संबंधित खबरें
क्या आपको भी सोते समय आते है शारीरिक संबंध बनाने के सपने? क्या होता है ऐसे सपनो का मतलब, जानें सब कुछ
पिता से ज्यादा पति के लिए भाग्य का भंडार होती है ऐसी लड़कियां, पसंद करने जाए लड़की तो देख ले उसकी उंगली पर ये एक साइन?
इन लोगों को भूलकर भी नहीं पहनना चाहिए रुद्राक्ष, शिव जी का ऐसा प्रकोप दिखाता है कि…?
जब कर्ण की ओर आग-बबूला हो गदा लेकर दौड़े थे हनुमान, फिर किसने किया था बजरंग बली का गुस्सा शांत और बचाई थी कर्ण की जान?
इस देवता की मृत्यु के बाद क्यों उनके शरीर की राख को 8 भागों में कर दिया गया था विभाजित?
जब भगवान राम अपने भक्त पर ब्रह्मास्त्र चलाने को हो गए थे मजबूर, क्या सच में हनुमान को सुनाई थी मौत की सज़ा?
इन्नी कौर
हम सब एक ही भगवान की संतान हैं और भगवान की ज्योति हमसब के अंदर है, लोगों तक इस संदेश को पहुंचाने के लिए गुरु नानक और भाई मदार्ना ने कई महीने ग्रामीण क्षेत्रों में बिताये। एक शाम गुरुजी ने कहा, ‘मर्दाना कल हमें हरिद्वार की ओर चलना चाहिए।’ ‘मैंने कई लोगों से सुना है कि यह खुबसूरत पहाड़ियों और घाटियों से घिरा है।’ गुरुजी क्या यह सच है कि हरिद्वार ही वह पहला शहर है जहां गंगा हिमालय से चलकर यहां मिलती है?’ गुरुजी मुस्कुराये, ‘मदार्ना, हम जल्द ही इस बात का भी पता लगा लेंगें।’ अगली सुबह वो हरिद्वार की ओर निकल पड़े। वह ग्रामीण इलाका काफी खुबसूरत था। भाई मदार्ना रास्ते में कई मील तक गन्ने के खेत देखकर काफी रोमांच महसूस कर रहे थे। वो शहर के बाहर ही रुक गये। उन्होंने गंगा का साफ चमकता पानी देखते हुए अपना दोपहर का खाना खाया। शहर के बाहर ही उन्होंने रात बितायी। अगली सुबह गुरुजी और मदार्ना शहर में गये। ‘गुरुजी, मैंने अपने जीवन में इतने सारे लोगों को एक ही स्थान पर नहीं देखा है। मुझे लगता है कि शहर में कोई महोत्सव चल रहा है।
ऐसा लगता है कि अलग-अलग जगहों से कई लोग यहां इसमें हिस्सा लेने आये हैं। गुरुजी सीधे गंगा के किनारे की ओर गये। वह वहां शांति से खड़े होकर नदी का पानी देखने लगे। पूरा नदी पंडितों से भरा हुआ था जो वहां पानी में डुबकी लगा रहे थे। जबकि कुछ अन्य लोग नदी में फूल फेंक रहे थे। कुछ और लोग सूर्य की ओर जल डाल रहे थे। गुरुजी ने अपना वस्त्र उतारा और नदी में उतर गये। लोगों के एक बड़े से समूह के पास जाकर उन्होंने नम्रता से पूछा, ‘आपलोग यह जल सूर्य की ओर क्यों डाल रहे हैं? एक पंडित जो लगातार प्रार्थना का जाप कर रहा था और जल उपर की ओर फेंक रहा था, उसने जवाब दिया, ‘हम यह पवित्र जल अपने पूर्वजों को अर्पित कर रहे हैं जो अब दूसरी दुनियांं में चले गये हैं जो पूर्व दिशा की ओर है। ‘आपके पूर्वज यहां से कितनी दूर हैंं?’ गुरुजी ने सोचते हुए पूछा। ‘ओह, वो यहां से लाखों मील दूर हैं,’ एक दूसरे पंडित ने जवाब दिया। ‘क्या आपको यकीन है कि यह पानी उन तक पहुंच जायेगा?’ गुरुजी ने पूछा। ‘हां जरूर,’ उन सबों ने ऊंची आवाज में जवाब दिया। तब गुरुजी ने पानी को हाथों मेंं भरकर विपरीत दिशा में फेंकना शुरू कर दिया। उनके आस पास के लोग उन्हें आश्चर्य से देखने लगे और उनसे पूछा, ‘आप क्या कर रहे हैं? आप पानी को पश्चिम दिशा की ओर क्यों डाल रहे हैं?’ एक युवा पंडित गुरुजी के पास आया और गुस्से से उनका हाथ पकड़ा। ‘यह जल केवल पूर्व दिशा की ओर फेंका जाना चाहिए क्योंकि उधर ही सूर्य है। केवल तभी यह हमारे पूर्वजों तक पहुंच पायेगा,’ उसने गुरुजी पर चिल्लाते हुए कहा। ‘कृप्या क्रोधित ना हों। मैं यह पानी पंजाब में अपने खेतों में भेज रहा हूं जो कि पश्चिम में है। वहां कुछ दिनों से बरसात नहींं हुई है और मेरी फसल को पानी की आवश्यकता है।’ सब लोग अपना काम छोड़कर रुक गये और जोर-जोर से हंसने लगे। ‘जब यह गंगा का पानी हजारों मील दूर जा सकता है तो क्या यह मेरे खेत तक नहीं पहुंच सकता जो यहां से कुछ सौ मील ही दूर है?’ उन्होंनें पूछा। सारे पंडित एक-दूसरे को देखने लगे। युवा दिखने वाला पंडित बोला, ‘हम यह अनुष्ठान अपने पूर्वजों को खुश करने के लिए करते हैं और आप हमारे तरीके पर सवाल उठा रहे हैं?’ लेकिन पंडितजी, जब यह पानी खेतों तक नहीं पहुंंच सकता तो यह आपके पूर्वजों तक कैसे पहुंचेगा?’ गुरुजी के आगे खड़े एक व्यक्ति ने पूछा। अपने पूर्वजों की देखभाल करने के उन तरीको में से यह एक है जिसमेंं हम गंगा का शुद्ध पानी उन्हें अर्पित करते हैं,’ युवा पंडित ने कहा। ‘पंडितजी जब हमारे पूर्वज जीवित थे तो उनकी देखभाल उन्हें प्यार और सम्मान देकर किया जाता है। जब वह मरते हैं तो उन्हें हमसे किसी चीज की आवश्यकता नहीं होती है। हम उनका सम्मान केवल अच्छी चीजें करके कर सकते हैं। ऐसा करके हम उनके नाम को गौरवांंवित कर सकते हैं,’ गुरुजी ने नम्रता से जवाब दिया और पानी से बाहर निकल गये। ‘यह सही कह रहा है,’ वहां खड़े किसी व्यक्ति ने कहा। मुझे लगता है कि वह काफी बुद्धिमान है,’ दूसरे व्यक्ति ने कहा।
वे लोग नदी के किनारे होते हुए गुरुजी के पीछे गये। बुजुर्ग पंडित के साथ कई लोग पानी से बाहर निकले और गुरुजी के चारो ओर बैठ गये। उनमें से एक आदमी ने कहा, ‘मेरा नाम किशोरी लाल है। मैं सिंध से यहां अपने पाप धोने आया हूं। मेरे पंडित ने मुझे इस पवित्र जल को मेरे पूर्वजों को अर्पित करने को और उनकी याद में एक हवन करने को कहा था। मैंने समारोह के लिए गेंहूं, चावल और घी भी खरीद लिया है। लेकिन अब मैं उलझन में हूं।’ ‘सभी नदियां पवित्र है। कोई भी एक नदी किसी अन्य से ज्यादा पवित्र या खास नहीं है। नदी में स्नान करने से तुम्हारा तन साफ हो सकता है लेकिन यह तुम्हारे मन को साफ नहीं कर सकता है। हवन में गेहूं, चावल और घी डालना बेकार है। इसके बजाय यह भोजन किसी जरूरतमंद को देने के बारे में सोचो,’ गुरुजी ने प्यार से जवाब दिया। किशोरी लाल मान गया। ‘मेरे मन को क्या साफ कर सकता है?’ बुजुर्ग पंडित ने पूछा। ‘जो भी काम आप करते हैं, उसमें भगवान को याद करना। ईमानदारी से पैसे कमाना और हर किसी के प्रति दयालु और मददगार होना। अगर आप इस तरह जीवन जीते हैं तो आपकी सोच और आपका काम बिल्कुल साफ होगा,’ गुरुजी ने कहा। बुजुर्ग पंडित ने कहा, ‘कृप्या मुझे अपना शिष्य बना लें।’ ‘मेरा शिष्य बनना मुश्किल और आसान दोनोंं है। आपको वो सारे धन त्यागने होंगे जो आपने बैईमानी से कमाया है। आपको अपना जीवन ईमानदारी से जीना शुरू करना होगा। क्या आप इसके लिए तैयार हैं?’ ‘हां,’ पंडितजी ने उत्साहित होकर जवाब दिया। ‘मुझे आपसे बहुत कुछ सीखना है। कृप्या कुछ दिन और यहां मेरे पास ठहर जाएं।’ इसलिये गुरुजी और भाई मदार्ना हरिद्वार में कुछ और महीने रुक गये। आस-पास के और दूर-दूर से भी कई लोग गुरुजी के संदेश को सुनने आने लगे और कई लोग सिख बन गये।
Get Current Updates on, India News, India News sports, India News Health along with India News Entertainment, and Headlines from India and around the world.