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श्राद्ध ना करने पर पूर्वज अपने बच्चों को देते हैं ये श्राप? नाराज पितर कर देते हैं सब विनाश

Nishika Shrivastava • LAST UPDATED : September 24, 2024, 6:40 pm IST

Pitru Paksha 2024

India News (इंडिया न्यूज़), Pitru Paksha 2024: क्या पूर्वज हमें श्राप देते हैं अगर हम उनका श्राद्ध न करें? एक पूर्वज अपने बच्चों को श्राप क्यों देता है? ये सवाल कभी न कभी आपके मन में भी आए होंगे। पितृ पक्ष में कहा जाता है कि पितरों को प्रसन्न करने के लिए तर्पण, श्राद्ध और अन्न दान करना चाहिए। पौराणिक मान्यता के अनुसार, अगर किसी के पूर्वज खुश नहीं हैं तो वो व्यक्ति जीवन में तरक्की नहीं कर सकता, लेकिन क्या इसका मतलब ये है कि अगर आपके पूर्वज नाराज हैं तो वो आपको श्राप दे सकते हैं? यहां जानें गरुड़ पुराण में इस बारे में क्या लिखा है।

कौन होते हैं पितर?

गरुड़ पुराण के अनुसार, हमारे पूर्वज ही हमारे पितर होते हैं। इसका मतलब यह है कि जब कोई व्यक्ति अपना पूरा जीवन व्यतीत करने के बाद धरती को अलविदा कहता है, तो अपने कर्मों का लेखा-जोखा देने के बाद उसे कुछ समय पितृलोक में बिताना पड़ता है। वृद्धावस्था में मरने वाले पूर्वज पितृलोक में निवास करते हैं। पितृलोक के देवता अर्यमा हैं, जिन्हें पितृलोक का राजा या मुखिया माना जाता है। वहीं, यमराज को पितृलोक का न्यायाधीश माना जाता है।

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बताया जाता है कि पितरों को दो श्रेणियों में रखा जाता है। एक दिव्य पितर और दूसरे मानव पितर। दिव्य पितर उस श्रेणी का नाम है, जो जीवों के कर्मों को देखकर यह तय करते हैं कि मृत्यु के बाद उन्हें क्या भाग्य दिया जाना चाहिए।

पितृलोक में कहां रहते हैं पितर?

पितरों का निवास चंद्रमा के ऊपरी भाग में माना जाता है। मृत्यु के बाद आत्माएं एक वर्ष से लेकर सौ वर्ष तक पितृलोक में रहती हैं। पितृलोक के श्रेष्ठ पितर न्याय समिति के सदस्य माने जाते हैं। वो पितरों के अच्छे-बुरे कर्मों का भी निर्णय करते हैं। अन्न और अग्नि से शरीर और मन तृप्त होते हैं। गरुड़ पुराण के अनुसार, जिस तरह धरती पर एक विभाग चलाने की व्यवस्था है, उसी तरह पितृलोक को भी चलाने के लिए व्यवस्था बनाई गई है। यहां मनुष्यों के पूर्वज निवास करते हैं।

क्या पूर्वज अपने परिजनों को श्राप देते हैं?

ज़रा सोचिए! अगर आपका कोई करीबी किसी त्यौहार के दौरान आपके घर आने के लिए कुछ समय निकालता है, लेकिन आप उनका सम्मान करने के बजाय उन्हें अनदेखा करते हैं या उनके आने पर कोई उत्साह नहीं दिखाते हैं, तो उस मेहमान या आपके प्रियजन को कैसा लगेगा? जाहिर है, वो दुखी होगा और आपके प्रति उसके प्रेम और स्नेह की भावनाएं आहत होंगी। इससे वो दुखी होगा और दुखी मन से निकली आह या पीड़ा विनाश लाती है। इसीलिए भगवान कृष्ण ने भी गीता में कहा है कि मनुष्य को कभी किसी का दिल नहीं दुखाना चाहिए।

दुखी मन के श्राप से भगवान भी नहीं बच पाए

कई पौराणिक कथाओं में बताया कि जब भी किसी दुखी व्यक्ति ने किसी को श्राप दिया है, तो वह फलित हुआ है। उदाहरण के लिए, महाभारत में गांधारी न केवल एक रानी थीं, बल्कि 100 कौरवों की माँ भी थीं। जब कुरुक्षेत्र की रणभूमि पर खूनी युद्ध हुआ, तो उसमें गांधारी के 100 पुत्र मारे गए। गांधारी जानती थी कि श्री कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार हैं और अगर वो चाहते तो युद्ध रोक सकते थे लेकिन फिर भी उन्होंने युद्ध नहीं रोका, इससे दुखी होकर गांधारी ने श्री कृष्ण को श्राप दे दिया कि उनका यदुवंश भी नष्ट हो जाएगा। समय के साथ दुखी गांधारी का श्राप भी सत्य हो गया।

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पितरों को दुखी करके कोई भी सुखी नहीं रह सकता

गरुड़ पुराण के अनुसार, पितृलोक में पितरों की प्रजाति भी निर्धारित की गई है, लेकिन आपके पूर्वज चाहे किसी भी प्रजाति के हों, उनका तर्पण और श्राद्ध कर्म अवश्य करना चाहिए। अपने पुत्र, पुत्री और पौत्र द्वारा किए गए श्राद्ध कर्म को पितर अवश्य स्वीकार करते हैं। जब पितर दुखी होकर द्वार से वापस जाते हैं तो उनके दुखी हृदय से निकलती आह उनके प्रियजनों को महसूस होती है। अगर कोई पितर बहुत नाराज है तो वह दुख और संताप से भरा हुआ अपने लोक लौट जाता है। इसी वजह से पितृ पक्ष में पितरों के तर्पण का बहुत महत्व है। गरुड़ पुराण के अनुसार, जब पितर खुश होते हैं तो मनुष्य को अपना खोया हुआ राजपाट वापस मिल जाता है।

 

 

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