संबंधित खबरें
क्यों दुर्योधन की जांघ तोड़कर ही भीम ने उतारा था उसे मौत के घाट, पैर में छिपा था ऐसा कौन-सा जीवन का राज?
जो लोग छिपा लेते हैं दूसरों से ये 7 राज…माँ लक्ष्मी का रहता है उस घर में सदैव वास, खुशियों से भरी रहती है झोली
इन 4 राशियों की लड़कियों का प्यार पाना होता है जंग जीतने जैसा, स्वर्ग सा बना देती हैं जीवन
देवो के देव महादेव के माता-पिता है कौन? शिव परिवार में क्यों नहीं दिया जाता पूजा स्थान
नए साल पर गलती से भी न करें ये काम, अगर कर दिया ऐसा तो मां लक्ष्मी देंगी ऐसी सजा जो सोच भी नहीं पाएंगे आप
दान में जो दे दिए इतने मुट्ठी चावल तो दुनिया की कोई ताकत नहीं जो रोक दे आपके अच्छे दिन, जानें सही तरीका और नियम?
India News (इंडिया न्यूज़), Mahabharat Duryodhan: महाभारत का युद्ध केवल हस्तिनापुर की राजगद्दी के लिए नहीं, बल्कि धर्म और अधर्म के बीच के संघर्ष के रूप में देखा जाता है। कौरवों को अधर्म का प्रतीक माना गया, जबकि पांडवों को धर्म का। कौरवों की सेना में पूरी दुनिया के महान योद्धा शामिल थे, लेकिन पांडवों के पक्ष में भगवान श्रीकृष्ण स्वयं थे। युद्ध की परिस्थिति कौरवों के पक्ष में थी, और उनकी जीत लगभग निश्चित मानी जा रही थी। लेकिन, दुर्योधन के एक संदेह ने इस युद्ध का पासा पलट दिया।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाभारत के युद्ध में कौरव सेना की दुर्दशा देखकर दुर्योधन ने अपने सबसे बड़े योद्धा, भीष्म पितामह पर आरोप लगाया कि वे पूरी शक्ति से युद्ध नहीं कर रहे हैं। दुर्योधन ने आरोप लगाया कि भीष्म पितामह, कौरवों की बजाय पांडवों को अधिक स्नेह करते हैं और इसलिए उन्हें जिताने के लिए ही प्रयास कर रहे हैं।
दुर्योधन के इस आरोप से भीष्म पितामह क्रोधित हो गए। उन्होंने सोने के पांच तीर लिए और उन्हें मंत्रों से सिद्ध किया, यह कहते हुए कि अगले दिन वे इन तीरों से पांचों पांडवों का वध कर देंगे। लेकिन, दुर्योधन के मन में संदेह था, इसलिए उसने इन तीरों को खुद के पास सुरक्षित रखने का निर्णय लिया और भीष्म से तीर ले लिए, ताकि सही समय पर वे उसे युद्धभूमि में वापस सौंप सके।
महाभारत में इस शक्तिशाली महिला के देखने मात्र से काले पड़ गए थे युधिष्ठिर के ये अंग?
श्रीकृष्ण को भीष्म पितामह के इन तीरों की जानकारी हो गई, और वे चिंतित हो उठे। उन्होंने अर्जुन को बुलाकर कहा कि वह दुर्योधन से एक पुराना वचन पूरा करवाए। दरअसल, जब पांडव वनवास में थे, तब गंधर्वों के साथ युद्ध में अर्जुन ने दुर्योधन और कौरवों की जान बचाई थी। दुर्योधन ने इस उपकार के बदले अर्जुन को एक वचन दिया था कि वह कभी भी उससे कुछ भी मांग सकता है।
श्रीकृष्ण की सलाह पर अर्जुन ने दुर्योधन के पास जाकर अपने वचन का स्मरण कराया और भीष्म पितामह के सिद्ध तीर मांग लिए। क्षत्रिय धर्म का पालन करते हुए, दुर्योधन ने अर्जुन को तीर सौंप दिए, भले ही वह जानता था कि इससे कौरवों की हार निश्चित हो जाएगी।
अपने किस वचन को निभाने के लिए मृत्युलोक से भी वापिस लौट आए थे कर्ण?
इस प्रकार अर्जुन ने वह तीर प्राप्त कर लिया, जिनसे पांडवों की निश्चित मृत्यु टल गई। इसके बाद युद्ध का परिदृश्य बदल गया और अंततः पांडवों ने सभी कौरव योद्धाओं को पराजित कर महाभारत के युद्ध में विजय प्राप्त की। इस कथा में दुर्योधन के संदेह और अर्जुन के चतुराई भरे निर्णय ने इतिहास की धारा को बदल दिया। यह घटना इस बात का प्रतीक है कि किस तरह एक छोटी सी घटना भी बड़े परिणामों का कारण बन सकती है।
मरते समय क्यों दुर्योधन ने श्री कृष्णा की ओर देख की थी तीन उंगलियां? क्या था वो संकेत!
Disclaimer: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है। पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।
Get Current Updates on, India News, India News sports, India News Health along with India News Entertainment, and Headlines from India and around the world.