इंडिया न्यूज, नई दिल्ली
स्वामी सुखबोधनंद
हमें किसी को अच्छा और बुरा जैसी श्रेणी में विभाजित नहीं करना चाहिए। जब आप अपने चेतना के सबसे निचले स्तर… जिसे तामसिक स्तर कहा जाता है… के आधार पर किया गया कोई भी कार्य सही नही कहा जा सकता। अब आप अपने चेतन मन के सबसे श्रेष्ठ पायदान, जिसे सात्विक गुण के नाम से जाना जाता है, पर रहकर सोचते हैं या इसके आधार पर कोई कार्य करते हैं तो वह वाकई महत्व रहता है.. वह आपके द्वारा किए गए अन्य सभी कार्यों की तुलना में बेहतर भी होता है।
इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि हमारी भीतरी चेतना का सीधा संबंध हमारे द्वारा किए जा रहे कार्यों से है। हमें हर समय अपने कार्यों पर नजर रखनी चाहिए… उनका निरिक्षण करना चाहिए। ऐसा कर हम सामने वाले के अपने प्रति व्यवहार को भी परिमार्जित कर सकते हैं। अपने स्वभाव में तब्दीली लाकर हम अपने जीवन की गुणवत्ता को भी बेहतर कर सकते हैं।
भगवद्गीता हमें हर परिस्थिति में शांत और धैर्य रखने की शिक्षा देती है। एक झेन गुरु से पूछा गया कि वह हमेशा खुश किस तरह रहते हैं..? इस सवाल के जवाब में वो कहते हैं मैं हर सुबह उठकर यह सोचता हूं कि मुझे स्वर्ग में जाना है या नर्क में…? फिर मैं ये निर्णय लेता हूं कि मुझे स्वर्ग में ही जाना है। जिस क्षण मैं यह निर्णय लेता हूं उसी क्षण मैं यह भी निर्धारित कर लेता हूं कि मुझे अपने जीवन के हर क्षण को स्वर्ग बनाना है। अगर आपको खुश रहना है तो सबसे पहले आपको यह निश्चित करना होगा कि आप हर हाल में खुश ही रहेंगे। जिस क्षण आप यह निर्णय ले लेते हैं…जीवन उसी क्षण से बदलने लग जाता है। हमें अपने जीवन में क्या मिलता है… यह हमारी अपनी च्वॉइस के द्वार ही निर्धारित होता है।
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