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Khaleda Zia Funeral: मुस्लिमों को दफनाने, तो हिंदुओं का दाह संस्कार क्यों? जानें धार्मिक और सांस्कृतिक अंतर

क्या आप जानते हैं कि हिंदू धर्म और मुस्लिम धर्म में अंतिम संस्कार का तरीका अलग क्यों है? आइए जानते हैं दोनों धर्म में क्या मान्यता है और ऐसा क्यों किया जाता है?

Written By: Deepika Pandey
Last Updated: December 31, 2025 14:16:14 IST

Khaleda Zia Funeral: बीते दिन 30 दिसंबर 2025 को बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा ज़िया का निधन हो गया. आज 31 दिसंबर 2025 को ढाका में राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा. खालिदा जिया एक मुस्लिम महिला थीं और जैसा कि मुस्लिम धर्म में लोगों को दफ़न किया जाता है, तो उन्हें भी दफ़न किया जाएगा. वहीं हिंदू धर्म में दाह संस्कार का चलन है, जिसमें शव को जलाया जाता है. हालांकि अकसर लोगों के मन में सवाल होता है कि आखिर दोनों धर्मों में अंतिम संस्कार का तरीका अलग क्यों है? बता दें कि धार्मिक और सांस्कृतिक विश्वासों के कारण दोनों धर्मों में अंतर है.

इस्लाम में दफन करने की परंपरा क्यों?

दरअसल इस्लाम धर्म में मृत्यु को एक अवस्था से दूसरी अवस्था में जाना माना जाता है.  अंतिम संस्कार के रीति-रिवाज में ऐसा करना इस्लामी कानून यानी शरिया कानून के तहत किया जाता है. कहा जाता है कि शरीर के प्रति सम्मान और गरिमा बनाए रखने के लिए ऐसी प्रथा है.

मुस्लिम धर्म में मान्यता है कि क़यामत के दिन शरीर का भौतिक रूप से पुनरुत्थान होता है. इसके कारण शरीर को मिट्टी में दफन किया जाता है. मान्यता है कि ऐसा करने से शरीर को कयामत के दिन के लिए सुरक्षित रखने का एक तरीका है. मुस्लिम धर्म में शरीर को अपवित्र नहीं माना जाता. इंसान की मृत्यु के बाद 24 घंटे के अंदर शरीर को गुस्ल यानी एक तरह का धार्मिक स्नान कराया जाता है. इसके बाद कफन में लपेटकर मिट्टी के गड्ढे में दफन किया जाता है, जिसका चेहरा मक्का मदीना की दिशा में रखा जाता है. मुस्लिम धर्म में शव को लंबे समय तक रखने या जलाने की प्रथा नहीं होती ताकि शव जल्द से जल्द मिट्टी में विलीन हो जाए. इस्लाम धर्म में कहा जाता है कि दाह संस्कार करना शरीर का अनादर है, इसके कारण जलाने के लिए सख्ती से मनाही है. 

हिंदू धर्म में दाह संस्कार की मान्यता क्यों?

हिंदू धर्म में इंसान की मृत्यु के बाद उसका दाह संस्कार किया जाता है. हिंदू धर्म में अंतिम संस्कार के अनुष्ठानों को ‘अंत्येष्टि’ भी कहा जाता है. इसका अर्थ होता है अंतिम बलिदान. हिंदू धर्म में दर्शन शरीर और आत्मा को अलग-अलग माना जाता है. हिंदू धर्म में मान्यता है कि मृत्यु के बाद भौतिक शरीर का कोई उद्देश्य नहीं रह जाता. इसलिए शरीर का दाह संस्कार किया जाता है ताकि आत्मा को शरीर के बंधनों से मुक्त किया जा सके. मान्यता है कि ये पुनर्जन्म की प्रक्रिया को गति देने का सबसे तेज़ तरीका है.

हिंदू धर्म में शरीर को पांच मूल तत्वों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) से बना माना जाता है. इसलिए अंतिम संस्कार के समय आग में शव जलाकर उसे इन तत्वों में वापस मिला दिया जाता है. इससे आत्मा अपनी आगे की यात्रा के लिए मुक्त हो जाती है. हिंदू धर्म में मृत्यु और शव को कुछ समय के लिए अशुद्ध माना जाता है. दाह संस्कार अशुद्धता को दूर करने और मृतक के परिवार के लिए शोक की अवधि शुरू करने में मदद करता है. बता दें कि हिंदू धर्म में शोक की अवधि 13 दिनों तक होती है.

दाह संस्कार के बाद इकट्ठी की गई अस्थियों को इकट्ठा किया जाता है. इसके बाद उन अस्थियों यानी राख को अक्सर गंगा जैसी पवित्र नदी में विसर्जित कर दिया जाता है. मान्यता है कि इससे आत्मा को अंतिम मुक्ति यानी मोक्ष मिलती है. 

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Khaleda Zia Funeral: मुस्लिमों को दफनाने, तो हिंदुओं का दाह संस्कार क्यों? जानें धार्मिक और सांस्कृतिक अंतर

क्या आप जानते हैं कि हिंदू धर्म और मुस्लिम धर्म में अंतिम संस्कार का तरीका अलग क्यों है? आइए जानते हैं दोनों धर्म में क्या मान्यता है और ऐसा क्यों किया जाता है?

Written By: Deepika Pandey
Last Updated: December 31, 2025 14:16:14 IST

Khaleda Zia Funeral: बीते दिन 30 दिसंबर 2025 को बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा ज़िया का निधन हो गया. आज 31 दिसंबर 2025 को ढाका में राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा. खालिदा जिया एक मुस्लिम महिला थीं और जैसा कि मुस्लिम धर्म में लोगों को दफ़न किया जाता है, तो उन्हें भी दफ़न किया जाएगा. वहीं हिंदू धर्म में दाह संस्कार का चलन है, जिसमें शव को जलाया जाता है. हालांकि अकसर लोगों के मन में सवाल होता है कि आखिर दोनों धर्मों में अंतिम संस्कार का तरीका अलग क्यों है? बता दें कि धार्मिक और सांस्कृतिक विश्वासों के कारण दोनों धर्मों में अंतर है.

इस्लाम में दफन करने की परंपरा क्यों?

दरअसल इस्लाम धर्म में मृत्यु को एक अवस्था से दूसरी अवस्था में जाना माना जाता है.  अंतिम संस्कार के रीति-रिवाज में ऐसा करना इस्लामी कानून यानी शरिया कानून के तहत किया जाता है. कहा जाता है कि शरीर के प्रति सम्मान और गरिमा बनाए रखने के लिए ऐसी प्रथा है.

मुस्लिम धर्म में मान्यता है कि क़यामत के दिन शरीर का भौतिक रूप से पुनरुत्थान होता है. इसके कारण शरीर को मिट्टी में दफन किया जाता है. मान्यता है कि ऐसा करने से शरीर को कयामत के दिन के लिए सुरक्षित रखने का एक तरीका है. मुस्लिम धर्म में शरीर को अपवित्र नहीं माना जाता. इंसान की मृत्यु के बाद 24 घंटे के अंदर शरीर को गुस्ल यानी एक तरह का धार्मिक स्नान कराया जाता है. इसके बाद कफन में लपेटकर मिट्टी के गड्ढे में दफन किया जाता है, जिसका चेहरा मक्का मदीना की दिशा में रखा जाता है. मुस्लिम धर्म में शव को लंबे समय तक रखने या जलाने की प्रथा नहीं होती ताकि शव जल्द से जल्द मिट्टी में विलीन हो जाए. इस्लाम धर्म में कहा जाता है कि दाह संस्कार करना शरीर का अनादर है, इसके कारण जलाने के लिए सख्ती से मनाही है. 

हिंदू धर्म में दाह संस्कार की मान्यता क्यों?

हिंदू धर्म में इंसान की मृत्यु के बाद उसका दाह संस्कार किया जाता है. हिंदू धर्म में अंतिम संस्कार के अनुष्ठानों को ‘अंत्येष्टि’ भी कहा जाता है. इसका अर्थ होता है अंतिम बलिदान. हिंदू धर्म में दर्शन शरीर और आत्मा को अलग-अलग माना जाता है. हिंदू धर्म में मान्यता है कि मृत्यु के बाद भौतिक शरीर का कोई उद्देश्य नहीं रह जाता. इसलिए शरीर का दाह संस्कार किया जाता है ताकि आत्मा को शरीर के बंधनों से मुक्त किया जा सके. मान्यता है कि ये पुनर्जन्म की प्रक्रिया को गति देने का सबसे तेज़ तरीका है.

हिंदू धर्म में शरीर को पांच मूल तत्वों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) से बना माना जाता है. इसलिए अंतिम संस्कार के समय आग में शव जलाकर उसे इन तत्वों में वापस मिला दिया जाता है. इससे आत्मा अपनी आगे की यात्रा के लिए मुक्त हो जाती है. हिंदू धर्म में मृत्यु और शव को कुछ समय के लिए अशुद्ध माना जाता है. दाह संस्कार अशुद्धता को दूर करने और मृतक के परिवार के लिए शोक की अवधि शुरू करने में मदद करता है. बता दें कि हिंदू धर्म में शोक की अवधि 13 दिनों तक होती है.

दाह संस्कार के बाद इकट्ठी की गई अस्थियों को इकट्ठा किया जाता है. इसके बाद उन अस्थियों यानी राख को अक्सर गंगा जैसी पवित्र नदी में विसर्जित कर दिया जाता है. मान्यता है कि इससे आत्मा को अंतिम मुक्ति यानी मोक्ष मिलती है. 

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