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India News (इंडिया न्यूज), End of The Earth: पुराणों के अनुसार धरती का अंत सिर्फ एक शारीरिक घटना नहीं होगी, ये एक आध्यात्मिक प्रक्रिया भी होगी क्योंकि धरती का अंत काफी हद तक मानवीय विचारों के पतन का नतीजा होगा। धरती के अंत तक इंसान ऐसी जिंदगी जीने को मजबूर हो जाएगा, जिसकी आज आप और हम कल्पना भी नहीं कर सकते। तो आइए समझते हैं कि सृष्टि के अंत के साथ-साथ इंसानों का अंत कैसा होगा और स्थिति कितनी भयावह होगी प्रेमानंद जी महाराज के मुताबीक, पृथ्वी का अंत तब होगा जब मनुष्य अपने आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों को पूरी तरह से खो देगा। तब तक उसके पास धर्म, सत्य और नैतिकता नहीं होगी। यह वह समय होगा जब पृथ्वी का आध्यात्मिक अस्तित्व समाप्त हो जाएगा।
पुराणों में यह भी कहा गया है कि जब पृथ्वी पर मनुष्यों के पाप और पाप अपने चरम पर पहुंच जाएंगे, तब सृष्टि उस पाप का भार सहन नहीं कर पाएगी और सृष्टि का विनाश हो जाएगा और एक नए युग की शुरुआत होगी। प्रेमानंद महाराज यह भी कहते हैं कि जब लोग धर्म से विमुख होकर धर्म का पालन करने लगेंगे, तब पृथ्वी की संतुलन व्यवस्था गड़बड़ा जाएगी। लोग मानवता का शोषण करने लगेंगे और उनकी आत्मा पूरी तरह से कलंकित हो जाएगी। उन्हें न तो अपनी आत्मा के विनाश की परवाह होगी और न ही समाज की आत्मा के विनाश की। मनुष्य अपने धर्म और मानवता को पूरी तरह से नष्ट कर देंगे। धार्मिक ग्रंथों और आध्यात्मिक अनुशासन की अनदेखी करना पृथ्वी के अंत का एक बड़ा कारण बन सकता है।
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प्रेमानंद जी के अनुसार आध्यात्मिक चेतना के ह्रास के कारण मनुष्य तब तक प्रकृति का विनाश कर चुका होगा। उसके कर्मों के कारण प्राकृतिक आपदाएँ और वैश्विक आपदाएँ आएंगी। ये प्राकृतिक आपदाएँ पृथ्वी की भौतिक संरचना को भी प्रभावित करेंगी, जिससे अंततः पृथ्वी का भौतिक विनाश होगा। महाप्रलय के दौरान जो जीव जन्म-मरण के चक्र में फंसे रहेंगे, उन्हें दुःख, रोग, भय, अपमान आदि का सामना करना पड़ेगा। उस समय 100 वर्षों तक वर्षा नहीं होगी और पूरी पृथ्वी सूख जाएगी।
सूर्य 100 वर्षों तक अग्नि बरसाता रहेगा और ज्वालामुखी की अग्नि भी नीचे से फैलती रहेगी, जिससे तीनों लोक जलने लगेंगे। इस अग्नि से सभी लोक नष्ट हो जाएँगे। फिर 100 वर्षों के बाद 100 वर्षों तक वर्षा होगी, जिससे पूरा संसार जल में डूब जाएगा। पृथ्वी का अंत मनुष्य के आध्यात्मिक पतन से जुड़ा है, जानिए उस समय मानव जाति कितनी मुसीबत में होगी
प्रेमानंद जी महाराज ने भले ही लोगों को पृथ्वी के अंत का दृश्य और मूल कारण बताया हो, लेकिन इसके साथ ही उन्होंने इसका समाधान भी बताया। उनके अनुसार, अगर हम अपने आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों को पुनः प्राप्त कर लें तो इस संभावित अंत को टाला जा सकता है या धीमा किया जा सकता है।
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