होम / कानपुर का एक मासूम सा बच्चा कैसे बना वृंदावन का सबसे बड़ा संन्यासी? जानिए प्रेमानंद महाराज की कहानी!

कानपुर का एक मासूम सा बच्चा कैसे बना वृंदावन का सबसे बड़ा संन्यासी? जानिए प्रेमानंद महाराज की कहानी!

Prachi Jain • LAST UPDATED : July 4, 2024, 2:42 pm IST

India News (इंडिया न्यूज़), Premanand Maharaj: प्रेमानंद महाराज जिनके मंत्रो से लेकर प्रवचनों को पूरी दुनिया में जय-जय कार रहती हैं। बाबा अपने भक्तो के दिलो में इस प्रकार बस्ते हैं जैसे कोई देवता बस्ता हो। उन्ही बाबा की ज़िन्दगी कितने कष्टों से कटी हैं क्या जानते हैं आप? आइये आज इस लेख से वो भी जान लीजिये।

प्रेमानंद महाराज का जन्म कानपुर महानगर की नरवाल तहसील के अखरी गांव में हुआ था। वे एक ब्राह्मण परिवार से संबंधित थे और उनका असली नाम अनिरुद्ध पांडे था। उनके परिवार में आज भी उनके बड़े भाई और भतीजे गांव में निवास करते हैं।

प्रेमानंद जी महाराज ने गांव को छोड़कर एक बार भी वापस नहीं आए, क्योंकि उन्होंने सन्यासी जीवन में अपना समय बिताने का निर्णय लिया था। कानपुर महानगर में वे कई बार गए-आए, लेकिन अपने गांव में वापस नहीं गए। सन्यासी जीवन में रहते हुए, प्रेमानंद महाराज ने अपने ज्ञान और ध्यान से भारतीय समाज को प्रेरित किया और उनकी विचारधारा ने लाखों लोगों को मार्गदर्शन दिया।

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मात्र 13 वर्ष की आयु में छोड़ दिया था घर

प्रेमानंद महाराज ने केवल 13 वर्ष की आयु में ही अपने घर को त्याग दिया था। एक बार वे बिठूर गए थे, जहां उन्हें संत और संन्यास का जीवन अपनाने का विचार आया। इसके बाद वे अपने घर लौटे और फिर एक दिन अचानक ही घर को छोड़कर निकल गए। उन्होंने बनारस जाकर संन्यास जीवन शुरू किया और गंगा के किनारे रहने लगे।

उनके बाद एक मिलने वाले संत के माध्यम से वे वृंदावन पहुंचे, जहां उन्होंने राधा रानी और भगवान श्री कृष्ण की भक्ति में अपने आप को लीन कर दिया। वे वृंदावन के सबसे प्रमुख सन्यासी बन गए हैं और उनके पास लोग अपनी समस्याओं को समझाने और समाधान के लिए आते हैं। हालांकि, उन्हें एक गंभीर बीमारी का सामना करना पड़ रहा है और उन्हें नियमित रूप से डायलिसिस की जरूरत है। फिर भी, उनके उत्साह, भक्ति और सेवा भावना में कोई कमी नहीं आती है, और वे लोगों के बीच अपने जीवन को समर्पित करते हैं।

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प्रेमानंद महाराज की बीमारी के बारे में अन्यायिक रूप से यह बताया जा सकता है कि लगभग सन् 2000 में उन्हें कई समस्याएं उठानी पड़ी थीं। उस समय, उन्हें बीमारी के लक्षण साफ़ हो चुके थे और वे कानपुर आकर एक प्राइवेट अस्पताल में इलाज के लिए रुके थे। इसके बाद से, उनका उपचार नियमित रूप से जारी रहा है।

प्रेमानंद महाराज अपने गांव नहीं आए हैं, लेकिन उनके भाई और भतीजे समय-समय पर वृंदावन जाते हैं और उनसे मिलने का अवसर प्राप्त करते हैं। इन मुलाकातों में वे गांव और परिवार के बारे में भी जानकारी प्राप्त करते रहते हैं, जिससे उन्हें अपने परिवार के स्थिति और सम्पर्क में रहते हैं।

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डिस्क्लेमर:इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है।पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।

 

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