होम / रथयात्रा से पहले इतने दिन तक बीमार रहते हैं भगवान जगन्नाथ, यहां जानें रोचक रहस्य

रथयात्रा से पहले इतने दिन तक बीमार रहते हैं भगवान जगन्नाथ, यहां जानें रोचक रहस्य

Rajesh kumar • LAST UPDATED : July 3, 2024, 6:38 pm IST

India News (इंडिया न्यूज़), Jagannath Rathyatra: ओडिशा के पुरी धाम में रथ यात्रा की तैयारियां चल रही हैं। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को रथ यात्रा का आयोजन किया जाता है। इस दिन भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ श्रीमंदिर से निकलकर भ्रमण के लिए निकलते हैं। उनके इस भ्रमण कार्यक्रम को रथ यात्रा कहते हैं, जिसे भक्त बड़े उत्साह से मनाते हैं और उनकी अभिलाषा होती है कि उन्हें भी भगवान का रथ खींचने का सौभाग्य प्राप्त हो।

भले ही रथ यात्रा एक दिवसीय वार्षिक आयोजन है और साल में एक बार ही होता है, लेकिन इसकी तैयारी पूरे साल चलती रहती है। इसमें भी तिथियों का बहुत महत्व होता है। जैसे मंदिर में रथ बनाने की प्रक्रिया मकर संक्रांति के दिन से शुरू होती है और फिर हर आने वाली तिथि के साथ चरणबद्ध तरीके से यह कार्य पूरा होता है। इसमें हर तिथि और उस दिन किए जाने वाले अनुष्ठान को एक विशेष नाम दिया गया है, जैसे रथ यात्रा आयोजन से ठीक 15 दिन पहले भगवान का अस्वस्थ होना।

माता सीता ने कैसे छोड़ा था पृथ्वी लोक, पुराणों में दी गई दो अलग कहानी

ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा के दिन जब गर्मी अधिक होती है, तब देवताओं की मूर्तियों को 108 घड़ों के जल से स्नान कराया जाता है। इस स्नान के बाद तीनों देवता बीमार पड़ जाते हैं और फिर एकांतवास में चले जाते हैं। एकांतवास की इस प्रक्रिया को पुरी में ‘अनासरा’ कहा जाता है। इन 15 दिनों के दौरान देवताओं की मूर्तियों के दर्शन नहीं होते। 15 दिनों के बाद जब जगन्नाथ जी स्वस्थ हो जाते हैं, तो उस दिन ‘नैनासर उत्सव’ मनाया जाता है। इस दिन भगवान का फिर से श्रृंगार किया जाता है, उन्हें नए वस्त्र पहनाए जाते हैं और इसके बाद उन्हें भ्रमण के लिए तैयार किया जाता है। फिर रथों को श्रीमंदिर के मुख्य द्वार पर लाया जाता है और फिर दो दिन बाद यहां से रथयात्रा शुरू होती है। यह कुछ इस तरह है कि जब जगन्नाथ जी बीमारी के कारण कई दिनों तक एकांतवास में होते हैं, तो उनका मन बदलने के लिए वे अपने भाई-बहन के साथ भ्रमण पर निकल पड़ते हैं।

क्या देवता भी बीमार पड़ते हैं?

यहां सवाल उठता है कि क्या देवता भी बीमार पड़ते हैं? लेकिन क्यों और कैसे? इन सवालों के पीछे एक दुखद कहानी है, भगवान जगन्नाथ की महिमा में यह लोककथा काफी प्रचलित है। बहुत समय पहले की बात है। ओडिशा के पुरी क्षेत्र में एक भक्त माधव दास रहते थे। वे प्रतिदिन भगवान की पूजा करते थे, प्रसाद के रूप में जो भी मिलता था उसी पर गुजारा करते थे और सादा जीवन जीते थे। एक बार वे बीमार पड़ गए। उन्हें तेज बुखार हो गया। वे अकेले थे इसलिए उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं था। तब भी उन्होंने अपनी भक्ति कम नहीं की। लोग उन्हें डॉक्टर से मिलने, दवा लेने की सलाह देते थे, लेकिन कोई भी उनका इलाज नहीं कराता था।

माधव दास यह भी कहते थे कि जब भगवान मेरा ख्याल रख रहे हैं तो मुझे किसी की क्या जरूरत है। लेकिन, एक दिन बीमारी से कमजोर माधव दास बेहोश हो गए। तब अपने भक्त को परेशानी में देखकर भगवान खुद मंदिर से बाहर आए और उनकी सेवा करने लगे। जगन्नाथ जी उन्हें दवा देते, उनके हाथ-पैरों की मालिश करते। उन्हें नहलाते, कपड़े बदलते और अपने हाथों से खाना खिलाते। जब माधवदास ठीक होने लगे तो उन्होंने पहचान लिया कि भगवान खुद उनकी सेवा कर रहे हैं। यह देखकर माधवदास रोने लगे।

दूसरों के घर में कदम रखने से पहले जान लें Chanakya Niti में कही गई ये बातें

उन्होंने कहा, आप मेरी सेवा करने क्यों आए हैं? आप तो मुझे तुरंत ठीक कर सकते थे। तब जगन्नाथ जी ने कहा, मैं अपने भक्तों को नहीं छोड़ता, लेकिन उनके कर्म में जो लिखा है, वही होगा, लेकिन आइए, मैं एक काम करता हूं। आपकी बीमारी के अभी 15 दिन बाकी हैं। मैं उसे अपने ऊपर ले लूंगा। उस दिन ज्येष्ठ पूर्णिमा थी।

जगन्नाथ जी अपने मंदिर पहुंचे और उसी दिन स्नान के बाद उन्हें बुखार आने लगा। तभी से पुरी में यह परंपरा शुरू हुई। अपने भक्त माधवदास की बीमारी के कारण भगवान बीमार पड़ जाते हैं और इस दौरान एकांतवास में चले जाते हैं। इसे अनासर कहते हैं। कहते हैं कि जिस तरह एक बार उन्होंने अपने भक्त माधवदास का दर्द अपने ऊपर ले लिया था, उसी तरह वे हर साल अपने भक्तों का दर्द दूर करते हैं, लेकिन भक्ति सच्ची होनी चाहिए। 15 दिन बाद जब भगवान स्वस्थ हो जाते हैं, तो नैनासर उत्सव मनाया जाता है, इसके बाद ही भगवान भ्रमण पर निकलते हैं। इस यात्रा को रथ यात्रा कहते हैं। अनासर विधि पूजा क्या है

क्या है अनासर विधि?

भगवान जगन्नाथ के धाम पुरी के श्रीमंदिर में हर साल अनासर विधि की जाती है। यह एक धार्मिक अनुष्ठान है, जो ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा के दिन किया जाता है। इसे अनासर कहते हैं। इसे स्नान पर्व, स्नान पूर्णिमा भी कहते हैं। गर्मी से राहत पाने के लिए मंदिर के देवता स्नान पर्व (देव स्नान पूर्णिमा) के दौरान 108 घड़ों के ठंडे पानी से स्नान करते हैं। इस शाही स्नान समारोह के बाद तीनों देवता बीमार हो जाते हैं और उन्हें 15 दिनों की अवधि के लिए सार्वजनिक दृष्टि से दूर रहना पड़ता है। इसे ‘अनासर’ या ‘अनासर’ अवधि के रूप में जाना जाता है। अनासर अवधि ज्येष्ठ पूर्णिमा से शुरू होती है और आषाढ़ अमावस्या को समाप्त होती है।

अनावसर अवधि के 15 दिनों में मंदिर की पूजा पद्धति रोजाना से कुछ अलग हो जाती है। इस दौरान जब देवता मुख्य मूर्तियों के रूप में विश्राम करते हैं, तो श्रीमंदिर में देवताओं की रंग-बिरंगी पेंटिंग्स की पूजा की जाती है। इन पेंटिंग्स में भगवान जगन्नाथ को भगवान विष्णु, भगवान बलभद्र को भगवान शिव और देवी सुभद्रा को आदिशक्ति के रूप में दर्शाया गया है। सुबह मंगला आरती की जाती है और दीप जलाए जाते हैं। इसके बाद देवताओं को दंतधौति (दांतों की सफाई, मुंह की शुद्धि) दी जाती है और फिर स्नान कराया जाता है।

Hathras Satsang Stampede जैसे हालातों में फंस जाएं तो क्या करें? इन टिप्स से भगदड़ में बच सकती हैं जानें

जब आषाढ़ की कृष्ण पंचमी तिथि अनासर अनुष्ठान के दौरान पड़ती है, तो इस दिन श्रीमंदिर में अनासर पंचमी मनाई जाती है। गुरुवार को अनासर पंचमी के अवसर पर महाप्रभु जगन्नाथ और उनके भाई-बहन भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा को ‘फुलुरी’ तेल उपचार दिया जाता है। इसे फुलुरी तेल सेवा के रूप में जाना जाता है। मूर्तियों पर फुलुरी तेल लगाया जाता है। यह विशेष अनुष्ठान भगवान जगन्नाथ और उनके भाई-बहनों को ‘स्नान यात्रा’ के दौरान अत्यधिक स्नान करने से होने वाले बुखार से राहत दिलाने के लिए किया जाता है।

फुलुरी तेल अनुष्ठान के लिए, ‘फुलुरी’ तेल को केतकी, मल्ली, बौला और चंपा जैसे कई सुगंधित फूलों, जड़ों, चंदन पाउडर, कपूर, चावल, अनाज और जड़ी-बूटियों के साथ मिलाकर तैयार किया जाता है। शुद्ध तिल का तेल, बेना की जड़ें, चमेली, जुई, मल्ली और चंदन पाउडर जैसे सुगंधित फूल फुलुरी तेल बनाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली 24 सामग्रियों में से हैं। हर साल रथ यात्रा के पांचवें दिन ‘हेरा पंचमी’ के अवसर पर तैयारियां शुरू हो जाती हैं और करीब एक साल तक भूमिगत रखने के बाद इन्हें इस्तेमाल के लिए मंदिर के अधिकारियों को सौंप दिया जाता है। रथ यात्रा से एक दिन पहले ‘नव जौबाना दर्शन’ के अवसर पर फुलुरी तेल उपचार के बाद तीनों देवता अपनी बीमारी से ठीक हो जाएंगे और फिर रथ यात्रा शुरू होगी।

3 या 4 जुलाई, कब होगा आषाढ़ का पहला प्रदोष व्रत, जानें शुभ मुहूर्त और काल

Get Current Updates on News India, India News, News India sports, News India Health along with News India Entertainment, India Lok Sabha Election and Headlines from India and around the world.

ADVERTISEMENT

लेटेस्ट खबरें

Hathras Stampede: महुआ मोइत्रा की ‘अभद्र टिप्पणी’ से मचा बवाल, FIR दर्ज करने की मांग
घर पर बनाना चाहते है बाजार जैसा मोमोज, तो ये रेसिपी जरूर करें ट्राई
Anant-Radhika के ग्रैंड संगीत सेरेमनी से इनसाइड झलकियां आई सामने, वेन्यू को फूलों और खूबसूरत रोशनी से सजाया
पालतू कुत्ते की चमक गई किस्मत, गले में खरीदकर पहना दी 2.5 लाख की चेन
रुद्राक्ष की माला धारण करने के बाद इन 5 बातों का रखें खास ध्यान, नहीं तो फायदे के जगह उठाने पड़ जायेंगे नुकसान!
Sonakshi Sinha ने अपनी प्रेग्नेंसी को लेकर किया खुलासा, शादी के बाद जहीर इकबाल संग अस्पताल जाने पर तोड़ी चुप्पी
Anant-Radhika की शादी से पहले होंगे कई पूजा-पाठ, यंगस्टर पार्टी का भी किया है खास इंतजाम, जानें डिटेल्स
ADVERTISEMENT