इस गांव में प्रवेश से पहले खुद Jagannath प्रभु को देना पड़ता हैं लगान? जानें क्या है123 साल से चली आ रही इस परम्परा, Why does one have to pay tax to Jagannath Prabhu himself before entering this village-IndiaNews
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इस गांव में प्रवेश से पहले खुद Jagannath प्रभु को देना पड़ता हैं लगान? जानें क्या है123 साल से चली आ रही इस परम्परा?

Prachi Jain • LAST UPDATED : July 9, 2024, 2:09 pm IST
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इस गांव में प्रवेश से पहले खुद Jagannath प्रभु को देना पड़ता हैं लगान? जानें क्या है123 साल से चली आ रही इस परम्परा?

India News(इंडिया न्यूज), Lord Jagannath: जगन्नाथ रथ यात्रा एक प्रमुख हिंदू त्यौहार है जो उड़ीसा राज्य के पुरी शहर में मनाया जाता है। इस दिन भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र, और बहन सुभद्रा, तीन रथों में बैठकर अपने मंदिर से बाहर निकलते हैं और गुंडिचा मंदिर जाते हैं। इन दिनों पुरी शहर में प्रभु की रथ यात्रा खूब ज़ोरो-शोरो से मनाई जा रही हैं।

देवभोग के 84 गांवों में भगवान जगन्नाथ जी को लगान देने की प्राचीन परंपरा

छत्तीसगढ़ के देवभोग में भगवान जगन्नाथ जी के प्रति श्रद्धा और आस्था की एक अद्वितीय परंपरा चली आ रही है। इस क्षेत्र के 84 गांवों के लोग पिछले 123 वर्षों से भगवान जगन्नाथ जी को लगान अर्पित करते आ रहे हैं। यह परंपरा अब भी उसी जोश और विश्वास के साथ निभाई जा रही है।

लगान देने की परंपरा

इस परंपरा के अनुसार, भगवान जगन्नाथ जी को चावल और नगद रूप में लगान अर्पित किया जाता है। इस लगान से प्राप्त राशि मंदिर के संचालन में उपयोग की जाती है। देवभोग स्थित जगन्नाथ जी का मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि यह ग्रामीणों के लिए एक सांस्कृतिक धरोहर भी है।

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मंदिर का इतिहास

देवभोग में स्थित जगन्नाथ जी के मंदिर का इतिहास 123 वर्षों से भी अधिक पुराना है। मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष देवेंद्र बेहेरा के अनुसार, 18वीं शताब्दी में मिछ मूंड नामक एक पंडित पुरी से जगन्नाथ भगवान की प्रतिमा लेकर झराबहाल गांव पहुंचे। यहां उन्होंने प्रतिमा को बरगद के पेड़ के नीचे स्थापित किया और पूजा-अर्चना करने लगे। धीरे-धीरे इस प्रतिमा के प्रति लोगों की आस्था बढ़ती गई और यह स्थान धार्मिक महत्त्व का केंद्र बन गया।

आस्था और श्रद्धा का प्रतीक

भगवान जगन्नाथ जी के प्रति लोगों की आस्था इतनी गहरी है कि वे अपने धान और धन का एक हिस्सा लगान के रूप में नियमित रूप से अर्पित करते हैं। इस परंपरा ने न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से भी इन गांवों को जोड़े रखा है।

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देवभोग का यह मंदिर और यहां की परंपरा उस समय की याद दिलाती है जब धर्म और संस्कृति लोगों के जीवन का अभिन्न अंग थे। यह परंपरा आज भी ग्रामीणों के जीवन में आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार करती है और भगवान जगन्नाथ जी के प्रति उनकी अटूट आस्था को दर्शाती है।

इस प्रकार, देवभोग के 84 गांवों में भगवान जगन्नाथ जी को लगान देने की परंपरा न केवल एक धार्मिक कर्तव्य है, बल्कि यह एक ऐतिहासिक धरोहर भी है जो पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है।

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Disclaimer: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है। पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।

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