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27 या 28 दिसंबर कब है गुरु गोबिंद सिंह की जयंती? साल में दूसरी बार मनाएंगे त्योहार

इस साल 2 दिसंबर को गुरु गोबिंद सिंह जयंती मनाई जाएगी. इस बार ये साल में दूसरी बार मनाया जाने वाला त्योहार है. इस दिन जगह-जगह लंगर और गुरुवाणी होगी.

Written By: Deepika Pandey
Last Updated: December 26, 2025 18:46:40 IST

Guru Gobind Singh Jayanti 2025: गुरु गोबिंद सिंह की जयंती को लेकर लोगों के मन में असमंजय बना हुआ है कि आखिर गुरु गोबिंद सिंह की जयंती किस दिन है? अगर आपके मन में भी ऐसा कोई असमंजस है, तो बता दें कि पौष माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को गुरु गोबिंद सिंह की जयंती मनाई जाती है. ऐसे में इस साल ये त्योहार दो बार मनाया गया. इसकी वजह ये है कि हिंदू कैलेंडर के अनुसार, गुरु गोविंद सिंह की जयंती 5 जनवरी को पड़ी थी. इसके बाद अब ये त्योहार 27 जनवरी को मनाया जाएगा. इस साल चंद्र कैलेंडर के अनुसार, गुरु गोबिंद सिंह की जयंती दूसरी बार मनाने का मौका मिला है.

कब होगी गुरु गोबिंद सिंह जयंती की छुट्टी?

बता दें कि 27 दिसंबर 2025 को गुरु गोबिंद सिंह जी की 359वीं जन्म वर्षगांठ मनाई जाएगी। 26 दिसंबर दोपहर 1.43 बजे से सप्तमी तिथि की शुरुआत हो जाएगी और 27 दिसंबर 2025 को दोपहर 1.09 बजे खत्म होगी. गुरु गोबिंद सिंह की जयंती के उपलक्ष्य में पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और बिहार समेत कई राज्यों में स्कूल और कॉलेज बंद रहेंगे.

गुरु गोबिंद सिंह की लिखीं 5 किताबें

गुरु गोबिंद सिंह ने जफरनामा, गुरुविलास पदशाही, दस गुरू, श्री दसम गुरू चमत्कार, प्राचीन पंथ प्रकाश समेत कई किताबें लिखीं. इन किताबों के जरिए उन्होंने लोगों को आपस में जोड़ने और उनकी जड़ों को समझने की अग्रसर किया. 

कैसे मनाते हैं गुरु गोबिंद सिंह की जयंती?

  • बता दें कि गुरु गोबिंद सिंह की जयंती के दिन गुरुद्वारों में अखंड पाठ और कीर्तन का आयोजन किया जाता है. 
    साथ ही नगर कीर्तन निकालने के आयोजन भी किए जाते हैं. 
    इस दिन कीर्तन के माध्यम से गुरु साहिब की शिक्षाओं का स्मरण किया जाता है.
    इस दिन लोग गुरुद्वारे जाकर मत्था टेकते हैं और गुरुवाणी सुनते हैं.
    इस दिन गुरु साहिब की शिक्षाओं का प्रचार किया जाता है. 
    साथ ही जगह-जगह पर लंगर का आयोजन किया जाता है. 
    जरूरतमंदों को भोजन, कपड़े और दवाइयां बांटी जाती हैं.

गुरु गोबिंद सिंह का योगदान

गुरु गोबिंद सिंह ने 1699 में बैसाखी के दिन खालसा पंथ की स्थापना की थी. उन्होंने सभी को पांच ककार (केश, कंघा, कड़ा, कच्छा, कृपाण) का महत्व बताया और लोगों को इसके पति जाागरुक किया. उन्होंने मुल अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाई और डटकर उनका सामना किया. उन्होंने ही गुरु ग्रंथ साहिब को सिखों का शाश्वत गुरु घोषित किया था.

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