्यादातर पुत्रों को ही माना जाता था। यह प्रथा अब बदल रही है, लेकिन पहले यह मान्यता थी कि लड़के ही परिवार की संपत्ति को आगे ले जाएंगे और उसे संभालेंगे।
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भारतीय समाज की पितृसत्तात्मक संरचना में पुरुष प्रधानता रही है। लड़कों को परिवार की प्रतिष्ठा और वंश को आगे बढ़ाने वाला माना जाता था।
ऐतिहासिक रूप से, पुरुषों को परिवार की सुरक्षा और आर्थिक संरक्षण का उत्तरदायी माना जाता था। लड़ाई-झगड़े, खेती-बाड़ी और व्यवसाय जैसे कार्यों में पुरुषों की भागीदारी अधिक होती थी।
विवाह के बाद, लड़की अपने ससुराल चली जाती है और अपने पति के परिवार का हिस्सा बन जाती है। इस कारण से लड़कियों को वंश की निरंतरता से अलग माना गया।
यह मान्यताएं और प्रथाएं अब बदल रही हैं। आधुनिक समाज में लड़कियां भी शिक्षा, रोजगार और अन्य क्षेत्रों में बराबर की भागीदारी कर रही हैं और वंश की निरंतरता में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। सामाजिक और कानूनी दृष्टिकोण से भी अब लड़कियों को समान अधिकार और महत्व दिया जा रहा है।
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