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इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
Dharam : कहा जाता है कि परमात्मा की से मूक भी बोल सकते हैं। बोलना ही नहीं वे वाचाल हो जाते हैं, खूब बोलते हैं। परमात्मा की कृपा हो तो पंगु पहाड़ चढ़ जाते हैं। धीरे-धीरे जो वृद्ध चलता है, वह भी तो अपनी शक्ति से नहीं चलता। उसके पैर में जो भी थोड़ी शक्ति है और लाठी के रूप में जो भरोसा है, वह भी तो उसकी अपनी शक्ति नहीं है, वह भी तो परमात्मा की है।
हमेशा यह याद रखना चाहिए कि मेरा कुछ भी नहीं है। परमात्मा अन्न के रूप में जब हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं, तब हममें शक्ति आती है। तो मनुष्य में अपना कुछ नहीं है। परमात्मा की हवा, परमात्मा का पानी, परमात्मा की रोशनी, परमात्मा का खाना- इन चीजों से मनुष्य की शक्ति बनती है। अपना कुछ नहीं है। जब मनुष्य मन में यह भावना जन्म लेती है कि मेरी शक्ति से नहीं, उन्हीं की शक्ति से सब कुछ हो रहा है, तब उसमें अनन्त शक्ति आ जाती है।
तुम लोग इस दुनिया में जो आए हो, तुमलोगों को बहुत कुछ करना है। देखो, दुनिया में जो कुछ भी होता है, उसके पीछे कौन-सी वृत्ति काम करती है? एषणा वृत्ति। एषणा है इच्छा को कार्य रूप देने का प्रयास। जहां इच्छा है और इच्छा के अनुसार काम करने की चेष्टा है, उसको कहते हैं एषणा। दुनिया में जो कुछ भी है, एषणा से ही वह सब कुछ बनता है। परमात्मा की एषणा से दुनिया की उत्पत्ति हुई है और जो अणु मन है, इसमें जो एषणा रहती है यानी मैं यह करूंगा, मैं वह करूंगा- जब यह दोनों एषणा यानी परमपुरुष की एषणा और मनुष्य की वैयक्तिक एषणा एक साथ काम करती हैं तो वहां मनुष्य कर्म में सिद्धि पाते हैं। हालांकि मनुष्य सोचते हैं कि मेरी कर्मसिद्धि हुई है, लेकिन वह परमपुरुष की एषणा की पूर्ति हुई है। वे जैसा चाहते हैं, वैसा हुआ। तुम्हारी ख्वाहिश भी वैसी थी, इसलिए तुम्हारे मन में भावना आई कि मेरी इच्छा की पूर्ति हो गई है। तुम्हारी इच्छा की पूर्ति नहीं होती है। उनकी इच्छा की पूर्ति होती है। वे अपनी इच्छा के अनुसार काम करते हैं, किन्तु मनुष्य के मन में आनन्द होता है, जब मनुष्य देखते हैं कि उनकी इच्छा की पूर्ति हो गई।
बुद्धिमान मनुष्य इसमें क्या करते हैं? वे सोचते हैं कि परमात्मा की इच्छा क्या है, उसी इच्छा को मैं अपनी इच्छा भी बना लूं। वे देखते हैं कि परमात्मा की जो इच्दा है, उसके पीछे कौन सी वृत्ति है? वह है- दुनिया का कल्याण हो। कल्याण हो, यही है परमात्मा की इच्छा। इसलिए शास्त्र में परमात्मा का एक नाम है कल्याण सुन्दर। परमात्मा सुन्दर क्यों हैं? चूंकि, इनमें कल्याण वृत्ति है, इसलिए वे सुन्दर हैंं। परमात्मा हर जीव की नजर में सुन्दर हैं, क्योंकि वे कल्याणसुन्दर हैं।
प्रगति उसी को कहेंगे, जहां मनुष्य की गति है। भौतिक-मानसिक तथा मानसिक-आध्यात्मिक गति। यह भौतिक-मानसिक गति क्या है? मैं आगे बढूंगा और जितने जीव हैं, समाज के जितने मनुष्य हैं, सबको साथ लेकर चलूंगा। हम केवल खुद आगे बढ़ेंगे और दुनिया के और व्यक्ति पीछे रह जाएंगे- यह मनोभाव साधक का नहीं है। इसलिए कहा जाता है कि साधना का अन्यतम अंग है तप। तप माने अपने स्वार्थ की ओर नहीं ताकना। ताकना है समाज के हित की ओर। सामूहिक कल्याण की भावना जहां है, जिसमें व्यक्तिगत कल्याण हो या न हो, उसी का नाम है तप।
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