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अपने पूर्वजों को दे देता तो…..आखिर क्यों कर्ण को स्वर्ग में नहीं मिलता था अन्न, तब इंद्रदेव ने बताई वजह?

Prachi Jain • LAST UPDATED : September 3, 2024, 4:42 pm IST

India News (इंडिया न्यूज़), Karna In Heaven: महाभारत की गाथाओं में कर्ण एक महान योद्धा और दानवीर के रूप में जाने जाते हैं। उनके जीवन के कई पहलू अद्भुत और प्रेरणादायक हैं, लेकिन उनकी मृत्यु के बाद स्वर्ग में एक दिलचस्प और शिक्षाप्रद घटना घटी। इस कहानी में हम जानेंगे कि कैसे कर्ण ने स्वर्ग में भोजन की कमी का सामना किया और पितृपक्ष के दौरान अपनी गलती को सही किया।

स्वर्ग में कर्ण का पहला अनुभव

कर्ण की मृत्यु के बाद उनकी आत्मा स्वर्ग पहुंची। जैसे ही कर्ण ने स्वर्ग के खूबसूरत आंगन में कदम रखा, उन्होंने देखा कि वहां हर किसी को विभिन्न प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन मिल रहे थे। स्वर्ग का भोजन अत्यंत लुभावना और दिव्य था, लेकिन कर्ण के सामने अन्न का कोई भी टुकड़ा नहीं था। इसके बजाय, उनके सामने सोने, चांदी, हीरे और जवाहरात से भरी एक बड़ी थाली रखी गई थी।

यह दृश्य कर्ण के लिए बेहद अजीब था। उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि भोजन की जगह उन्हें केवल अमूल्य धातुएं और रत्न मिलेंगे। यह देखकर कर्ण ने भगवान इंद्र से पूछा, “हे इंद्रदेव, मैंने अपनी पूरी जिंदगी दान करने में बिताई, लेकिन मुझे भोजन के बदले सोना और धन क्यों दिया जा रहा है?”

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इंद्रदेव का उत्तर

भगवान इंद्र ने कर्ण की बात सुनकर मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, “हे कर्ण, तुम्हारे द्वारा किए गए दान की प्रवृत्ति और स्वभाव को ध्यान में रखते हुए तुम्हें यह पुरस्कार दिया गया है। तुम्हारे जीवन में तुमने हमेशा सोना, चांदी, हीरे और जवाहरात का दान किया है, लेकिन कभी भी अपने पूर्वजों को भोजन नहीं दिया। यही कारण है कि तुम्हें यहां भोजन के बदले धन दिया जा रहा है।”

कर्ण को यह सुनकर बहुत ही आश्चर्य हुआ। उन्होंने कहा, “हे इंद्रदेव, मुझे अपने पूर्वजों के बारे में कभी जानकारी नहीं थी, इसलिए मैं उन्हें कुछ भी दान नहीं कर सका। अब मैं अपनी गलती को सुधारना चाहता हूँ।”

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पितृपक्ष का अवसर

कर्ण की ईमानदारी और पश्चाताप देखकर भगवान इंद्र ने उन्हें एक मौका देने का निर्णय लिया। कर्ण को पितृपक्ष के समय के लिए 16 दिनों के लिए पृथ्वी पर वापस भेजा गया। इस दौरान कर्ण ने पूरी तत्परता और श्रद्धा के साथ श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण की विधियाँ कीं। उन्होंने अपने पूर्वजों के लिए भोजन, पिंड और तर्पण का आयोजन किया, जिससे उनके पूर्वज अत्यंत प्रसन्न हुए।

स्वर्ग में वापसी और भोजन की प्राप्ति

पितृपक्ष के 16 दिनों के बाद, कर्ण को स्वर्ग में वापस भेजा गया। अब उनके सामने स्वादिष्ट भोजन परोसा गया, और स्वर्ग के आंगन में वह अन्य निवासियों के साथ भोजन का आनंद ले सके। कर्ण की आत्मा को अब वे सभी विशेष व्यंजन मिल रहे थे, जिनकी वे कल्पना भी नहीं कर सकते थे।

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निष्कर्ष

कर्ण की इस कहानी से हमें एक महत्वपूर्ण शिक्षा मिलती है, दान और पूजा में केवल भौतिक वस्तुओं की महत्ता नहीं होती, बल्कि हमारे पूर्वजों और परिजनों के प्रति श्रद्धा और सम्मान भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। कर्ण ने अपनी गलती को स्वीकार कर उसे सुधारने का प्रयास किया, और इसी वजह से वे स्वर्ग में भोजन का आनंद ले सके। यह कथा हमें सिखाती है कि सच्चे दान और पूजा का मतलब केवल सामग्री से नहीं, बल्कि हमारे हृदय की भावनाओं से होता है।

Disclaimer: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है। पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।

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