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मदन गुप्ता सपाटू, ज्योतिर्विद्
जैसे ही बसंत आता है, उपकार फिल्म का प्रसिद्ध गीत -‘पीली पीली सरसों फूली, पीली उड़े पतंग, अरे पीली पीली उड़े चुनरिया, पीली पगड़ी के संग’, भी खेतों का दृश्य लेकर मन मस्तिष्क में तैरने लगता है।
प्रकृति और मानव का संबंध आदिकाल से रहा है। प्राकृतिक अवस्था के अनुसार दो-दो महीने की छः ऋतुएँ बसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत जैसी ऋतुएँ आकर प्रकृति को शोभायमान करती रहती हैं। ऋतु चक्र चैत्र और वैशाख दोनों ही महीने वसंत ऋतु के माने गए हैं। इस महीने को ‘ऋतुराज’ नाम से, तो कहीं ‘मधुमास’ से भी संबोधित किया जाता रहा है।
इस महीने में आकाश से कुहरा कम हो जाता है, ठंड कम पड़ने लगती है, आसमान निर्मल स्वच्छ हो जाता है, नदी, सरोवर, तालाब का जल अपनी भौतिक छवि से सबके मन को आकर्षित करते हैं। इसी महीने में पेड़ों में नई-नई कोपलें फूटती है। सरसों, जौ, आलू, गेहूँ, चना, मटर, तीसी की फ़सल तैयार होने को होती हैं। इसी महीने में भाैंरे, मधुमक्खी, पराग का आनंद लेते हैं तथा मधुमक्खी शहद इकट्ठा करने का काम तेज़ी से करती है। कोयल और पपीहा अमराइयों से मस्त मधुर गान करते हैं।
मधुऋतु बसंत के इस सुरम्य प्राकृतिक सुषमा और संपन्न वातावरण को कवियों ने अपनी लेखनी के माध्यम से उसके विविध रूपों में स्थापित करने का प्रयास किया है। पीला रंग इस बात का द्योतक है कि फसलें पकने वाली हैं इसके अलावा पीला रंग समृद्धि का सूचक भी कहा गया है।
50+ Happy Basant Panchmi Quotes in Hindi English बसंत पंचमी की शुभकामनाएं
Bengali Quotes on Saraswati Puja সরস্বতী পূজার বাংলা উক্তি
इस पर्व के साथ शुरू होने वाली वसंत ऋतु के दौरान फूलों पर बहार आ जाती है, खेतों में सरसों सोने की तहर चमकने लगता है, जौ और गेहूं की बालियां खिल उठती हैं और इधर उधर रंगबिरंगी तितलियां उड़ती दिखने लगती हैं। इस पर्व को ऋषि पंचमी के नाम से भी जाना जाता है।
बसंत पंचमी या श्रीपंचमी एक हिन्दू का त्योहार है। इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। इस दिन पीले वस्त्र धारण करते हैं। प्राचीन भारत और नेपाल में पूरे साल को जिन छह मौसमों में बाँटा जाता था उनमें वसंत लोगों का सबसे मनचाहा मौसम था। जब फूलों पर बहार आ जाती, खेतों में सरसों का फूल मानो सोना चमकने लगता, जौ और गेहूँ की बालियाँ खिलने लगतीं, आमों के पेड़ों पर मांजर आ जाता और हर तरफ़ रंग-बिरंगी तितलियाँ मँडराने लगतीं। भर भर भंवरे भंवराने लगते।
वसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के पाँचवे दिन एक बड़ा जश्न मनाया जाता था जिसमें विष्णु और कामदेव की पूजा होती हैं। यह वसंत पंचमी का त्यौहार कहलाता था। शास्त्रों में बसंत पंचमी को ऋषि पंचमी से उल्लेखित किया गया है, तो पुराणों-शास्त्रों तथा अनेक काव्यग्रंथों में भी अलग-अलग ढंग से इसका चित्रण मिलता है।
वसंत ऋतु आते ही प्रकृति का कण-कण खिल उठता है। मानव तो क्या पशु-पक्षी तक उल्लास से भर जाते हैं। हर दिन नयी उमंग से सूर्योदय होता है और नयी चेतना प्रदान कर अगले दिन फिर आने का आश्वासन देकर चला जाता है। वसन्त पंचमी के समय सरसो के पीले-पीले फूलों से आच्छादित धरती की छटा देखते ही बनती है।
वसंत पंचमी के दिन कोई भी नया काम प्रारम्भ करना भी शुभ माना जाता है। जिन व्यक्तियों को गृह प्रवेश के लिए कोई मुहूर्त ना मिल रहा हो वह इस दिन गृह प्रवेश कर सकते हैं या फिर कोई व्यक्ति अपने नए व्यवसाय को आरम्भ करने के लिए शुभ मुहूर्त को तलाश रहा हो तो वह वसंत पंचमी के दिन अपना नया व्यवसाय आरम्भ कर सकता है।
History And Importance of Basant Panchami
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