India News (इंडिया न्यूज़), Ravan Aue Moksh: रावण, जिसे हम हर साल दशहरे पर जलाते हैं, उसके बारे में यह सवाल अक्सर उठता है कि क्या वह भी मोक्ष की कामना करता था, और क्यों हर साल उसे जलाने के बावजूद वह एक प्रतीकात्मक रूप से जीवित हो उठता है। इसके पीछे कई धार्मिक, दार्शनिक और सांस्कृतिक धारणाएँ हैं।
रावण के जीवन के अनेक पहलुओं को समझने से यह स्पष्ट होता है कि वह केवल शक्ति और ऐश्वर्य का प्रतीक नहीं था, बल्कि एक विद्वान और शिव का परम भक्त भी था। रावण की कहानी का महत्वपूर्ण पहलू यह है कि वह भगवान विष्णु के द्वारपाल जय और विजय में से एक था, जिसे ऋषियों के शाप के कारण तीन जन्मों तक राक्षस रूप में जन्म लेना पड़ा। शाप के अनुसार, उसे भगवान विष्णु द्वारा प्रत्येक जन्म में पराजित होना था और अंततः वह फिर से अपने वास्तविक स्वरूप में लौट कर मोक्ष प्राप्त करेगा। इसलिए, रावण का अंत श्रीराम (भगवान विष्णु का अवतार) द्वारा हुआ, जो उसे मोक्ष की ओर ले गया। यह दार्शनिक दृष्टिकोण बताता है कि रावण ने अपने अंतिम समय में भी राम की शरण ली थी और अंततः उसे मुक्ति मिली।
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हर साल रावण को जलाने की परंपरा केवल एक ऐतिहासिक या धार्मिक घटना का पुनरावलोकन नहीं है, बल्कि यह एक गहरे सांस्कृतिक और नैतिक संदेश को प्रसारित करता है। रावण का जलना हमारे भीतर की बुराइयों और अधर्म का प्रतीक है, जिसे हर वर्ष याद किया जाता है ताकि समाज यह न भूले कि अहंकार, अन्याय और अधर्म का अंत अवश्यंभावी है।
हालांकि, हर साल रावण को जलाने के बावजूद भी वह प्रतीकात्मक रूप से “जीवित” होता है, क्योंकि उसके रूप में समाज के अंदर छिपी हुई बुराइयाँ, जैसे कि अहंकार, ईर्ष्या, और अन्याय, अभी भी मौजूद हैं। रावण का जीवित होना यह इंगित करता है कि जब तक समाज में बुराईयाँ मौजूद रहेंगी, तब तक उसे जलाने की परंपरा जारी रहेगी।
रावण के जलने के बाद उसका पुनरुत्थान यह भी दर्शाता है कि समाज में बुराइयों का अंत सिर्फ प्रतीकात्मक रूप से नहीं, बल्कि व्यक्तिगत और सामूहिक आत्म-चिंतन के द्वारा किया जाना चाहिए। यदि हम केवल रावण को बाहरी रूप से जलाते रहेंगे, लेकिन अपने भीतर की बुराइयों पर नियंत्रण नहीं करेंगे, तो वह हर साल फिर से हमारे सामने खड़ा हो जाएगा।
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रावण के मोक्ष की कामना उसकी जीवन यात्रा का एक महत्वपूर्ण पहलू था, जिसे राम द्वारा पूरा किया गया। हर साल रावण का जलाया जाना हमें यह याद दिलाता है कि बुराईयों पर विजय पाना केवल बाहरी रूप से नहीं, बल्कि आंतरिक रूप से भी आवश्यक है। जब तक हमारे भीतर की बुराइयाँ जीवित रहेंगी, रावण हर साल जीवित होता रहेगा। यही कारण है कि रावण का जलाया जाना न केवल एक धार्मिक कर्मकांड है, बल्कि आत्म-निरीक्षण और व्यक्तिगत सुधार की एक प्रक्रिया भी है।
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