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Janmashtami: क्यों कहा जाता है भगवान कृष्ण को लड्डू गोपाल, बेहद दिलचस्प है ये कहानी

Nidhi Jha • LAST UPDATED : August 25, 2024, 1:42 pm IST

Janmashtami

India News Delhi (इंडिया न्यूज़), Janmashtami: भारत में जन्माष्टमी का त्यौहार बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। भगवान श्री कृष्ण का जन्म इस दिन कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मध्य रात्रि में रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। जन्माष्टमी का त्यौहार हर साल भादो महीने में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। भगवान श्री कृष्ण का जन्म जन्माष्टमी के दिन हुआ था। श्री कृष्ण को एक या दो नहीं बल्कि कई नामों से जाना जाता है। जिनमें से एक नाम है लड्डू गोपाल, इसके पीछे एक बेहद रोचक कहानी है।

श्री कृष्ण ने बालक का रूप धारण किया

ब्रज भूमि में भगवान श्री कृष्ण के एक भक्त थे, जिनका नाम कुंभनदास जी था। कुंभनदास के एक पुत्र थे, जिनका नाम रघुनंदन था। कुंभनदास प्रतिदिन मुरलीधर के रूप में भगवान कृष्ण की पूजा करते थे। उनकी भक्ति और सेवा में कोई कमी न रह जाए, इसलिए वे नगर से बाहर भी नहीं जाते थे। एक बार उन्हें वृंदावन से भागवत कथा के लिए निमंत्रण मिला, लेकिन उन्होंने मना कर दिया। लेकिन कुछ लोगों के आग्रह पर वे इस शर्त पर जाने को तैयार हो गए।

कुंभनदास ने अपने पुत्र को समझाया कि वे भगवान को जो भोग लगाते हैं, वह तैयार हो चुका है और तुम्हें समय पर श्री कृष्ण को भोग लगाना चाहिए। इसलिए ठाकुर जी ने बाल रूप धारण किया रघुनंदन ने पिता की बात मानकर समय पर भोग की थाली ठाकुर जी के सामने रख दी और उनसे भोग स्वीकार करने को कहा। रघुनंदन भी बालक थे, इसलिए उन्होंने सोचा कि श्री कृष्ण स्वयं आकर अपने हाथों से भोग खाएंगे। रघुनंदन ने बार-बार भगवान से आग्रह किया कि वे आकर भोग ग्रहण करें। इसके बाद श्री कृष्ण ने बालक का रूप धारण किया और भोजन करने बैठ गए, जिसके बाद रघुनंदन बहुत प्रसन्न हुए।

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क्यों कहा जाता है लड्डू गोपाल 

जब कुंभनदास जी रात को घर लौटे तो उन्होंने अपने बेटे से पूछा कि क्या उसने ठाकुर जी को भोग लगाया है! उसने कहा हां, तब कुंभनदास ने कहा प्रसाद लाओ, तब रघुनंदन ने कहा पूरा खत्म हो गया है, ठाकुर जी ने पूरा प्रसाद खा लिया। कुंभनदास हैरान हो गए और सोचने लगे कि रघुनंदन को भूख लगी होगी, इसलिए उसने पूरा प्रसाद खुद ही खा लिया होगा। यह घटना हर दिन होने लगी। जिसके बाद उन्हें लगा कि उनका बेटा झूठ बोलना सीख गया है।

कुंभनदास एक दिन पूरी घटना को छिपकर देखने लगे कि देखें रघुनंदन उनकी पीठ पीछे उस प्रसाद का क्या करता है। रघुनंद ने ठाकुर जी को पुकारा, जिसके बाद वह बालक के रूप में आए और लड्डू खाने लगे। कुंभनदास उनके पैरों में गिर पड़े। इस दौरान ठाकुर जी के एक हाथ में लड्डू था और दूसरे हाथ का लड्डू उनके मुंह में जाने ही वाला था कि वे उसी क्षण मूर्ति में बदल गए। इसके बाद से उनका नाम लड्डू गोपाल पड़ गया और पूरी दुनिया उन्हें इसी रूप में पूजने लगी।

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