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कौन था यमराज का वो अवतार जिसने बचाइ थी पांडवों की जान, कहा 'अब होगा विनाश' ,नाम जान हो जाएंगे हैरान!

BY: Preeti Pandey • LAST UPDATED : December 4, 2024, 8:50 am IST
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कौन था यमराज का वो अवतार जिसने बचाइ थी पांडवों की जान, कहा 'अब होगा विनाश' ,नाम जान हो जाएंगे हैरान!

Vidur Niti In Mahabharata: कौन था यमराज का वो अवतार जिसने बचाइ थी पांडवों की जान

India News (इंडिया न्यूज), Vidur Niti In Mahabharata: महात्मा विदुर भी महाभारत के मुख्य पात्रों में से एक हैं। वे महाराज धृतराष्ट्र के छोटे भाई होने के साथ-साथ हस्तिनापुर के मुख्यमंत्री भी थे। वे राजा धृतराष्ट्र को हमेशा सही सलाह देते थे। वे पांडव पुत्रों से अधिक लगाव रखते थे, क्योंकि वे हमेशा धर्म के अनुसार रहते थे। इसी कारण दुर्योधन हमेशा उनका अपमान करता था। उनकी मृत्यु भी बहुत ही विचित्र तरीके से हुई थी।

लेना पड़ा था विदुर का रूप

महाभारत के अनुसार, प्राचीन काल में माण्डव्य नाम के एक ऋषि थे। एक बार राजा ने अनजाने में उन्हें बिना कोई अपराध किए भी दंड दे दिया। ऋषि ने राजा से कुछ नहीं कहा और वे सीधे यमराज के पास चले गए। वहां उन्होंने यमराज से पूछा, ‘मुझे किस अपराध की सजा मिली है?’ तब यमराज ने उनसे कहा कि ‘जब तुम छोटे थे, तो तुमने एक कीड़े की पूंछ में सुई चुभो दी थी।

तुम्हें उसी की सजा मिली है।’ तब ऋषि माण्डव्य ने कहा, ‘आपने मुझे एक छोटे से अपराध के लिए इतनी बड़ी सजा दी है, इसलिए आपको धरती पर दासी के पुत्र के रूप में जन्म लेना होगा।’ इस श्राप के कारण यमराज को धरती पर महात्मा विदुर के रूप में जन्म लेना पड़ा।

पांडवों की जान बचाई

जब दुर्योधन ने पांडवों को लाक्षागृह में जलाकर मारने की साजिश रची, तो महात्मा विदुर को इसकी जानकारी पहले ही हो गई और उन्होंने बातचीत के दौरान संकेतों के माध्यम से युधिष्ठिर को यह बात समझा दी। महात्मा विदुर द्वारा भेजे गए सेवक ने लाक्षागृह के नीचे एक सुरंग बना दी, जिसके जरिए पांडव भाग निकले और अपनी जान बचाई।

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विचित्र तरीके से हुई मृत्यु

युद्ध समाप्त होने के बाद महात्मा विदुर काफी समय तक हस्तिनापुर में रहे। बाद में जब धृतराष्ट्र, गांधारी, कुंती ने वन में अपना जीवन बिताने का फैसला किया, तो विदुर भी उनके साथ वन चले गए। यहां उन्होंने घोर तपस्या की। फिर एक दिन पांडव उनसे मिलने के लिए वन में गए, लेकिन विदुर ने उन्हें देख लिया और उनसे मिले बिना ही जाने लगे।

युधिष्ठिर ने उन्हें देखा और उनके पीछे भागे। थोड़ी दूर जाने पर विदुर एक पेड़ के नीचे खड़े हो गए। उसी समय विदुरजी की आत्मा उनके शरीर को छोड़कर युधिष्ठिर में प्रवेश कर गई। बाद में युधिष्ठिर ने यह बात सबको बताई।

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