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Dev Diwali 2025: इंसान ही नहीं देवता भी मनाते हैं इस दिन दीपावली, जानें क्या है इसके पीछे का रहस्य

कार्तिक अमावस्या के दिन दीपावली का पर्व मना कर दीप जलाते हैं ठीक उसी तरह देवता भी दीप जलाकर उत्सव करते हैं किंतु उनका उत्सव कार्तिक पूर्णिमा के दिन होता है. इस देव दीपावली 05 नवंबर, बुधवार के दिन है.

Written By: Pandit Shashishekhar Tripathi
Last Updated: October 22, 2025 14:46:03 IST

कार्तिक मास की अमावस्या तिथि की तरह पूर्णिमा तिथि भी बेहद खास मानी जाती है क्योंकि इस दिन पवित्र नदियों में स्नान, दान पुण्य, यज्ञ-हवन जैसे तमाम धार्मिक अनुष्ठान कार्य किए जाते हैं. जिस तरह पृथ्वी पर मनुष्य कार्तिक अमावस्या के दिन दीपावली का पर्व मना कर दीप जलाते हैं ठीक उसी तरह देवता भी दीप जलाकर उत्सव करते हैं किंतु उनका उत्सव कार्तिक पूर्णिमा के दिन होता है. इस देव दीपावली 05 नवंबर, बुधवार के दिन है. पौराणिक मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर राक्षस का वध कर देवताओं को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई थी. त्रिपुर राक्षस का वध करने के बाद ही उनका नाम त्रिपुरारी भी पड़ा. बस तभी से यह उत्सव मनाया जाता है, सबसे पहले वाराणसी में उत्सव मनाने की परंपरा शुरू हुई थी, जो विस्तार लेते हुए देश के तमाम हिस्सों तक पहुंच चुकी है. चलिए जानते हैं क्या कहना है Pandit Shashishekhar Tripathi का 

दीप जलाने के साथ, दीपदान की भी है परंपरा

देव दिवाली को देवताओं की दिवाली भी कहा जाता है. पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन देवता धरती पर रूप बदलकर दिवाली मनाने आते हैं इसलिए देवताओं के लिए दीए जलाने की परंपरा है. इस दिन काशी विश्वनाथ में हर साल गंगा के तट पर दीपक जलाकर उत्सव मनाया जाता है और गंगा जी की आरती करने के बाद श्रद्धालु गंगा नदी के बहते हुए जल में दीप दान भी करते हैं, जो नजारा देखने लायक होता है. 

इस तरह शुरु हुई, देव दिवाली की शुरुआत

तारकासुर नाम के राक्षस के तीन पुत्र थे, तारकाक्ष, विद्युन्माली और कमलाक्ष. इन तीनों ने हजारों वर्षों तक कठोर तपस्या कर ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया. वे उनके सामने प्रकट हुए और पूछा क्या वरदान चाहते हो तो तीनों ने अमरता मांगी किंतु ब्रह्मा जी ने अमरता देने से इनकार कर दिया कि ऐसा संभव नहीं है. इस पर उन्होंने कहा कि हमारे लिए सोने, चांदी और लोहे के तीन किले बनाए जहां जिसमें हम लोग एक हजार साल तक रहें. इसे त्रिपुरा कहा जाए यदि कोई एक ही बाण से तीनों किलों को नष्ट कर सके तभी हमारी मृत्यु हो. उन्होंने तथास्तु कहते हुए राक्षस को किले बनाने का आदेश दिया. स्वर्ग में सोने का किला तारकाक्ष को, आकाश में चांदी वाला किला विद्युन्माली और पृथ्वी पर लोहे का किला कमलाक्ष को मिला. असुरों का यह आचरण देवताओं को नहीं पसंद आया तो उन्होंने ब्रह्मा जी से शिकायत की किंतु उन्होंने मदद देने से मना कर दिया. इसके बाद देवता शिव जी के पास गए किंतु उन्होने भी यही कहा कि जब तक वह कुछ गलत नहीं करते हैं, तब तक उनका वध नहीं किया जा सकता है. इसके बाद देवता विष्णु जी के पास पहुंचे तो उन्होंने कहा कि पहले तीनों को अधर्म के रास्ते पर लाना होगा. तब उन्होंने एक विचित्र मनुष्य का निर्माण कर आदेश दिया कि तुम त्रिपुरा जाकर तीनों को वेद विरोधी धर्म सिखाओ. उसने भी आदेश के अनुरूप कार्य किया जिसके परिणाम स्वरूप तीनों राक्षसों ने शिव जी की आराधना छोड़ वेद विरुद्ध आचरण शुरु कर दिया. अब शिव जी ने देवताओं की बात सुनी और विश्वकर्मा को बुलाकर रथ, धनुष और बाण बनाने को कहा. ब्रह्मा जी स्वयं सारथी बने और रथ त्रिपुरा पहुंच गया, तीनों राक्षस मिल कर त्रिपुरा बनाने ही वाले थे, कि शिव जी ने धनुष से पाशुपतास्त्र  चलाया जिससे तीनों किले राख और उनका वध हो गया.

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