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Lakshmi and Ganesha Worship Significane on Diwali: दिवाली (Diwali 2025) सिर्फ दीपों और रोशनी का त्योहार नहीं है, बल्कि यह भारत की आस्था, संस्कृति और पौराणिक परंपराओं का प्रतीक है. हर साल कार्तिक अमावस्या को मनाया जाने वाला यह पर्व भगवान श्रीराम के 14 वर्षों के वनवास के बाद अयोध्या लौटने की खुशी में मनाया जाता है. अयोध्यावासियों ने उनके स्वागत में पूरे नगर को दीपों से सजाया था, तभी से दिवाली ‘दीपोत्सव’ के रूप में जानी जाती है. इस साल यह त्योहार 20 अक्टूबर 2025 को मनाया जाएगा. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस दिन भगवान गणेश (Lord Ganesha) और माता लक्ष्मी (Goddess Lakshmi) की ही पूजा क्यों की जाती है? इसका उत्तर हमारे शास्त्रों और पौराणिक कथाओं में छिपा है.
क्या है पौराणिक कथा?
पुराणों में उल्लेख मिलता है कि सतयुग में इसी दिन समुद्र मंथन के दौरान माता लक्ष्मी प्रकट हुई थीं. वह धन, वैभव और समृद्धि की देवी मानी जाती हैं. उनके पास संपूर्ण ब्रह्मांड की खुशहाली और समृद्धि का अधिकार है. उन्होंने कुबेर को अपना खजांची बनाया, लेकिन कुबेर धन को खुद तक सीमित रखते थे. इसी समय भगवान गणेश की बुद्धि और योग्यता ने लक्ष्मी के धन को जन-जन तक पहुंचाने में भूमिका निभाई. इसके बाद से गणेश जी को विघ्नहर्ता कहा जाता है, यानी हर बाधा को दूर करने वाले. लक्ष्मी जी ने वरदान दिया कि जब वे भगवान विष्णु के साथ नहीं होंगी तो गणेश उनके साथ रहेंगे. यही कारण है कि दिवाली पर लक्ष्मी और गणेश की पूजा एक साथ की जाती है लक्ष्मी धन देती हैं और गणेश उस धन के मार्ग में आने वाली रुकावटों को दूर करते हैं.
अमावस्या की रात और दिव्य पूजा का समय
दिवाली कार्तिक मास की अमावस्या को आती है, माना जाता है कि माता लक्ष्मी इस दिन स्वयं पृथ्वी पर आती हैं और अपने भक्तों को धन और समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं. यह समय आध्यात्मिक दृष्टि से भी बहुत शक्तिशाली माना जाता है. इस रात दीपक जलाने से नकारात्मकता दूर होती है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है.