इस व्रत की सबसे विशेष परंपराओं में से एक है ‘सरगी’ देने की प्रथा. मान्यता है कि व्रत का पूर्ण फल प्राप्त करने के लिए सास को बायना देना अत्यंत शुभ माना जाता है. लेकिन अगर किसी महिला की सास न हो या वह अब सुहागन न हों तो ऐसे में व्रत कैसे पूरा किया जाए? आइए जानते हैं परंपरा के अनुसार इसका समाधान.
सरगी की परंपरा का धार्मिक महत्व
करवा चौथ केवल एक व्रत ही नहीं बल्कि पति-पत्नी के अटूट प्रेम और पारिवारिक एकता का प्रतीक है. इस दिन सास को बायना देना केवल एक औपचारिकता नहीं, बल्कि कृतज्ञता और आशीर्वाद प्राप्त करने की एक सुंदर परंपरा है. सरगी में पारंपरिक रूप से फल, मिठाई, धन, वस्त्र और श्रृंगार का सामान शामिल किया जाता है. यह सास को समर्पित कर व्रत का शुभारंभ किया जाता है.
अगर सास सुहागन न हों तो क्या करें?
परंपरा के अनुसार, अगर सास सुहागन न हों तो सरगी से श्रृंगार का सामान हटा दिया जाता है और बाकी वस्तुएं श्रद्धा से अर्पित की जाती हैं. इससे व्रत की पूर्णता में कोई बाधा नहीं आती. धर्मशास्त्रों के अनुसार, भावना और श्रद्धा ही पूजा का वास्तविक आधार होती है.
सास न होने पर सरगी किससे लें?
1. जेठानी को सरगी लें: अगर परिवार में जेठानी हों, तो उन्हें सास के स्थान पर सरगी दिया जा सकता है.
2. परिवार की अन्य बुजुर्ग महिला: यदि जेठानी भी न हों, तो परिवार में किसी बुजुर्ग महिला को बायना देकर व्रत की विधि पूरी की जा सकती है.
3. पड़ोस की आदरणीय महिला: यदि परिवार में कोई न हो, तो पड़ोस में किसी आदरणीय और विवाहित बुजुर्ग महिला को बायना देना भी शुभ माना जाता है.
इस तरह बायना देने से व्रत की धार्मिकता बनी रहती है और पूजा में किसी प्रकार की कमी नहीं आती.
व्रत का समापन और चंद्र दर्शन
पूरा दिन बिना अन्न-जल ग्रहण किए रहने के बाद शाम को महिलाएं श्रृंगार कर पूजा स्थल को सजाती हैं. करवा चौथ की कथा सुनने के बाद चंद्रमा के दर्शन और अर्घ्य देकर पति के हाथों से जल पीकर व्रत का समापन किया जाता है. माना जाता है कि ऐसा करने से पति को दीर्घायु और दांपत्य जीवन में सौभाग्य प्राप्त होता है.