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Chhoti Diwali को क्यों कहा जाता है नरक चतुर्दशी? जानें यम दीपक जलाने का शुभ मुहूर्त

Chhoti Diwali 2025: छोटी दिवाली को नरक चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है, ऐसे में आइए जानें कि इसके पीछे का क्या महत्व है और यम दीपक जलाने का शुभ मुहूर्त क्या है.

Written By: shristi S
Last Updated: October 19, 2025 08:38:17 IST

Chhoti Diwali 2025 Puja Time: भारत में दीपावली से एक दिन पहले मनाया जाने वाला पर्व है छोटी दिवाली, जिसे नरक चतुर्दशी, रूप चौदस और काली चौदस के नाम से भी जाना जाता है. यह दिन सिर्फ रोशनी और दीप जलाने से जुड़ा नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहरी धार्मिक, आध्यात्मिक और पौराणिक मान्यताएं भी जुड़ी हैं. इस दिन की शुरुआत अंधकार पर प्रकाश की, और बुराई पर अच्छाई की जीत की याद दिलाती है.

 छोटी दिवाली 2025 की तिथि और शुभ मुहूर्त

इस वर्ष छोटी दिवाली 19 अक्टूबर 2025 को मनाई जा रही है. ऐसे में जानें की आज पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है.

चतुर्दशी तिथि की शुरुआत: 19 अक्टूबर, दोपहर 1:51 बजे
चतुर्दशी तिथि का समापन: 20 अक्टूबर, दोपहर 3:44 बजे
काली चौदस पूजा मुहूर्त: 19 अक्टूबर रात 11:41 बजे से 20 अक्टूबर रात 12:31 बजे तक
यम दीपक का मुहूर्त: शाम 5:50 बजे से 7:02 बजे तक
इस अवधि में दीपदान और पूजन को अत्यंत शुभ माना जाता है. विशेष रूप से यम दीपक जलाने से अकाल मृत्यु के भय को दूर करने और परिवार की दीर्घायु के लिए प्रार्थना की जाती है.

 यम दीपक जलाने की परंपरा का महत्व

छोटी दिवाली की संध्या पर घर के बाहर दक्षिण दिशा में एक दीपक जलाने की परंपरा है, इसे यम दीपक कहा जाता है. मान्यता है कि ऐसा करने से यमराज प्रसन्न होते हैं और परिवार के सदस्यों की आयु बढ़ती है. इस दीपक के प्रकाश से न केवल घर के द्वार बल्कि पूरे वातावरण में सकारात्मकता फैलती है.

आध्यात्मिक दृष्टिकोण से विशेष दिन

नरक चतुर्दशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करना, दीप जलाना और भगवान यमराज व मां काली की पूजा करना बहुत शुभ माना जाता है. बहुत से लोग इस दिन व्रत रखते हैं और रूप चौदस के रूप में सुंदरता और स्वास्थ्य के लिए विशेष स्नान व आराधना करते हैं. इस दिन को रूप चौदस इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा नरकासुर वध के बाद लोगों ने दीप जलाकर अपने घरों को सुंदर बनाया और हर्षोल्लास से उत्सव मनाया.

नरकासुर वध की पौराणिक कथा

नरक चतुर्दशी के पीछे एक रोचक और प्रेरणादायक कथा जुड़ी है.  द्वापर युग में नरकासुर नाम का एक अत्याचारी राक्षस था. उसे वरदान मिला था कि भूदेवी (पृथ्वी माता) के अलावा कोई उसका वध नहीं कर सकता. इस वरदान के अहंकार में डूबकर उसने देवताओं, ऋषियों और स्वर्ग की अप्सराओं तक को परेशान करना शुरू कर दिया. जब उसके अत्याचार असहनीय हो गए, तो सभी देवता भगवान श्रीकृष्ण के पास पहुंचे.

भगवान श्रीकृष्ण जानते थे कि उनकी पत्नी सत्यभामा स्वयं भूदेवी का अवतार हैं. उन्होंने सत्यभामा से साथ चलने का आग्रह किया और दोनों नरकासुर की राजधानी पहुंचे। वहां भयंकर युद्ध हुआ. युद्ध के दौरान नरकासुर ने अपने शक्तिशाली तीर से श्रीकृष्ण को घायल कर दिया.अपने पति को घायल देखकर सत्यभामा का क्रोध भड़क उठा. उन्होंने अपना धनुष उठाया और एक शक्तिशाली बाण चलाया जो सीधे नरकासुर के हृदय में लगा। उसी क्षण उसका अंत हो गया. यह युद्ध कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को हुआ था. नरकासुर के अंत के साथ ही देवताओं में हर्ष की लहर दौड़ पड़ी. लोगों ने दीप जलाकर, मिठाइयां बांटकर और उत्सव मना कर इस दिन को यादगार बना दिया। तब से यह दिन नरक चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है.

 त्योहार का प्रतीकात्मक संदेश

छोटी दिवाली हमें यह सिखाती है कि चाहे अंधकार कितना भी गहरा क्यों न हो, एक दीपक भी रोशनी फैला सकता है. यह पर्व अच्छाई की शक्ति, साहस और न्याय की जीत का प्रतीक है. नरकासुर का वध केवल एक युद्ध नहीं था, बल्कि यह संदेश था कि सत्य और धर्म की विजय निश्चित है.

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