Hindu Wedding Rituals: शादियों का मौसम जोरों पर है. हर तरफ बैंड-बाजे, सजे-धजे मंडप और बारातें दिखाई दे रही हैं. हिंदू पंचांग के अनुसार, नवंबर से फरवरी तक का समय शुभ विवाह मुहूर्तों का समय माना जाता है. हिंदू धर्म में, विवाह केवल दो लोगों का मिलन नहीं, बल्कि दो परिवारों, परंपराओं और रीति-रिवाजों का एक गहन संगम है. इस समारोह में निभाई जाने वाली हर रस्म के पीछे एक गहरा अर्थ छिपा होता है. ऐसी ही एक रस्म है गृह प्रवेश. इस गृह प्रवेश समारोह के दौरान, दुल्हन अपने पैरों से चावल से भरा बर्तन गिराती है और अपने ससुराल में प्रवेश करती है. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि दुल्हन अपने गृह प्रवेश समारोह के दौरान चावल से भरा बर्तन क्यों गिराती है? जानें इसके पीछे की खास वजह.
क्या है नियम?
परंपरागत रूप से, जब दुल्हन शादी के बाद पहली बार अपने ससुराल में कदम रखती है, तो यह सिर्फ एक नए घर में प्रवेश नहीं होता, बल्कि एक नए जीवन, नई जिम्मेदारियों और नए रिश्तों की शुरुआत होती है. इस अवसर पर निभाई जाने वाली सबसे महत्वपूर्ण रस्म चावल से भरे बर्तन को अपने पैर से गिराना है.जब दुल्हन अपने दाहिने पैर से चावल से भरे बर्तन को गिराकर घर में प्रवेश करती है, तो यह इस बात का प्रतीक है कि वह घर में अन्न, धन और सौभाग्य ला रही है. यह इस बात का प्रतीक है कि उसके आगमन के साथ ही घर पूरा हो गया है. जिस प्रकार देवी लक्ष्मी घर में प्रवेश करती हैं, उसी प्रकार नई बहू अपने नए परिवार में शुभता और समृद्धि लाती है.
दुल्हन देवी लक्ष्मी का प्रतीक है
परंपरागत रूप से, इस रस्म में चावल और बर्तन को समृद्धि और धन का प्रतीक माना जाता है. इसलिए, यह इस बात का प्रतीक है कि जिस घर में नई दुल्हन प्रवेश करती है, वह कभी भी अन्न, धन और सुख-समृद्धि से भरा नहीं रहेगा. इस प्रकार, चावल का बर्तन गिराना सिर्फ एक रस्म नहीं, बल्कि दुल्हन के गृहलक्ष्मी रूप और समृद्धि के आगमन का एक शुभ प्रतीक है.
जानें इस रस्म का महत्व
हिंदू धर्म में, गृह प्रवेश के दौरान दुल्हन द्वारा चावल के बर्तन को पैर से गिराने की परंपरा बहुत प्राचीन है. जहां सामान्य अवसरों पर भोजन को पैर से छूना अशुभ माना जाता है, वहीं इस अवसर पर यह शुभ मानी जाती है. जब नई दुल्हन गृह प्रवेश के दौरान अपने दाहिने पैर से चावल के बर्तन को हल्के से छूती है, तो यह इस बात का संकेत है कि वह देवी लक्ष्मी का स्वागत कर रही है. शास्त्रों के अनुसार, महिलाओं को देवी का स्वरूप माना जाता है, इसलिए उनके शुभ कदम सकारात्मक ऊर्जा और शुभता का स्रोत माने जाते हैं.
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