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India News (इंडिया न्यूज), Mahabharat Arjun: महाभारत के युद्ध से पहले अर्जुन को एक गहरा एहसास हुआ कि यह युद्ध केवल एक साधारण युद्ध नहीं है, बल्कि धर्म और अधर्म की निर्णायक लड़ाई है। उसे यह भी समझ में आया कि इस युद्ध को जीतने के लिए केवल साधारण अस्त्र-शस्त्र ही पर्याप्त नहीं होंगे। उसे एक ऐसे दिव्य अस्त्र की आवश्यकता थी जो अत्यंत शक्तिशाली हो और जिसका सामना कोई भी दुश्मन न कर सके।
इस विचार के साथ, अर्जुन ने भगवान शिव की घोर तपस्या करने का निश्चय किया। वह एकांत वन में गए, जहां उन्होंने कड़े नियमों का पालन करते हुए दिन-रात भगवान शिव की आराधना की। अर्जुन की तपस्या इतनी कठिन थी कि देवताओं के राजा, इंद्र, भी उससे प्रभावित हुए। इंद्र ने अर्जुन को दर्शन दिए और कहा, “अर्जुन, तुम्हारी तपस्या अभूतपूर्व है। परंतु जान लो कि पाशुपतास्त्र, जिसे तुम प्राप्त करना चाहते हो, केवल भगवान शिव ही प्रदान कर सकते हैं।”
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अर्जुन ने इंद्र को नमन किया और अपनी तपस्या जारी रखी। उसकी आराधना से सारे देवता और यहां तक कि स्वयं भगवान शिव भी प्रसन्न हो गए। परंतु भगवान शिव को यह देखना था कि अर्जुन वास्तव में इस घातक अस्त्र के योग्य है या नहीं। उन्होंने उसकी परीक्षा लेने का निर्णय किया।
इसी बीच, एक दिन, अर्जुन की तपस्या में एक विचित्र घटना घटी। एक विशाल सूअर, जो वास्तव में एक राक्षस था, वन में आया और उसने अर्जुन की तपस्या भंग करने की कोशिश की। अर्जुन ने तुरंत अपना धनुष उठाया और सूअर पर बाण चला दिया। उसी समय, एक वनवासी, जिसने भगवान शिव का रूप धारण किया था, भी उसी सूअर पर बाण चलाया।
दोनों बाण एक ही समय पर सूअर को लगे और सूअर वहीं गिरकर मर गया। इसके बाद, वनवासी और अर्जुन के बीच विवाद शुरू हो गया कि सूअर को किसने मारा। इस विवाद ने जल्द ही एक युद्ध का रूप ले लिया। अर्जुन और वनवासी के बीच घमासान लड़ाई शुरू हो गई। वनवासी ने अर्जुन पर एक के बाद एक घातक अस्त्र चलाए, लेकिन अर्जुन ने भी उन्हें सफलतापूर्वक रोका। अंततः वनवासी ने अर्जुन पर ऐसा अस्त्र चलाया जिससे अर्जुन बेहोश हो गए।
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जब अर्जुन को होश आया, तो उन्होंने वनवासी को अपने समक्ष खड़ा देखा। अर्जुन को समझते देर न लगी कि यह कोई साधारण वनवासी नहीं है। उन्होंने तुरंत वनवासी के चरणों में गिरकर कहा, “प्रभु, मैं जान गया हूँ कि आप कौन हैं। कृपया मुझे क्षमा करें और मुझे आशीर्वाद दें।”
वनवासी ने मुस्कराते हुए कहा, “अर्जुन, मैं वास्तव में भगवान शिव हूँ। तुम्हारी भक्ति और तपस्या से मैं अत्यंत प्रसन्न हूँ। तुमने धैर्य और साहस का परिचय दिया है। इसलिए, मैं तुम्हें वह दिव्य अस्त्र पाशुपतास्त्र प्रदान करता हूँ, जिसकी तुम्हें आवश्यकता है।”
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भगवान शिव ने अर्जुन को पाशुपतास्त्र प्रदान किया, जो इतना शक्तिशाली था कि पूरे ब्रह्मांड को नष्ट करने की क्षमता रखता था। अर्जुन ने इस अस्त्र को श्रद्धापूर्वक ग्रहण किया और भगवान शिव का आभार व्यक्त किया। कुछ मान्यताओं के अनुसार, अर्जुन ने महाभारत के युद्ध में जयद्रथ को मारने के लिए इस अस्त्र का उपयोग किया था।
इस प्रकार, अर्जुन को भगवान शिव से पाशुपतास्त्र प्राप्त हुआ, जो उसे न केवल महाभारत के युद्ध में विजय दिलाने में सहायक बना, बल्कि उसके शौर्य और पराक्रम की गाथा भी अमर हो गई।
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