संबंधित खबरें
न जलाते न दफनाते…क्यों नदी में यूंही बहा देते है अघोरी साधुओं की लाश? 40 दिन लंबी होती है प्रक्रिया कांप उठेगी रूह
अंधेरी रात के इस समय मुर्दों से आखिर ऐसी क्या बात करते है अघोरी, सन्नाटे की वो रात होती है इतनी भयानक कि…?
शव के शरीर का ये हिस्सा खा कर ऐसा भी क्या पा लेते है अघोरी साधु, तंत्र सिद्धि में दिखता है ऐसा कोहराम कि..?
Numerology: भूलकर भी कभी नहीं रचानी चाहिए इन तारीखों पर जन्मे लोगों से शादी, जीवनभर रहता है दुःख और तनाव!
Today Horoscope: आज 1 राशि के जीवन में बढ़ेंगी कई तकलीफें, तो वही 3 राशियों को मिलने वाला है कोई बड़ा लाभ, जानें आज का राशिफल
Mahakumbh 2025: नागा और अघोरी साधुओं की पूजा पद्धति में क्यों होता है अंतर? जानिए हैरान कर देने वाला सच
India News (इंडिया न्यूज), Evidence Of Ramayana Period: रामायण हिंदू धर्म के प्रमुख ग्रंथों में से एक है। यह महाकाव्य भगवान राम के जीवन की कहानी को विस्तार से बताता है, जो धर्म, नैतिकता और मानवता के महत्वपूर्ण सिद्धांतों को अर्थ के साथ प्रस्तुत करता है। प्राचीन भारत में रामायण काल को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि इस काल में मानव के वर्तमान स्वरूप में विकसित होने के साथ-साथ उस काल की कई प्रजातियाँ भी विलुप्त हो रही थीं। रामायण काल को भारत का सबसे महत्वपूर्ण काल माना जाता है। आइए जानते हैं इस काल से जुड़ी 5 अनसुनी या अनजानी बातें।
श्री राम काल एक ऐसा काल था जब धरती पर अजीब तरह की प्रजातियां रहा करती थीं। किस प्राकृतिक आपदा या अन्य कारणों से ये प्रजातियाँ अब विलुप्त हो गई हैं? उदाहरण के लिए, बंदर, चील, भालू आदि। ऐसा माना जाता है कि रामायण काल में सभी पशु, पक्षी और मनुष्य विशालकाय शरीर वाले थे। मनुष्य की ऊँचाई लगभग 21 फीट थी।
रामायण काल में कई वैज्ञानिक हुए थे। नल, नील, मय दानव, विश्वकर्मा, अग्निवेश, सुबाहु, ऋषि अगस्त्य, वशिष्ठ, विश्वामित्र आदि कई वैज्ञानिक थे। आज के युग जैसे आविष्कार भी रामायण काल में हुए थे। रामायण काल में आपने नाव, समुद्री जहाज, हवाई जहाज, शतरंज, रथ, धनुष-बाण और कई तरह के अस्त्र-शस्त्रों के नाम सुने होंगे। लेकिन उस काल में मोबाइल और लड़ाकू विमानों को नष्ट करने वाला यंत्र भी था। रामायण काल में विभीषण के पास ‘मध्मक्खी’ नामक एक ‘रिमोट कंट्रोल डिवाइस’ थी और जिसका इस्तेमाल मोबाइल की तरह किया जाता था। विभीषण के पास दर्नन यंत्र भी था।
लंका के 10,000 सैनिकों के पास ‘त्रिशूल’ नामक एक यंत्र था, जिसके जरिए दूर से ही संदेशों का आदान-प्रदान होता था। इसके अलावा एक दर्पण यंत्र भी था, जो अंधेरे में प्रकाश का आभास देता था। लड़ाकू विमानों को नष्ट करने के लिए रावण के पास भस्मलोचन जैसा वैज्ञानिक था जिसने एक विशाल ‘दर्पण यंत्र’ का निर्माण किया था। विमानों पर प्रकाश की किरण डालने से विमान आकाश में ही नष्ट हो जाते थे। जब उसे लंका से निकाला गया तो विभीषण अपने साथ कुछ दर्पण यंत्र भी लाए थे।
इन ‘दर्पण यंत्रों’ में सुधार करके अग्निवेश ने इन यंत्रों को एक फ्रेम पर स्थापित किया और इन यंत्रों से लंका के विमानों की ओर प्रकाश की किरण फेंकी जिससे लंका के विमानों की शक्ति नष्ट हो गई। एक अन्य प्रकार का दर्पण यंत्र भी था जिसे शास्त्रों में ‘त्रिकाल दृष्टा’ कहा गया है, लेकिन यह यंत्र त्रिकाल दृष्टा नहीं बल्कि दूरदर्शन जैसा यंत्र था। लंका में यांत्रिक पुल, यांत्रिक दरवाजे और चबूतरे भी थे जो एक बटन दबाने से ऊपर-नीचे हो जाते थे।
इस काल में बड़े-बड़े भवन और पूलों के निर्माण के कामों का जिक्र मिलता है। इससे इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि उस समय में भव्य रूप से निर्माण के काम किए जाते थे। उस वक्त की वास्तुएं और स्थापना काल आज से कई गुना आगे हुआ करती थी। उस युग में वास्तु और ज्योतिष शास्त्र के विश्वामित्र और मयासुर नाम के दो महान विद्वान हुए।
इन दोनों ने कई बड़े नगर, महल और इमारतें बनवाईं। गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित ‘श्रीमद् वाल्मीकि रामायण कथा सुख सागर’ में उल्लेख है कि पुल के नामकरण के अवसर पर राम ने इसका नाम ‘नल सेतु’ रखा था। इसका कारण यह था कि लंका तक पहुँचने के लिए बनाया गया पुल विश्वकर्मा के पुत्र नल द्वारा बताई गई तकनीक का उपयोग करके बनाया गया था। महाभारत में भी राम के नल सेतु का उल्लेख किया गया है।
माना जाता है कि रावण की गुफा रग्गला के जंगलों के बीच एक विशाल पहाड़ी पर है, जहां उसने घोर तपस्या की थी। उसी गुफा में आज भी रावण का शव सुरक्षित रखा हुआ है। रावण की यह गुफा रग्गला इलाके में 8 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है। जहां 17 फीट लंबे ताबूत में रावण का शव रखा हुआ है। इस ताबूत के चारों ओर एक विशेष लेप लगा हुआ है जिसके कारण यह ताबूत हजारों सालों से जस का तस बना हुआ है।
श्रीलंका में नुवारा एलिया पहाड़ियों के आसपास स्थित रावण जलप्रपात, रावण गुफाएं, अशोक वाटिका, खंडहर हो चुके विभीषण के महल आदि की पुरातात्विक जांच से इनके रामायण काल के होने की पुष्टि होती है। राम सेतु के बारे में तो सभी जानते हैं।
श्रीलंका में एक पर्वत है जिसे श्रीपद पीक के नाम से भी जाना जाता है। ब्रिटिश शासन के दौरान उन्होंने इसका नाम एडम पीक रखा था। हालाँकि इस एडम पीक का पुराना नाम रतन द्वीप पर्वत है। इस पर्वत पर एक मंदिर बना हुआ है। हिंदू मान्यता के अनुसार, यहां देवों के देव महादेव शंकर के पैरों के निशान हैं, इसीलिए इस स्थान को सिवानोलीपदम (शिव की ज्योति) भी कहा जाता है। ये पैरों के निशान 5 फीट 7 इंच लंबे और 2 फीट 6 इंच चौड़े हैं।
2,224 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस ‘श्रीपद’ को देखने के लिए लाखों श्रद्धालु और पर्यटक यहां आते हैं। ईसाइयों ने इसके महत्व को समझते हुए प्रचार किया कि ये संत थॉमस के पैरों के निशान हैं। बौद्ध संप्रदाय के लोगों के अनुसार ये पैरों के निशान गौतम बुद्ध के हैं। मुस्लिम संप्रदाय के लोगों के अनुसार ये पैरों के निशान हजरत आदम के हैं। कुछ लोगों ने तो राम सेतु को एडम ब्रिज भी कहना शुरू कर दिया है। इस पर्वत के बारे में कहा जाता है कि यह वही पर्वत है जो द्रोणागिरी का एक टुकड़ा था और जिसे हनुमानजी उठाकर ले गए थे। श्रीलंका के दक्षिणी तट पर गॉल में स्थित इस अत्यंत रोमांचकारी पर्वत को श्रीलंकाई लोग रुहमसाला कांडा कहते हैं।
Disclaimer: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है। पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।
Get Current Updates on, India News, India News sports, India News Health along with India News Entertainment, and Headlines from India and around the world.