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Guru Ravidas Jayanti संत कवि गुरु रविदास जी मध्यकाल के संत समाजसुधारक व विचारक

PUBLISHED BY: Mukta • LAST UPDATED : February 11, 2022, 3:28 pm IST
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Guru Ravidas Jayanti संत कवि गुरु रविदास जी मध्यकाल के संत समाजसुधारक व विचारक

Guru Ravidas Jayanti

Guru Ravidas Jayanti

अरुण कुमार कैहरबा

ARUN KUMAR KAHARBA
‘ऐसा चाहूं राज मैं, मिलै सबन को अन्न।
छोट-बड़े सब सम बसैं रैदास रहै प्रसन्न।।’
संत कवि गुरु रविदास जी का यह दोहा उनके राजनैतिक-सामाजिक दर्शन की झलक पेश करता है। संत रैदास के नाम से जाने जाने वाले संत कवि गुरु रविदास जी मध्यकाल के ऐसे संत समाजसुधारक व विचारक हैं, जिन्होंने अपने क्रांतिकारी काव्य में सामाजिक बुराईयों का जोरदार विरोध किया और बेगमपुरा व समतामूलक सामाजिक राजनैतिक व्यवस्था की परिकल्पना प्रस्तुत की।

संभवत: बराबरी पर आधारित राज की इस तरह से मांग उठाने वाले वे पहले कार्यकर्ता हैं। स्वयं अछूत जाति में जन्मने के कारण उनमें इसको लेकर कोई कुंठा देखने को नहीं मिलती। राजसी परिवार की मीरा संत कवि गुरु रविदास जी को अपना गुरु स्वीकार करके उनके ऊर्जावान, विचारवान व गतिवान व्यक्तित्व को स्वीकार करती है।

कर्मा के घर में चौदहवीं सदी के उत्तराद्र्ध में संत कवि गुरु रविदास जी का जन्म हुआ Guru Ravidas Jayanti

संत कवि गुरु रविदास जी के जीवन की बहुत सी प्रामाणिक जानकारियां नहीं मिल पाती हैं। लेकिन बहुत सी जानकारियों के बारे में विद्वानों में ज्यादा मतभेद नहीं है। काशी नगरी में जीटी रोड की पूर्वी दिशा में कुछ दूरी पर गोवर्धनपुर और सीरपुर गांव के आसपास कहीं चमड़े से जूतियाँ तैयार करने वाले प्रसिद्ध कारीगर रघु और कर्मा के घर में चौदहवीं सदी के उत्तराद्र्ध में रविदास का जन्म हुआ।

रघु अपने गांव व आस-पास में अपनी जाति के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। कर्मा सिलाई, कढ़ाई व कशीदाकारी के काम में दक्ष थी। परिवार में कोई कमी नहीं थी। कमी थी तो 11 साल से परिवार ने संतान का सुख नहीं देखा था। एक दिन जूतियां बेच कर जाते हुए रघु सारनाथ जा पहुंचे। मा. चन्द्रिका प्रसाद जिज्ञासु के अनुसार संत भिक्खु रैवत प्रज्ञ के साथ उनकी भेंट हुई। उन्होंने रघु व कर्मा के सेवाभाव से प्रभावित होकर उन्हें दवाई की पुडिय़ा दी। उनके आशीर्वाद से उन्हीं के नाम पर बच्चे का नाम रैवतदास रखा गया।

बाद में यह नाम रैविदास, रविदास और रैदास हो गया। कुछ विद्वानों का यह मत भी है कि बच्चे का जन्म रविवार को हुआ था, इसलिए रविदास नाम रखा गया। कहा जाता है कि काशीपुरी में नाथ पंथ के साधुओं की एक पाठशाला थी, जहां पर रविदास को पढऩे का मौका मिला। रघु जी ने बालक को जूतियां बनाने का काम सिखाया। थोड़े ही समय में वे अच्छे कारीगर बन गए और सुंदर जूतियां बनाने लगे।

ज्ञान चर्चा में लगे रहते थे संत कवि गुरु रविदास जी Guru Ravidas Jayanti

संत कवि गुरु रविदास जी को साधु-संतों व पीरों-फकीरों की सोहबत और ज्ञान-चर्चा द्वारा सीखने का चस्का लग गया था। जिस कारण अपने काम पर वे कम बैठते थे और यदि बैठते भी थे तो ज्ञान चर्चा में लगे रहते। बेबाक ढ़ंग से सच का साथ, सामाजिक विषमताओं व जाति व्यवस्था के भेदभाव पर चोट करने के कारण उनसे परेशान लोग पिता को शिकायत करते।

पिता ने शिकायतों से तंग आकर 14 वर्ष की आयु में रविदास का लोना नाम की कन्या के साथ विवाह कर दिया। 16 वर्ष की अवस्था में उसका गवना करा दिया। इसके छह महीने बाद ही दोनों को खुद कमाने-खाने का संदेश देते हुए घर से निकाल दिया। जब वे ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’ कहते हैं तो वे तीर्थ स्नानाआदि के स्थान पर अपने औजारों और काम की वस्तुओं को ही श्रेष्ठ बताते हैं।

पिता नहीं चाहते थे कि उनका बेटा भीख मांगे Guru Ravidas Jayanti

खाली हाथ निकले संत कवि गुरु रविदास जी और लोना ने घर से बहुत दूर गंगा किनारे झोंपड़ी बनाई और जूतियों के हुनर से मेहनत करके कमाने-खाने लगे। पिता नहीं चाहते थे कि उनका बेटा भीख मांगे। रविदास जी ने आजीवन भीख नहीं मांगी। परिश्रम की कमाई खाना और परमार्थ साधन करना उनके जीवन का महत्वपूर्ण काम था। उन्होंने अपनी मेहनत से लोगों पर अमिट छाप छोड़ी।

उनकी जूतियों के पूरे क्षेत्र में चर्चे होने लगे। जो उनसे एक बार जूतियां खरीदता वह सदा के लिए उनका ग्राहक बन जाता। साथ ही सत्संग सुनने के लिए भी बड़े-बड़े लोग उनके पास आने लगे। रविदास व लोना की श्रमशीलता, सत्यनिष्ठा और सदाचार के कारण घास-फूस की झोंपड़ी थोड़े समय में ही मिट्टी के कच्चे मकान में बदल गई। हर प्रकार के लोभ लालच से वे दूर थे। मेहनत की कमाई तथा गरीबी के बावजूद दूसरों की मदद करके प्रसन्न रहते थे। अपने काव्य में भी रविदास ने श्रम की प्रतिष्ठा को स्थापित किया और मुफ्तखोरी का विरोध किया।

रविदास जी संत कबीर व गुरु नानक के समकालीन थे Guru Ravidas Jayanti

रविदास जी संत कबीर व गुरु नानक के समकालीन थे। कबीर और रैदास तो काशी के आसपास रहते थे, जिससे दोनों में विचार-विमर्श होता था। दोनों के विचारों में भी काफी हद तक समानता देखने को मिलती है। गुरु नानक जी ने पंजाब के अतिरिक्त प्राचीन भारत की चारों दिशाओं में भ्रमण किया। बताते हैं कि काशी में अपनी यात्रा के दौरान वे रविदास से मिले और दोनों ने दलित अछूतों की दयनीय दशा पर चर्चा की।

Guru Ravidas Jayanti

कवि व संत कवि गुरु रविदास जी के सपनों के समाज पर चर्चा करना सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। वे अपनी कविता में ऐसे समाज की कल्पना करते हैं, जोकि छोटे-बड़े के भेदभाव से मुक्त हो। अंधविश्वास, रूढि़वादिता, पाखंड समाप्त हो। न्याय व समानता का राज हो। जहां पर किसी को कोई दुख ना हो। सरकारें मानव कल्याण के कार्य करें। परलोक व अगले जन्म में स्वर्ग के ख्यालों से निकल कर समाज के वंचित वर्ग इसी जन्म और जीवन को ठीक करने में लगे। ज्ञान, सत्ता एवं सम्पत्ति पर केवल कुछ लोगों का ही आधिपत्य ना हो। एक बेहतर जीवन के लिए इन तीनों चीजों पर सबका अधिकार हो।

सच्चाई की पहचान और न्याय की लड़ाई रविदास जी के विचारों का सार Guru Ravidas Jayanti

सच्चाई की पहचान और न्याय की लड़ाई रविदास जी के विचारों का सार है। लोगों को सच से दूर करने के लिए झूठ को सच कह-कह कर प्रचार किया जाता है। रैदास ने इसी जन्म और जीवन की बात की। जात-पात के आधार पर होने वाले भेदभाव को नंगा करते हुए उन्होंने कहा- ‘जात पात के  फेर में उलझ गए सब लोग। मानवता को खात है रैदास जात का रोग।।’ जाति की जटिल सरंचनाओं को उद्घाटित करते हुए उन्होंने कहा- ‘जात-जात मैं जात है ज्यों केलन में पात।

रैदास ना मानुष जुड़ सकै ज्यौं लग जात ना जात।।’ रैदास के काव्य में मानवता को टुकड़ों में बांटने वाले लोगों के प्रति आक्रोश है और वे इसे तार्किक ढ़ंग से लोगों को समझाते हैं-‘एक माटी के सब भांडै एकही सबका सिरजनहारा। रैदास व्यापै भीतर एक घट एक ही कुम्हारा।। रविदास उपजे एक बूंद तै का बामन का सूद। मूरख जन ना जानई सबमैं राम मौजूद।। रविदास जन्म के कारनै होत न कोऊ नीच। नर कूं नीच करि डारि है, ओछे करम की कीच।।’ उन्होंने जाति की बजाय अच्छे गुणों से मनुष्य की पहचान करने का संदेश देते हुए कहा- ‘रविदास बामण मत पूजिये, जो होवे गुन हीन। पूजिऐ चरन चंडाल के, जऊ होवे गुन परवीन।’

अलग-अलग नाम से एक ही भगवान होने का दिया संदेश Guru Ravidas Jayanti

रविदास जी ने भगवान का नाम लेकर भी लोगों को बांटने और एकता को समाप्त करने की साजिशों का पर्दाफाश किया और अलग-अलग नाम से एक ही भगवान होने का संदेश देते हुए हिन्दू-मुसलमान को एक होने की बात कही। उन्होंने कहा- ‘ रविदास हमारो साईयां राघव राम रहीम। सबही राम को रूप है ऐसो कृष्ण करीम।। रविदास हमारे राम जोई सोई है रहमान। काबा कासी जानिये दोऊ एक समान।। रविदास देखिया सोधकर सब ही एक समान। हिन्दु मस्लिम दोऊ का सृष्टा एक भगवान।। मुसलमान सो दोस्ती हिन्दुअन से कर प्रीत। रैदास सबमैं जोति राम की सब हैं अपने मीत।।’

लोगों को शिक्षित होने की अपील की Guru Ravidas Jayanti

गुरु रैदास संत, समाज सुधारक व विचारक होने के साथ-साथ राजनैतिक चेतना से सम्पन्न थे। वे जानते थे कि दलित-वंचित लोगों के सशक्तिकरण के लिए शिक्षा के जरिये सत्ता के दरवाजे खुल सकते हैं। उन्होंने लोगों को शिक्षित होने की अपील की और साथ ही ऐसी राजनैतिक व्यवस्था की परिकल्पना पेश की, जिसमें सबको बराबर के मौके मिलेंगे। वे कहते हैं-‘बेगमपुरा शहर को नांव, दुख अंदोह नहीं तिस ठांव। न तसवीस खिराज न माल, खौफ खता न तरस जवाल।..जहां सैर करो जहां जी भावै, महरम महल न कोय अटकावै।’ बेगमपुरा का उनका विचार एक बेहद क्रांतिकारी विचार था। रैदास की प्रसिद्धि से परेशान कुछ लोगों ने दिल्ली के राजा सिकंदर लोदी से उनकी शिकायत की। लोदी ने रैदास जी को गिरफ्तार करवा कर दिल्ली दरबार में बुला लिया। बताते हैं कि वहां लोदी के साथ रैदास जी की बातचीत हुई। रैदास ने बड़ी बेबाकी से अपने राजनैतिक, सामाजिक विचार उनके सामने रखे। उनके विचारों से लोदी प्रभावित हुआ और उन्हें रिहा कर दिया।

Guru Ravidas Jayanti

संत रविदास जैसे क्रांतिकारी कवि व समाज सुधारकों के जीवन व विचारों को विकृत करने के लिए अनेक प्रकार की किवंदतियां गढ़ी गई हैं। उनके विचारों के विपरीत उनके साथ ऐसे चमत्कार जोड़ दिए गए हैं, जिनका उन्होंने आजीवन विरोध किया। गुरु रविदास के ऐसे चित्र प्रचारित किए गए, जिसमें उनके हाथ में माला है और माथे पर टीका है। उनके नाम पर मंदिर बनाए जा रहे हैं, वह तो ठीक है, लेकिन मंदिर में कर्मकांडों व पाखंडों का बोलबाला है। ये सब चीजें उनके जीवन व विचारों के साथ मेल नहीं खाती हैं। आज हमें रविदास के साथ जोड़ दिए गए चमत्कारों से नहीं उनके विचारों के माध्यम से उन्हें जानने की जरूरत है।

Guru Ravidas Jayanti

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