संध्या अर्घ्य का शुभ समय और तैयारी
संध्या अर्घ्य के दिन का आरंभ व्रती के लिए गहन तपस्या के साथ होता है. खरना के बाद से व्रती पूर्ण निर्जला उपवास रखते हैं न अन्न, न जल. अगले दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने तक यह व्रत जारी रहता है. शाम ढलने से पहले व्रती और उनके परिजन सभी पूजा सामग्री लेकर घाट या घर के आंगन में बनाए गए जलकुंड के पास पहुंचते हैं. चारों ओर दीपों की रोशनी, सूप में सजे हुए ठेकुआ, फल, गन्ना, और नारियल सब कुछ एक अलौकिक वातावरण तैयार करते हैं. व्रती पारंपरिक वस्त्र पहनते हैं महिलाएं प्रायः साड़ी में और पुरुष धोती-कुर्ते में. वातावरण में शंख-घंटियों की ध्वनि और “छठी मैया के गीतों” की मधुर लय गूंजती है.
संध्या अर्घ्य की विधि
सूर्यास्त के समय व्रती सूप (बांस की बनी टोकरी) में पूजा सामग्री रखकर, जल में खड़े होकर सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करते हैं.
- अर्घ्य का जल- दूध, गंगाजल, और पवित्र जल मिलाकर लोटे से अर्पित किया जाता है.
- अर्घ्य देते समय मुद्रा- लोटा इस तरह पकड़ा जाता है कि बहती जलधारा के बीच से सूर्य की अंतिम किरणें दिखाई दें. यह दृश्य भक्ति, सौंदर्य और श्रद्धा का अद्भुत संगम होता है.
- मंत्रोच्चार- “ॐ सूर्याय नमः” या पारंपरिक छठ गीतों का गान किया जाता है.
संध्या अर्घ्य में क्या न करें (Don’ts)
छठ पूजा में शुद्धता सर्वोच्च मानी गई है। इसीलिए संध्या अर्घ्य के दिन कुछ कार्य वर्जित माने जाते हैं —
- 1. व्रत तोड़ना या जल पीना- अर्घ्य से पहले जल या अन्न ग्रहण करना छठी मैया का अपमान माना जाता है.
- अशुद्ध हाथों से प्रसाद या सूप को छूना – जो व्यक्ति व्रत नहीं कर रहा, उसे हाथ धोए बिना पूजा सामग्री नहीं छूनी चाहिए.
- अपवित्र वस्त्र या चप्पल पहनना – प्रसाद बनाने या अर्घ्य के समय इनका उपयोग निषिद्ध है.
- क्रोध या वाद-विवाद – व्रती को शांत, सात्विक और संयमित रहना चाहिए। क्रोध या अपशब्द व्रत के फल को नष्ट कर देते हैं.
- घाट पर असावधानी – पवित्र वातावरण में ऊंची आवाज़, हंसी-मज़ाक या लापरवाही अनुचित मानी जाती है.