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India News (इंडिया न्यूज), Mahabharat Yudhishthir: महाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका था। कुरुक्षेत्र के मैदान में लाखों योद्धा अपने प्राण गंवा चुके थे, और कौरवों के सभी पुत्र वीरगति को प्राप्त हो चुके थे। पांडवों ने युद्ध तो जीत लिया था, लेकिन विजयी होने के बाद भी उनके दिल में कोई खुशी नहीं थी। उन्हें अपने भाई-बन्धुओं की मृत्यु का गहरा दुख था, और सबसे अधिक दुख था, कौरवों की माता गांधारी का सामना करने का।
युद्ध के बाद पांडवों को धृतराष्ट्र और गांधारी से मिलने के लिए राजमहल बुलाया गया। जब पांडव राजमहल पहुंचे, तो वहां का माहौल शोक और क्रोध से भरा हुआ था। धृतराष्ट्र और गांधारी दोनों अपने पुत्रों की मृत्यु से टूट चुके थे। खासकर गांधारी, जो अपनी संतान को खोने के बाद आक्रोश और दु:ख से व्याकुल थी।
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पांडवों ने सिर झुकाए, गांधारी के सामने जाकर खड़े हो गए। गांधारी के चेहरे पर पट्टी बंधी थी, लेकिन उसकी उपस्थिति से ही पांडवों को उसकी असहनीय पीड़ा का अनुभव हो रहा था। गांधारी ने अपने संतप्त मन से पांडवों से संवाद करना शुरू किया। गांधारी ने सबसे पहले भीम से कहा, “तुमने मेरे पुत्र दुर्योधन को मारकर उसके खून को पिया था। क्या यह उचित था?” भीम ने नज़रें नीची करते हुए उत्तर दिया, “माते, मैंने प्रतिज्ञा ली थी कि मैं दुर्योधन के खून को पीऊंगा, लेकिन मैंने उसे अपने दांतों के आगे नहीं जाने दिया। मैंने सिर्फ अपनी प्रतिज्ञा पूरी की थी।”
भीम की बात सुनकर गांधारी का गुस्सा आसमान छूने लगा। उसके दिल में द्वेष की आग भड़क उठी। उसके मन में बदले की भावना जाग्रत हो गई। उसने अपने क्रोध से भरे मन से युधिष्ठिर की ओर देखा।
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गांधारी की दृष्टि में अपार शक्ति थी। वह दृष्टि, जो अब तक उसने अपने पतिव्रता धर्म के कारण बांध रखी थी, उस दिन एक क्षण के लिए खुल गई। युधिष्ठिर के पैरों पर जैसे ही उसकी नजर पड़ी, उनके नाखून काले पड़ने लगे। यह दृश्य देखकर पांचों पांडव सकते में आ गए। उन्होंने कभी ऐसा अद्भुत और भयावह दृश्य नहीं देखा था। वे डरकर पीछे हट गए।
गांधारी का क्रोध ऐसा था कि अगर वह पूरी तरह से युधिष्ठिर की ओर देखती, तो उसे जलाकर राख कर सकती थी। लेकिन उसकी ममता और धर्म ने उसे रोक लिया। वह अपने क्रोध को शांत करने की कोशिश करने लगी। धीरे-धीरे गांधारी का गुस्सा शांत हो गया, लेकिन उस एक क्षण ने पांडवों के दिलों में हमेशा के लिए एक भय छोड़ दिया।
गांधारी ने फिर से अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली और चुपचाप बैठ गई। उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे, लेकिन उसकी नजरों का भय पांडवों के दिलों में हमेशा के लिए बस गया था। यह घटना महाभारत की उन अनकही कहानियों में से एक बन गई, जो हमेशा याद रखी जाएगी।
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