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India News (इंडिया न्यूज), Draupadi: हिंदू महाकव्य महाभारत में द्रौपदी एक मुख्य पात्र के रूप में जानी जाती है। द्रौपदी को महाभारत में पांचाली के नाम से जाना जाता है क्योंकि द्रौपदी 5 पांडवों की पत्नी थीं और पांचाल देश के राजा द्रुपद की पुत्री थीं। महाभारत के अनुसार द्रौपदी अग्नि से जन्मी थी। द्रौपदी महाभारत का ऐसा किरदार है जिसकी दृढ़ता के आगे बड़े-बड़े यौद्धा नतमस्तक हो गए थे। स्मरणीय 5 कन्याओं में द्रौपदी का भी नाम है, जिन्हें चिर-कुमारी कहा जाता है। द्रौपदी को पंचाली के अलावा, कृष्णेयी, अग्निसुता, कृष्णेयी जैसे कई नामों से भी जाना जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं द्रौपदी के जन्म के समय ही उनके पिता द्रुपद ने उनके लिए जीवनभर का कष्ट मांगा था। तो चलिए हम आपको बताते है आखिर महाभारत का ये किस्सा क्या है।
महाभारत की कथाओं के अनुसार कहा जाता है कि जब पाण्डव और कौरवों की शिक्षा पूरी हुई तो उन्होंने गुरु द्रोणाचार्य को गुरु दक्षिणा लेने की बात कही थी। लेकिन द्रोणाचार्य को पांचाल नरेश द्रुपद के द्वारा किया गया अपना अपमान याद आता है और उन्होंने राजकुमारों से कहा कि अगर वे उन्हें गुरु-दक्षिणा देना चाहते हैं तो पांचाल नरेश द्रुपद चाहिए बंदी बनाकर लाओ जो द्रौपदी के पिता थे। अपने गुरु के इस फरमान के आगे राजकुमार अपने अस्त-सस्त्र पांचाल देश की ओर चल दिए। पांचाल पहुँचने के बाद अर्जुन ने गुरु द्रोणाचार्य से कहा- “गुरुदेव! आप पहले कौरवों को राजा द्रुपद से युद्ध करने की आज्ञा दीजिये।
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यदि वे द्रुपद को बन्दी बनाने में विफल रहते है तो हम पाण्डव युद्ध करेंगे” इसके बाद अर्जुन ने द्रुपद को बंदी बनाकर गुरू द्रोणाचार्य के समक्ष पेश किया था। अर्जुन ने द्रुपद के आधे राज्य को जीतकर ऋषि द्रौण को दिया था। तभी से गुरु द्रौण और द्रुपद के बीच दुश्मनी शुरू हो गई थी। द्रुपद बदले की आग में चल रहे थे और अपने इस अपमान का बदला लेने के लिए द्रुपद पुत्र प्रप्ति की इच्छा लिए एक यज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ से उन्हें पुत्र धृष्टधुम्न की प्राप्ति हुई, लेकिन इसी यज्ञ से द्रुपद को एक पुत्री की भी प्राप्ति होनी थी लेकिन द्रुपद अपने लिए पुत्री नहीं चाहता था। इसलिए उसने यज्ञ में आहुति देने से मना कर दिया। लेकिन देवताओं की हट के कारण वह यज्ञ अधूरा छोड़कर नहीं जा पाया।
इसी बात से क्रोधित होकर द्रुपद अपने पुत्री के लिए देवताओं से जीवन भर के कष्ट मांग लेता है। द्रपुद यज्ञ की अग्नि में एक एक करके सभी चीजों की आहुति देता है साथ-साथ वे अपनी पुत्री के लिए दुख मांगता चला जाता है। अबीर की आहुति देते हुए द्रुपद कहता है कि अबीर की भांति पवित्र चरित्र हो उसका लेकिन फिर भी उसे इस दुनिया की सारी अपवित्रता प्राप्त हो। हर आहुति में अपनी पुत्री के लिए अनेकों अनेक कष्ट मांगता चला जाता है । यज्ञ से उत्पन्न होने के कारण ही द्रौपदी को यज्ञसेनी भी कहा जाता है। हालांकि बाद में यही संतान द्रपुद की सबसे प्रिय संतान भी बनीं। लेकिन इन्हें जीवन में अनेक दुखों का सामना करना पड़ा।
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