संबंधित खबरें
खुद को दुनिया के सामने मार देती हैं नागा साधु, 12 सालों तक करती हैं ऐसा काम, कंपा देती हैं ब्रह्माण्ड!
इन देवियों की अवतार थीं लक्ष्मण और भरत की पत्नियां, रामायण काल में इन वजहों से लिया था जन्म!
अर्जुन से लेकर सूर्य तक सबको हांसिल हुआ था जो गीता उपदेश, इन ऋषियों ने आम इंसान को ऐसे दीया ये ज्ञान!
आचनक निकल आते हैं लाखों नागा साधू फिर हो जाते हैं अदृश्य, कुंभ का रहस्य जान हो जाएंगे हैरान
Today Horoscope: इस 1 राशि की किस्मत में लिखा है आज बड़ा बदलाव, तो इन 3 जातकों को मिलेगा उनका बिछड़ा प्यार, जानें आज का राशिफल
साल 2025 लगते ही पूरे 12 साल के बाद गुरु करेंगे मिथुन और कर्क राशि में प्रवेश, जानें कितने फायदों से भर देंगे आपका दामन?
Chhath Puja 2022: छठ का पर्व उत्तर भारतीयों के लिए सबसे बड़ा पर्व है। यही वजह है कि इसे महापर्व कहा जाता है। बता दें कि छठ व्रत के साथ कई मंदिरों और जगहों की महत्ता जुड़ी हुई है। इस कड़ी में एक नाम बिहार के मुंगेर का भी है। धार्मिंक मान्यताओं के अनुसार, रामायण काल में माता सीता ने पहला छठ पूजन बिहार के मुंगेर में गंगा तट पर संपन्न किया था। इसके प्रमाण स्वरूप यहां आज भी माता सीता के अस्तचलगामी सूर्य और उदयमान सूर्य को अर्घ्य देते चरण चिह्न मौजूद हैं।
माता सीता के चरण पर कईं सालों से शोध कर रहे शहर के प्रसिद्ध पंडित कौशल किशोर पाठक बताते हैं कि आनंद रामायण के पृष्ठ संख्या 33 से 36 तक सीता चरण और मुंगेर के बारे में उल्लेख किया गया है।
आनंद रामायण के अनुसार, मुंगेर जिला के बबुआ घाट से तीन किलोमीटर गंगा के बीच में पर्वत पर ऋषि मुद्गल के आश्रम में मां सीता ने छठ पूजन किया था। वो स्थान वर्तमान में सीता चरण मंदिर के नाम से जाना जाता है, जो आज भी मां सीता के छठ पर्व की कहानी को दोहराता है। हिंदू मान्यताओं के मुताबिक, वनवास पूरा करने के बाद जब प्रभु राम अयोध्या वापस लौटे, तो उन्होंने रामराज्य के लिए राजसूर्य यज्ञ करने का निर्णय लिया।
यज्ञ शुरू करने से पहले उन्हें वाल्मीकि ऋषि ने कहा कि मुद्गल ऋषि के आये बिना ये राजसूर्य यज्ञ सफल नहीं हो सकता है। इसके बाद ही श्रीराम सीता माता सहित मुद्गल ऋषि के आश्रम पहुंचे। जहां मुद्गल ऋषि ने ही माता सीता को ये सलाह दी थी कि वो छठ व्रत पूरा करें।
आनंद रामायण के अनुसार, राम द्वारा रावण का वध किया गया था। चूंकि रावण एक ब्रह्मण था इसलिए राम को ब्रह्म हत्या का पाप लगा। इस ब्रह्म हत्या से पापमुक्ति के लिए अयोध्या के कुलगुरु मुनि वशिष्ठ ने मुगदलपुरी (वर्तमान में मुंगेर) में ऋषि मुद्गल के पास राम-सीता को भेजा। भगवान राम को ऋषि मुद्गल ने वर्तमान कष्टहरणी घाट में ब्रह्महत्या मुक्ति यज्ञ करवाया और साथ ही माता सीता को अपने आश्रम में ही रहने का आदेश दिया।
चूंकि महिलाएं यज्ञ में भाग नहीं ले सकती थी। जिस वजह से माता सीता ने ऋषि मुद्गल के आश्रम में रहकर ही उनके निर्देश पर व्रत किया। सूर्य उपासना के दौरान मां सीता ने अस्ताचलगामी सूर्य को पश्चिम दिशा की तरफ और उदीयमान सूर्य को पूरब दिशा की ओर अर्घ्य दिया था।
आज भी मंदिर के गर्भ गृह में पश्चिम और पूरब दिशा की ओर माता सीता के पैरों के निशान मौजूद हैं। इस मंदिर का गर्भ गृह साल के छह महीने गंगा के गर्भ में समाया रहता है। जबकि गंगा का जल स्तर घटने पर 6 महीने ऊपर रहता है। ऐसा माना जाता है कि मंदिर के प्रांगण में छठ करने से लोगों की मनोकामना पूर्ण होती है। स्थानीय लोगों का का कहना है कि अगर सरकार इस और ध्यान दे तो ये पर्यटक का बड़ा केंद्र बन सकता है।
ये भी पढ़े: आदिकाल से चली आ रही है छठ पूजा पर्व मनाने की परंपरा (indianews.in)
Get Current Updates on, India News, India News sports, India News Health along with India News Entertainment, and Headlines from India and around the world.