Kashi Ke Kotwal: भगवान काल भैरव का जन्म मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को हुआ था. भगवान शिव के अवतार माने जाने वाले बाबा काल भैरव का काशी से गहरा संबंध है. उन्हें काशी का कोतवाल कहा जाता है और ऐसी मान्यता है कि काशी के रक्षा के लिए स्वयं देवाधिदेव महादेव ने उनकी नियुक्ति की थी. कहा जाता है कि बाबा काल भैरव की अनुमति से ही आप काशी में रह सकतें हैं.
काशी के कोतहवाल की कहानी (kashi ke kotwal)
काशी नगरी का राजा भगवान विश्वनाथ को कहा जाता हैं व बाबा काल भैरव को इस प्राचीन नगरी का कोतवाल. इसी कारण उन्हें काशी का कोतवाल(kashi ke kotwal) भी कहा जाता है. बाबा विश्वनाथ की यात्रा काशी के कोतवाल काल भैरव के दर्शन के बिना अधूरी मानी जाती है. काशी का कोतवाल, बाबा काल भैरव को कहे जाने के पीछे एक बहुत ही दिलचस्प कहानी है. मान्यताओं के अनुसार एक बार ब्रह्मा, विष्णु और भगवान शिव में से कौन श्रेष्ठ है, इस पर विवाद छिड़ गया. ब्रह्मा ने भगवान शिव का अपमान किया, जिससे वे क्रोधित हो गए. तब भगवान शिव ने अपने भयंकर रूप काल भैरव को जन्म दिया. अपमान का बदला लेने के लिए, काल भैरव ने अपने नाखूनों से ब्रह्मा का सिर काट दिया, जिससे उन्हें ब्रह्महत्या का पाप लगा.
काशी में समाप्त हुई यात्रा
ब्रह्महत्या के पाप का प्रायश्चित करने के लिए, भगवान शिव ने काल भैरव को पृथ्वी पर जाकर तपस्या करने को कहा. उन्हें बताया गया कि जैसे ही ब्रह्मा का कटा हुआ सिर उनके हाथ से गिरेगा, वे ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त हो जाएंगे. अंततः, काल भैरव की यात्रा काशी में समाप्त हुई, जहां वे स्थापित हुए और नगर के कोतवाल(kashi ke kotwal) बने.
कोतवाल निभाते हैं पंरपरा
काल भैरव का मंदिर शहर के शहर के कोतवाली के ठीक पीछे है इस कोतवाली में बाबा काल भैरव का एक स्थान कोतवाल की मुख्य सीट पर तय है. यहां तैनात सारे अधिकारी भी इस परंपरा को निभाते आ रहे हैं और हर सुबह बाबा को प्रणाम करके अपना काम शुरू करते हैं.