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India News (इंडिया न्यूज़), Chhattisgarh Ramnami Samaj: ऐसा संप्रदाय जो मुर्ति पूजा में भरोसा नहीं रखता, चंदन-टीका माथे पर नहीं लगाता, न ही पितांबर पहनता है, मर जाने पर शव जलाता नहीं दफनाता है इसके बावजूद राम में उनकी गहरी आस्था है। हम बात कर रहें छत्तीसगढ़ के रामनामी संप्रदाय की। ऐसे ही कुछ रोचक तथ्य आपको बतायेंगे और बतायेंगे इस संप्रदाय के बारे में।
रामनामी लोगों की सबसे ज्यादा आबाती छत्तीसगढ़ में है। पूरे देश में इनकी कुल आबाती 1.5 लाख के करीब है। रामनामी संप्रदाय के लोग पूरे शरीर पर राम के नाम गुदवाते हैं। ये अपने शरीर को ही मंदिर मानते हैं। इस संप्रदाय में जन्म के समय बच्चे के माथे पर 4 अक्षर के राम नाम गुदवाये जाते हैं। पांच साल के होने पर या शादी के बाद ये पूरे शरीर पर राम नाम गुदवा लेते हैं। पूरे शरीर पर राम नाम गुदवाने में यहां के लोग बताते हैं करीब एक महीने लगते हैं।
रामनामी लोग दलित जाति से आते हैं और इन्हें अछूत समझा जाता था, इसके वजह से इन्हें मंदिरों नहीं जाने दिया जाता था। साल 1890 में छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा के दलित व्यक्ति को मंदिर में नहीं घुसने दिया गया जिसके बाद उसने अपने पूरे शरीर पर राम नाम लिखवा लिया। ऐसा देखकर और लोग भी राम नाम लिखवाने लगे और धीरे-धीरे यह परंपरा बन गई।
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ब्रह्मचारी, त्यागी, वानप्रस्थी और संन्यासी चार तरह के रामनामी होते हैं। ब्रह्मचारी रामनामी जीवन भर अविवाहित रहते है, त्यागी लोग तो शादी करते हैं लेकिन पत्नी से शारीरिक संबंध नहीं बनाते हैं। त्यागी महिलाएं सिंदूर, बिंदी नहीं लगाती है उसकी जगह ये राम नाम गुदवा लेती हैं। कोई भी जेवर वैगरह नहीं पहनती हैं। वहीं वहीं वानप्रस्थी रामनामी विवाह करता है एक आम गृहस्त की तरह जीता है। जबकि संन्यासी घर बार छोड़कर जंगलों का रुख कर लेते हैं वहीं तप साधना करते हैं।
इस संप्रदाय के लोग किसी की मृत्यु हो जाने पर उसे जलाते नहीं है बल्कि उसे दफना देते हैं। इसके पीछे की वजह बेहद रोचक है, इनका कहना है कि ये राम नाम को जलते हुए नहीं देख सकते। दफनाने के भी इनके नियम हैं, ये रात होने पर शव को नहीं दफन करते हैं। शव को ये लोग बाकायदा नहला कर, हल्दी का लेप लगा कर दफन करते हैं। आम तौर हिन्दू परिवारों में किसी के मरने पर उस व्यक्ति के शोक में घर पर खाना नहीं पकता है। लेकिन ये लोग किसी के मर जाने पर शोक नहीं मनाते, आम दिनों की तरह खाना बनाते हैं और खाते हैं।
शादी के रिवाज भी इनके अलग हैं। ये अपने विवाह में किसी पंडित या पुरोहित को नहीं बुलाते हैं। ये अपनी शादी रामचरित मानस के सामने करते हैं। इस संप्रदाय के लोगों का एक पवित्र प्रतीक होता जिसे ये लोग जैतखांब कहते हैं, यह एक सिमेंट का बना स्तंभ होता जिसके ऊपर सफेद रंग की पताका लगी रहती है। लड़का और लड़की इस जैतखांब के चारो ओर सात फेरे लेते हैं।
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